राजधानी दिल्ली में स्वाइन फ्लू तेजी से फैल रहा है। आंकड़ों के मुताबिक 1 से 28 जनवरी के बीच राजधानी में 440 लोगों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। केंद्र सरकार के दो अस्पतालों में इसकी वजह से पिछले 28 दिनों में 10 की मौत हो चुकी है। वैसे दिल्ली की स्वास्थ्य महानिदेशक का कहना है कि ये मरीज दिल्ली के निवासी नहीं हैं।
बता दें कि हाल में जारी केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल स्वाइन फ्लू के 205 मरीज राजधानी में सामने आए थे। इस वर्ष 28 दिनों में ही यह संख्या दोगुनी हो गई। इस साल 28 जनवरी तक राम मनोहर लोहिया अस्पताल में सात और सफदरजंग अस्पताल में तीन लोगों की मौत स्वाइन फ्लू से हुई है।
बाहर के लोग भी शामिल
राम मनोहर लोहिया अस्पताल के इमरजेंसी के प्रमुख डॉक्टर नूतन मेहता का कहना है 1 जनवरी से अभी तक सात लोगों की मौत उनके अस्पताल में स्वाइन फ्लू की वजह से हुई है। इस दौरान 57 लोग स्वाइन फ्लू के संदिग्ध पाए गए हैं और 18 मरीजों में इसकी पुष्टि हो चुकी है। सफदरजंग अस्पताल के मेडिसन विभाग के प्रमुख डॉक्टर जुगल किशोर के मुताबिक, उनके अस्पताल में स्वाइन फ्लू से जनवरी में तीन की मौत हुई है और स्वाइन फ्लू से पीड़ित 17 लोग अभी अस्पताल में भर्ती हैं। वहीं, एम्स में भी स्वाइन फ्लू के 30 से अधिक मरीज पहुंचे हैं। स्वाइन फ्लू से लोगों की मौत के सवाल पर दिल्ली की स्वास्थ्य महानिदेशक डॉक्टर नूतन मुंदेजा का कहना है कि दिल्ली के किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। संभव है कि बाहर के राज्यों से आए लोगों की मौत स्वाइन फ्लू से हुई हो।
इनको जरूरी वैक्सीन
एम्स के मेडिसन विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर नवल विक्रम का कहना है कि जिन लोगों को इंफ्लूएंजा से अधिक खतरा है वे बचाव के लिए वैक्सीन इस्तेमाल कर सकते हैं। 65 साल या उससे ऊपर के सभी लोग, मधुमेह, अस्थमा से पीड़ित, गर्भवती,बच्चे इत्यादि को वैक्सीन देना चाहिए। इन्फ्लुएंजा के वैक्सीन से न सिर्फ दिल के मरीजों में मौत का खतरा कम हो जाता है। अधिक जोखिम वाले लोगों को इंफ्लूएंजा के चारों प्रकार के फ्लू(एच1एन1 (स्वाइन फ्लू), एच1एन2, एच3एन2, एच3एन1 ) से बचाव करें।
वायरस कर रहा बदलवा
सफदरजंग अस्पताल के मेडिसन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर जुगल किशोर के मुताबिक स्वाइन फ्लू का वायरस खुद में बदलाव (म्यूटेशन) कर लेता है। वायरस में म्यूटेशन आमतौर पर उन्हें दवा प्रतिरोधी बनाकर और खतरनाक बना देते हैं। उन्होंने कहा कि पहले हर तीन साल बाद स्वाइन फ्लू के मामले अचानक बढ़ जाते थे लेकिन वायरस ने इस तरह बदलाव किया है कि अब यह हर दूसरे साल बाद खतरनाक होकर उभरता है।
एम्स के पल्मनरी मेडिसन डॉ. करन मदान ने बताया कि जो लोग लंबे समय से किसी बीमारी से पीड़ित हैं और उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम है या फिर अस्पतालों में काम करने वाले लोगों को स्वाइन फ्लू की वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। संक्रमित लोगों से दूर रहें। सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का इस्तेमाल बेहतर बचाव कर सकता है।
