शिक्षक भर्ती में शामिल होंगे टीईटी-2017 अभ्यर्थी, हाईकोर्ट ने दी प्राविजनल इजाजत

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने टीईटी 2017 के सैकड़ों अभ्यर्थियों को छह जनवरी को होने वाली सहायक शिक्षक भर्ती-2019 की परीक्षा में बैठने की प्राविजनल अनुमति प्रदान कर दी है। कोर्ट ने इस संबंध में राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को भी कहा है। यह भी कहा कि टीईटी-2017 की परीक्षा का परिणाम नये सिरे से निकाले बिना नयी भर्ती कराना प्रथमदृष्टया अवमानना जनक है। यह आदेश जस्टिस आरएस चौहान की बेंच ने टीईटी-2017 के सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल दर्जन भर से अधिक याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया।

सभी याचीगण पूर्व में शिक्षामित्र से सहायक अध्यापक बनाए गए थे और फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद शिक्षामित्र बना दिए गए। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे सभी शिक्षामित्रों के लिए आदेश दिया था कि यदि वे अगली दो भर्ती परीक्षाओं तक टीईटी परीक्षा पास कर लेते हैं तो उन्हें भर्ती का अवसर दिया जा सकता है। लेकिन याचीगण टीईटी 2017 की परीक्षा में असफल रहे। इसके बाद कई याचिकाएं दाखिल कर टीईटी 2017 परीक्षा को चुनौती दी गई। हाईकोर्ट की एकल सदस्यीय पीठ ने छह मार्च 2018 के एक आदेश में टीईटी 2017 के 14 प्रश्नों को हटाकर पुनर्मूल्यांकन के आदेश दिए थे। बाद में सरकार की विशेष अपील पर उक्त आदेश को दो सदस्यीय खंडपीठ ने निरस्त कर दिया था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दो सदस्यीय खंडपीठ के आदेश को इस आधार पर खारिज कर दिया कि एकल पीठ के समक्ष याचिकाएं दाखिल करने वाले सभी याचियों को सरकार की विशेष अपील में पक्षकार नहीं बनाया गया था। शीर्ष अदालत ने दो सदस्यीय पीठ को मामले को पुन: सुनने को कहा था। याचियों का कहना है कि राज्य ने अब तक उक्त विशेष अपील में याचियों को न तो पक्षकार बनाया और न ही एकल पीठ के आदेश को स्थगित करने के संबंध में प्रार्थना की। कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश के अनुपालन में न तो सरकार ने दिसंबर 2018 तक याचियों को पक्षकार बनाया और न ही एकल पीठ के आदेश का अनुपालन किया।

कोर्ट ने याचियों को अंतरिम राहत देते हुए, रविवार को आयोजित होने वाली सहायक शिक्षक भर्ती 2019 परीक्षा में बैठने की इजाजत देने के आदेश दिए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि याचियों के परिणाम घोषित नहीं किए जाएंगे और परीक्षा में उनकी उपस्थिति अंतिम निर्णय के अधीन होगी। राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता रमेश सिंह व अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रणविजय सिंह ने पक्ष रखा। मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी।