
हैदराबाद: कंचा गाचीबौली की 400 एकड़ जमीन को लेकर छिड़ा विवाद एक बड़ा राजनीतिक, पर्यावरणीय और कानूनी मुद्दा बन चुका है। राज्य सरकार द्वारा इस जमीन को आईटी और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए नीलाम किए जाने की योजना पर यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद (UoH) के छात्रों ने तीव्र विरोध जताया है। सरकार का कहना है कि यह राजस्व भूमि है, जबकि छात्र इसे ‘हरित फेफड़ों’ (lung space) के रूप में बचाए रखने की मांग कर रहे हैं।
क्या है विवाद?
कांग्रेस-नेतृत्व वाली तेलंगाना सरकार ने हैदराबाद के गाचीबौली स्थित 400 एकड़ जमीन को आईटी और शहरी विकास के लिए नीलाम करने का निर्णय लिया है। यह वही क्षेत्र है जिसे कभी 2003 में टीडीपी सरकार ने एक खेल अकादमी के लिए IMG भारत को आवंटित किया था, लेकिन 2007 में यह सौदा रद्द कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय और तेलंगाना हाई कोर्ट ने हाल में इस सौदे को अवैध ठहराते हुए जमीन सरकार को वापस सौंप दी।
छात्रों का विरोध और गिरफ्तारी
UoH के छात्रों का कहना है कि यह इलाका जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 30 मार्च को विरोध प्रदर्शन के दौरान कई छात्रों को हिरासत में लिया गया, जिनमें से दो को संगारेड्डी जेल भेजा गया। इस कदम ने छात्रों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों में आक्रोश पैदा कर दिया।
विश्वविद्यालय का क्या कहना है?
UoH प्रशासन ने स्पष्ट किया कि जुलाई 2024 में सरकार द्वारा किए गए भूमि सर्वे को “प्रारंभिक निरीक्षण” मात्र कहा जा सकता है। विश्वविद्यालय का दावा है कि न तो उन्हें आधिकारिक सूचना दी गई और न ही किसी योजना में उनकी सहमति ली गई।
सरकार की दलीलें
तेलंगाना सरकार का कहना है कि विवादित भूमि UoH की नहीं है, न ही यह कोई संरक्षित वन भूमि है। वे दावा करते हैं कि इस क्षेत्र में मशरूम रॉक जैसी प्राकृतिक संरचनाओं को संरक्षित किया जाएगा और एक पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) के अंतर्गत सतत विकास किया जाएगा।
विरोध में उतरे विपक्षी नेता
BRS के के.टी. रामाराव ने छात्रों पर पुलिस कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा कि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के बिना बुलडोजर चलाना गलत है। वहीं बीजेपी के बंदी संजय कुमार ने सरकार पर विश्वविद्यालय की भूमि को चुपचाप समतल करने का आरोप लगाया।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं की आपत्तियाँ
- वाता फाउंडेशन ने इस भूमि के हस्तांतरण को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है।
- वैज्ञानिक बाबू राव कालपला ने भी दावा किया है कि यह भूमि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अंतर्गत संरक्षित है।
क्या UoH का इस जमीन पर कानूनी दावा है?
2022 में तेलंगाना हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1975 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा UoH को 2,324 एकड़ जमीन आवंटित करने के कोई आधिकारिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, जिससे विश्वविद्यालय का दावा कमजोर पड़ता है।
सरकार का विकास विज़न
राज्य सरकार इस क्षेत्र को एक विश्व-स्तरीय आईटी और इंफ्रास्ट्रक्चर हब के रूप में विकसित करना चाहती है, जो हैदराबाद के पश्चिमी हिस्से के शहरी विकास और आर्थिक वृद्धि के लिए रणनीतिक बताया गया है।
वर्तमान स्थिति
मामला अब तेलंगाना हाई कोर्ट में लंबित है। छात्र आंदोलन जारी हैं और विपक्षी दलों का विरोध तेज होता जा रहा है। सरकार अपनी योजना पर अडिग है और कह रही है कि कोई भी विश्वविद्यालय की भूमि शामिल नहीं है, और विकास कार्य पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ाया जाएगा।