पैरों में जलन की समस्या को आमतौर पर छोटी समस्या माना जाता है और कुछ लोग यह भी मान लेते हैं कि यह अपने आप ठीक हो जाएगी। लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि यह समस्या शरीर के अन्य हिस्सों में भी तकलीफ पैदा कर सकती है। इससे बचाव के बारे में जानकारी दे रही हैं निधि गोयल
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि हमें आने वाली बीमारी का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं लग पाता। देखा जाए तो पैरों से संबंधित बहुत सी ऐसी बीमारियां होती हैं, जो लोगों को परेशान करती हैं। ऐसी ही एक परेशानी है पैरों में जलन की समस्या। अकसर बहुत से लोग इस परेशानी से जूझ रहे होते हैं और इसकी अनदेखी भी कर रहे होते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि पैरों में जलन की वजह कुछ और भी हो सकती है। विटामिन बी, फोलिक एसिड या कैल्शियम की कमी भी इसके कारण हो सकते हैं। यह समस्या सिर्फ एक ही आयु के लोगों में नहीं होती, बल्कि किसी भी आयु में हो सकती है।
क्या हैं इसके कारण
1. पैरों में जलन हल्के से लेकर गंभीर और तीव्र या क्रोनिक प्रकृति की हो सकती है। अकसर पैरों में जलन तंत्रिका तंत्र में नुकसान या शिथिलता के कारण होती है।
2. पैरों में जलन का एक कारण न्यूरोपैथी बीमारी भी हो सकती है, क्योंकि न्यूरोपैथी का असर सभी नसों, मोटर न्यूरॉन्स आदि पर पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक रूप से सभी अंगों और तंत्रों को प्रभावित कर सकती है। इसमें पैरों में दर्द, जलन, चुभन काफी संवेदनशील तरीके से महसूस होती है।
3. विटामिन बी12 तंत्रिका तंत्र के कार्यों सहित हमारे शरीर के कई कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए बी12 झुनझुनी के साथ पैरों में जलन और बाहों में जलन का कारण बन सकता है।
4. उच्च रक्तचाप के कारण भी पैरों में जलन हो सकती है। उच्च रक्तचाप के कारण रक्त परिसंचरण में परेशानी होती है। इससे त्वचा के रंग में परिवर्तन, पैरों की पल्स रेट में कमी और हाथ-पैरों के तापमान में कमी होती है, जिससे पैरों में जलन की समस्या महसूस हो सकती है।
5. गुर्दे से जुड़ी बीमारी होने पर पैरों में जलन होना स्वाभाविक है।
6. अगर थाइरॉइड हार्मोन का स्तर कम हो तो भी पैरों में जलन की समस्या हो सकती है।
7. दवाओं का दुष्प्रभाव, एचआईवी की दवाएं लेने और कीमोथेरेपी की दवा खाने से भी पैरों में जलन होने लगती है।
8. अगर व्यक्ति की रक्त वाहिकाओं में संक्रमण हो, तब भी उसके पैरों में जलन या तेज जलन हो सकती है।
9. ज्यादातर लोगों में पैरों में जलन का मुख्य कारण डायबिटीज होता है। ऐसे लोगों में इस बीमारी के निदान के लिए किसी अतिरिक्त परीक्षण की जरूरत नहीं पड़ती और उपचार कर रहा डॉक्टर इस स्थिति पर तुरंत नियंत्रण कर लेता है।
10. कुछ लोगों को अचानक ही पैरों में जलन होने लगती है। कई बार यह अधिक बढ़ जाती है। ऐसे लोगों के सही उपचार के लिए विशेषज्ञ पूरी जांच करवाने और सही उपचार की सलाह देते हैं।
जांच से न बचें
इलेक्ट्रोमायोग्राफी : ईएमजी टेस्ट के लिए मांसपेशियों में सुई डाली जाती है और इसकी क्रियाओं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जाती है।
प्रयोगशाला टेस्ट : पैरों में जलन के कारणों का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में खून, पेशाब और रीढ़ के लिक्विड का परीक्षण किया जाता है। सामान्य ब्लड टेस्ट के माध्यम से विटामिन के स्तरों की भी जांच की जाती है।
नर्व बायोप्सी : गंभीर परिस्थितियों में यह टेस्ट भी किया जाता है। इसके लिए डॉक्टर नर्व टिशू का एक टुकड़ा निकालकर माइक्रोस्कोप से उसका पूरी तरह से परीक्षण करते हैं।
सिरका है फायदेमंद
सिरका भी पैरों की जलन से छुटकारा दिलाता है। एक गिलास गर्म पानी में दो बड़े चम्मच कच्चा व अनफिल्टर्ड सिरका मिलाकर पिएं। ऐसा करने से आपके पैरों की जलन दूर हो जाएगी।
आपके घर में भी हैं उपचार
सेंधा नमक पैरों की जलन से तुरंत राहत देने में मदद करता है। मैग्नीशियम सल्फेट से बना सेंधा नमक सूजन और दर्द को कम करने में मदद करता है। इसके लिए एक टब गुनगुने पानी में आधा कप सेंधा नमक मिलाकर अपने पैरों को उसमें डालें। इस मिश्रण में अपने पैरों को 10 से 15 मिनट के लिए भीगा रहने दें। इस उपाय को कुछ दिनों के लिए नियमित रूप से करें। सेंधा नमक के पानी का इस्तेमाल डायबिटीज, उच्च रक्तचाप या दिल की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए उपयुक्त नहीं होता। इसलिए इसके इस्तेमाल से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
सरसों का तेल एक कुदरती औषधि होता है, जो पैरों की जलन को दूर करने में मदद करता है। एक कटोरी में दो चम्मच सरसों का तेल लें। अब इसमें दो चम्मच ठंडा पानी या बर्फ का एक टुकड़ा डाल कर अच्छे से मिलाएं। अब इससे अपने पैरों के तलवों की मसाज करें। सप्ताह में दो बार ऐसा करने से आपको आराम मिलेगा।
सिरका भी पैरों की जलन से छुटकारा दिलाता है। एक गिलास गर्म पानी में दो बड़े चम्मच कच्चा व अनफिल्टर्ड सिरका मिलाकर पिएं। ऐसा करने से आपके पैरों की जलन दूर हो जाएगी।
शाकाहारी लोगों को अपने खानपान का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। उन्हें दूध, दही, पनीर, चीज, मक्खन, सोया मिल्क या टोफू का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। मांसाहारी लोगों को अंडे, मछली, रेड मीट, चिकन और सी फूड से विटामिन बी12 भरपूर मात्रा में मिल जाता है।
लौकी को काटकर इसका गूदा पैर के तलवों पर मलने से जलन दूर होती है।
पैरों में जलन होने पर करेले के पत्तों के रस की मालिश करने से लाभ होता है।
हल्दी में भरपूर मात्रा में पाया जाने वाला तत्व करक्यूमिन पूरे शरीर में रक्त प्रवाह में सुधार करता है। हल्दी में मौजूद एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण पैरों की जलन और दर्द को दूर करने में मदद करता है। हल्दी को दूध के साथ भी ले सकते हैं।
हिसार के जुगलान गांव में करीब दो साल पहले एक युवती को जहर देकर मारने के मामले में दोषी ठहराए गए उसके भाई अशोक को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। अभियुक्त बहन के प्रेम विवाह से नाराज था, जिसके चलते उसने इस घटना को अंजाम दिया। कोर्ट ने उसे 29 नवंबर को दोषी ठहराया था। मामले में एडीजे डॉ. पंकज की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है।
इस प्रकरण में युवती किरन की मौत को प्राकृतिक मौत बताकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था, तब प्रेम विवाह करवाने वाली संस्था सनातन धर्म ट्रस्ट के अध्यक्ष संजय चौहान ने इस घटना को उजागर करते हुए पुलिस को सूचना दी थी। प्रेमी रोहताश सैनी की तरफ से शिकायत देकर कार्रवाई की गुहार लगाई थी। इसके बाद पुलिस ने जांच कर मृतका के भाई अशोक को गिरफ्तार किया था। बता दें कि मृतका का पिता हरियाणा पुलिस में एसआई था।
इसके चलते मामले को दबाने की पूरी कोशिश की गई। इस प्रकरण में पुलिस ने हत्या, शव खुर्द-बुर्द सहित अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया था। सीसवाल निवासी रोहताश सैनी और गांव जुगलान वासी किरण की वर्ष 2012 में मुलाकात हुई थी, तब किरण आदमपुर के एक कॉलेज में पढ़ती थी और वहीं पीजी में रहा करती थी। उसी इलाके के शिक्षण संस्थान में वह ड्राइवर था। ऐसे में उनके बीच प्यार हो गया था।
8 अगस्त 2015 को दोनों ने सनातन धर्म ट्रस्ट कार्यालय में प्रेम विवाह किया था।
बहन से सुसाइड नोट लिखवाकर पिला दिया था जहर
पुलिस ने मामले की जांच करके मृतका के एसआई पिता व उसके भाई अशोक से पूछताछ की थी। उन्होंने बताया था कि प्राकृतिक मौत हो गई थी, इसलिए अंतिम संस्कार कर दिया था। पुलिस ने अशोक से सख्ती से पूछताछ की तो उसने अपना अपराध कबूल कर लिया। उसने बताया कि किरण को भावनात्मक ब्लैकमेल करते हुए खुद जहर पीकर सुसाइड की कहने लगा था। फिर किरण से सुसाइड नोट लिखवाकर उसे जबरन जहर पिला दिया था, जिसके कुछ देर बाद दम तोड़ दिया था।
हाल ही में हुई इस रिसर्च में कहा गया कि ट्रैफिक की वजह से होने वाले एयर पॉल्यूशन से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा पैदा हो सकता है। बता दें, स्कॉटलैंड के स्टर्लिंग विश्वविद्यालय के रिसर्चर्स की टीम एक कैंसर पेशेंट महिला के ऊपर किए गए अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुंचीं। उनहोंने बताया कि यातायात से पॉल्यूटेड हवा ब्रेस्ट कैंसर का कारण बन सकती है।
ब्रेस्ट कैंसर के शिकार ये सेलेब्स

एयर पॉल्यूशन से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा

एयर पॉल्यूशन से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर का खतरा

कैंसर से बचने के उपाय

वेज कोल्हापुरी एक मराठी व्यंजन है जिसमें कई सब्जियों को एक तीखी और मसालेदार नारियल आधारित ग्रेवी में पकाया जाता है। यह महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे उत्तर भारत में बहुत प्रसिद्ध है। आइए जानते हैं कैसे बनाते हैं वेज कोल्हापुरी
सामग्री
गाजर- 1
आलू – 1
शिमला मिर्च – 1
फूल गोभी – 1 कप
टमाटर – 3
अदरक – एक छोटा तुकड़ा
मटर – ¼ कप
क्रीम – ½ कप
सूखा नारियल – ¼ कप कद्दूकस किया हुआ
तेल – आवश्यकता अनुसार
हरा धनिया – थोड़ा कटा हुआ
हींग – 1 पिंच
जीरा -½ छोटी चम्मच
हल्दी पाउडर – ¼ छोटी चम्मच
लाल मिर्च पाउडर – ½ छोटी चम्मच
धनिया पाउडर – 1 छोटी चम्मच
गरम मसाला – ¼ छोटी चम्मच
लाल मिर्च साबुत – 2
तिल – 1 टेबल स्पून
नमक – स्वादानुसार
विधि
सब्जियों को धोकर, छोटा-छोटा काट लीजिए। टमाटर, हरी मिर्च और अदरक को मिक्सी में पीस कर पेस्ट बना लीजिए। कढ़ाई में तेल डाल कर गरम कीजिए इसमें आलू डालिए और ब्राउन होने तक तल कर निकाल लीजिए। गोभी, गाजर और शिमला मिर्च बारी-बारी से हल्का ब्राउन होने तक तल लीजिए और एक बरतन में निकाल लें। अब एक दूसरी कढा़ई में तिल और जीरा डालकर हल्का सा भूनें अब इसमें कद्दूकस हुआ नारियल भी डाल दीजिए और हल्का सा कलर चेंज होने तक भून लीजिए। मसाले को निकाल लें और ठंडा होने के बाद इसे पीस लीजिए।
कढा़ई में 2 चम्मच तेल डालकर गरम कीजिए अब इसमें हींग, हल्दी पाउडर, धनियां पाउडर डाल कर मसाले को हल्का सा भून लीजिए। अब इसमें टमाटर और अदरक का पेस्ट डाल दीजिए। लाल मिर्च पाउडर और साबुत लाल मिर्च भी डाल कर तब तक भूनिए जब तक मसाला तेल न छोड़ने लगे। मसाला भून जाने पर इसमें तिल, जीरा और नारियल का पाउडर डाल दीजिए हल्का सा भूनने के बाद इसमें क्रीम डाल कर मसाले को लगातार चलाते हुए 2-3 मिनिट और भूनिए।
मसाले से तेल अलग होने पर इसमें मटर के दाने डाल दीजिए। इसमें आधा पानी डाल दीजिए और नमक और गरम मसाला डाल कर मिक्स कर लीजिए। ग्रेवी में उबाल आने पर तली हुई सब्जियों को इसमें डाल दीजिए और मिक्स करके सब्जी को ढककर 3 मिनिट के लिए पकने दीजिए। सब्जी बनकर तैयार है इसमें हरा धनिया डाल कर मिला दीजिए।
दिल्ली में जहां सर्दी की दस्तक के बाद बीमारियों का सिलसिला भी जोर पकड़ चुका है। वहीं, स्वाइन फ्लू वायरस का आतंक भी कम नहीं हो रहा। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की सामने आई रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में एच1एन1 वायरस से ग्रस्त मरीजों की संख्या 126 पहुंच चुकी है, जबकि इसके कारण तीन मरीजों की मौत भी हुई है।
वर्ष 2011 से अब तक की बात करें तो रिपोर्ट में दावा किया है कि स्वाइन फ्लू दिल्ली में काफी नियंत्रित दिखाई दे रहा है। वर्ष 2014 में दिल्ली में 38 रोगी मिले थे, जिनमें से एक की मौत हुई थी। इसके बाद से वर्ष 2015 में 12, 2016 में 07 और 2017 में 16 मरीजों की जान जा चुकी है। साल 2015 में 4307, 2016 में 193 और 2017 में 2835 मरीज स्वाइन फ्लू पीड़ित मिले थे। रिपोर्ट के अनुसार 11 नवंबर तक देश में 817 मरीजों ने इस बीमारी के कारण दम तोड़ा है। जबकि इसके कारण 10853 मरीज बीमार पड़ चुके हैं।
दिल्ली के विशेषज्ञों की मानें तो अगर सर्दी, खांसी और बुखार के अलावा डायरिया हो जाए तो स्वाइन फ्लू का पता लगाने के लिए तुरंत एच1एन1 की जांच करानी चाहिए। बुखार के साथ सर्दी जुकाम की समस्या हो सकती है। इसके मरीजों को सांस लेने में परेशानी होती है। गले में दर्द भी हो सकता है। साथ ही अगर किसी मरीज को मांसपेशियों में दर्द की शिकायत है तो उसे तत्काल डॉक्टरों से परामर्श करना चाहिए।
गर्भावस्था एक ऐसा समय है, जो महिलाओं के लिए बेहद खास और संवेदनशील होता है। इस दौरान मां की हर गतिविधि का असर शिशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इसीलिए महिलाओं को इस दौरान खान-पान और आदतों पर ध्यान देने की विशेष सलाह दी जाती है। बहुत सारी महिलाएं धूम्रपान करती हैं। धूम्रपान का आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। मगर गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान का असर आपके साथ-साथ होने वाले शिशु पर भी पड़ता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान या जन्म के बाद आपके बच्चे के तंबाकू के संपर्क में आने से उसकी श्रवण शक्ति को नुकसान हो सकता है।
शोध में सामने आई बात
जापान के क्योटो यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध में यह बात सामने आई कि प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग से बच्चों में कान संबंधी परेशानियों का खतरा 68% तक बढ़ जाता है। क्योटो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कोजी कवाकामी ने कहा, “यह शोध साफ तौर पर दिखाता है कि गर्भावस्था के दौरान तम्बाकू के धुएं के संपर्क में आने और जन्म के बाद इससे बचाए रखने से बच्चों में सुनने संबंधी दिक्कतों के जोखिम को कम किया जा सकता है.” यह शोध ‘पीडियाट्रिक एंड पैरेंटल इपिडेमिओलॉजी’ नामक पत्रिका में किया गया है। इस शोध में 3 साल से कम उम्र के 50,734 बच्चों के शामिल किया गया।
गर्भनाल के निर्माण में बाधा
गर्भनाल का निर्माण भ्रूण और मां दोनों की कोशिकाओं से होता है। धूम्रपान करने से गर्भनाल के विकास में दिक्कत होती है। गर्भनाल से बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं। धूम्रपान करने से गर्भनाल की लंबाई पर असर होता है और और प्रसव के दौरान दिक्कत होती है कई बार तो सिजेरियन (डिलीवरी के दौरान ऑपरेशन) की नौबत आ जाती है।
बच्चों के कद और वजन पर प्रभाव
गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने से गर्भस्थ शिशु का विकास रुक सकता है। बच्चा सामान्य कद से छोटा पैदा होता है। बच्चे का वजन सामान्य से कम होता है क्योंकि धूम्रपान के कारण उसे जरूरी पोषक तत्व नही मिल पाते हैं और उसका शरीर पूरी तरह विकसित नही हो पाता है।
कमजोर होती है शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता
गर्भावस्था में धूम्रपान से शिशु की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है जिसके कारण बच्चे को कई सामान्य बीमारियां होने का खतरा रहता है। सामान्य दिनों में भी बच्चे को कोल्ड और फ्लू जैसे रोग ज्यादा होते हैं। धूम्रपान के कारण शिशु को अस्थमा जैसे फेफड़े से संबंधित रोग गर्भ में ही हो जाते हैं।
फेफड़ों और सांस की समस्या
प्रेग्नेंसी में स्मोकिंग के कारण कई बार फेफड़ों का विकास न हो पाने के कारण शिशु को कुछ दिन तक सांस लेने वाली मशीन पर रखा जा सकता है। ऐसी स्थिति निकोटीन के प्रभाव के कारण होती है। गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली मां से पैदा हुए बच्चे अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम और अस्थमा (एसआईडीएस) की चपेट में आ सकते हैं। गर्भपात की नौबत भी आ सकती है। अक्सर गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान और ड्रग्स लेने ब्लीडिंग होती है और एबॉर्शन की नौबत आ जाती है।
सभी जानते हैं कि वायु प्रदूषण जीवन के लिए खतरनाक है, लेकिन हाल के एक अध्ययन में पता चला है कि वायु प्रदूषण का जीवन पर पड़ने वाला असर एचआईवी/एड्स होने और सिगरेट से होने वाले नुकसान से भी घातक है। अगर भारत इस संबंध में वैश्विक दिशानिर्देशों के अनुरूप हो जाए तो वहां लोग औसतन 4.3 वर्ष ज्यादा जी सकेंगे।
शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने नया वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) तैयार किया है जिससे पता चलता है कि हवा में मौजूद प्रदूषक प्रति व्यक्ति औसत जीवन प्रत्याशा 1.8 वर्ष तक कम कर देते हैं। एक्यूएलआई के अनुसार यह प्रदूषण विश्व भर में मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए इकलौता सबसे बड़ा खतरा है। जीवन प्रत्याशा पर इसका प्रभाव एचआईवी/ एड्स और टीबी जैसी संक्रामक बीमारी के अलावा सिगरेट पीने और युद्ध के खतरों से भी अधिक खतरनाक है।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं, आज विश्व भर में लोग ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं जो उनके स्वास्थ्य पर बेहद खतरनाक असर डाल सकती है और जिस प्रकार से इन खतरों को दिखाया जाता है वह अपारदर्शी और भ्रमित करने वाला है। वायु प्रदूषण सघनांक प्रदूषण के स्तर को लाल, भूरा, और हरे रंग में दर्शता है। वैश्विक जनसंख्या के करीब 75 प्रतिशत लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां यह प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के निशानिर्देश को पार कर गया है। इसके अनुसार भारत इस संबंध में वैश्विक दिशानिर्देशों के अनुरूप हो जाए तो वहां लोग औसतन 4.3 वर्ष ज्यादा जी सकते हैं।
व्यस्त सड़कों के समीप काम करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा अधिक होता है। एक शोध में यह बात प्रकाश में आई है। शोधकतार्ओं ने इस बात से सचेत किया है कि यातायात के कारण होने वाले वायु-प्रदूषण से महिलाओं को स्तन कैंसर का खतरा पैदा हो सकता है।
स्कॉटलैंड स्थित स्टर्लिंग विश्वविद्यालय के शोधार्थियों की टीम कैंसर की मरीज एक महिला के संबंध में किए गए अध्ययन-विश्लेषण के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि यातायात से दूषित वायु स्तन कैंसर का का कारण बन सकती है। महिला उत्तरी अमेरिका में व्यस्ततम व्यावसायिक सीमा पारगमन पर बतौर सीमा गार्ड के रूप में कार्य करती थी। वह 20 साल तक वहां सीमा गार्ड रहीं। इसी दौरान वह स्तन कैंसर से ग्रस्त हुई थीं।
यह महिला उन पांच अन्य सीमा गार्डो में एक है, जिन्हें 30 महीने के भीतर स्तन कैंसर हुआ। ये महिलाएं पारगमन के समीप कार्य करती थीं। इसके अलावा इस तरह के सात अन्य मामले दर्ज किए गए।
माइकल गिल्बर्टसन के मुताबिक, निष्कषोर्ं में स्तन कैंसर और स्तन कैंसरकारी तत्व युक्त यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के अत्यधिक संपर्क में आने के बीच एक अनौपचारिक संबंध दशार्या गया है। रात के समय कार्य करने और कैंसर के बीच एक संबंध की भी पहचान की गई है।
गिल्बर्टसन ने कहा, “यह नया शोध आम आबादी में स्तन कैंसर के बढ़ते मामलों में यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के योगदान की भूमिका के बारे में संकेत देता है।”
न्यू सॉल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि 10,000 मौकों में से एक मामले में यह एक संयोग था क्योंकि यह सभी बहुत हद तक समान थे और आपस में एक दूसरे के करीब थे।
नई दिल्ली। यह बात तो सभी जानते हैं कि सुबह की सैर हमारी सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होती है। हरी घास पर नंगे पैर चलने से शारीरिक और मानसिक तनाव दूर हो सकता है। चलने के फायदे सभी को पता होंगे और यह एक तरह का व्यायाम भी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि नंगे पैर घास पर चलना आपके स्वास्थ्य के लिहाज से कितनी फायदेमंद है। तो क्यों न हर रोज घास पर चलकर इसका फायदा उठाएं।
हरी घास पर चलना
अच्छे स्वास्थ्य के लिए टहलना बहुत महत्वपूर्ण होता है। सिर्फ वॉक कितनी देर की जाए, इस बात पर ध्यान देने से ही फायदा नहीं होता बल्कि ये भी सोचना चाहिए कि वॉक कहां की जाए। वॉक के लिए पार्क जाइये और हरियाली देखिये। हरियाली के बीच सुबह का टहलना न केवल तनाव से मुक्ति दिलाता है, बल्कि दिल के लिए भी अच्छा है। हृदय रोगियों को हरियाली के बीच टहलना चाहिए। घास पर टहलने के और भी कई लाभ होते हैं। आइये जानते हैं उनके बारे में।
तनाव होता है कम
आप जितनी देर और जितना अधिक हरियाली के बीच रहेंगे, उतने ही स्वस्थ और तनावरहित रहेंगे। हरियाली का प्रभाव हमें सुरक्षा का एहसास दिलाता है, जो धीरे-धीरे मांसपेशियों का खिंचाव कम करता है और तनावरहित बनाता है। ग्रीन थेरेपी से मस्तिष्क की शक्ति भी बढ़ती है।
मधुमेह में उपयोगी
मधुमेह रोगियों के लिए हरियाली के बीच बैठना, टहलना और उसे देखना बहुत अच्छा माना जाता है। ऐसे लोगों में कोई भी घाव आसानी से नहीं भरता, परंतु मधुमेह रोगी यदि हरियाली के बीच रह कर नियमित गहरी सांस लेते हुए टहले तो शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति होने से समस्या से निजात पाया जा सकता है।
छींक, एलर्जी का इलाज
ग्रीन थेरेपी का मुख्य अंग है हरी-भरी घास पर नंगे पैर चलना या बैठना। सुबह-सुबह ओस में भीगी घास पर चलना बहुत बेहतर माना जाता है। जो पांवों के नीचे की कोमल कोशिकाओं से जुड़ी तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक राहत पहुंचाता है।
आंखों की रोशनी तेज होती है
सुबह-सुबह ओस में भीगी घास पर चलने से आंखों की रोशनी भी तेज होती हैं। जो लोग चश्मा लगाते है कुछ दिन नंगे पैर हरी घास पर चलने से उनका चश्मा उतर जाता है या चश्मे का नंबर कम हो जाता है। ये भी ग्रीन थेरेपी का चमत्कार है।
प्रदूषित वायु से बचाव
जो लोग देर तक प्रदूषित वायु के संपर्क में रहते है, उनमें सांस रोग होने की संभावना ज्यादा होती है, यह वायु उनके मस्तिष्क पर भी असर डालती है। व्यक्ति में याद रखने की क्षमता घटने लगती है। यहां भी ग्रीन थेरेपी काम आती है। यदि आप अपने कार्यस्थल के आस-पास हरियाली रखेंगे, तो प्रदूषणकारी तत्व आप तक नहीं पहुंच पाएंगी।
उच्च रक्तचाप में लाभदायक
उच्च रक्तचाप के सभी रोगियों को प्रतिदिन सूर्योदय के समय भ्रमण के लिये किसी पार्क में जाकर एक घंटे शुद्ध वायु के वातावरण में प्रतिदिन बैठने व इसी अवधि में ओस पड़ी हरी घास पर कुछ समय नंगे पैर नियमित चलने से पर्याप्त लाभ मिलता है।