नई दिल्ली । स्वस्थ शरीर, निरोगी काया। मतलब साफ है। स्वस्थ रहना है तो रोगों से दूर रहने के तरीके अपनाने होंगे। सावधानियां रखनी होंगी। जरा सी लापरवाही आपकी सेहत बिगाड़ सकती है। खासकर बदलते मौसम में अधिक सचेत रहने की जरूरत है। आने वाला समय मौसम परिवर्तन का ही है। फिर दीपावली भी निकट है। आतिशबाजी का प्रदूषण कम नहीं होता। एेसे में अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है।
चिंता की बात यह है कि हर साल अस्थमा के रोगी बढ़ रहे हैं। यह रोग किसी को भी हो सकता है। चाहे बच्चे हों या वृद्ध। इस रोग से फेफड़े प्रभावित होते हैं, जिसके चलते सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। एक बार यदि यह रोग हो गया तो हमेशा शिकायत बनी रहती है। इलाज से शिकायत कम हो सकती है, लेकिन इलाज के साथ सचेत रहना बहुत जरूरी है।
मौसम बदलाव के अलावा भी अस्थमा के कई कारण होते हैं। किसी चीज से एलर्जी होने पर अस्थमा की शिकायत हो सकती है। जैसे धूल-मिट्टी, किसी खाद्य पदार्थ। मौसम बदलने के साथ भी अस्थमा होने का खतरा रहता है। कभी-कभी सर्दी लगने, तेज हंसने या चलने से भी अस्थमा की शिकायत हो जाती है। कई लोगों को एक्सरसाइज या फिर अधिक शारीरिक सक्रियता के कारण अस्थमा हो जाता है तो कई लोगों को क्षमता से अधिक काम करने पर भी अस्थमा की शिकायत हो जाती है। इसका एक कारण कफ भी होता है। स्वास्थ्य संबंधी कोई बीमारी जैसे निमोनिया, कार्डियक जैसी बीमारियां होती हैं तो मिमिक अस्थमा हो सकता है। आमतौर पर मिमिक अस्थमा तबियत अधिक खराब होने पर होता है।
यह भी जानें
– हर साल मई के पहले मंगलवार को वर्ल्ड अस्थमा डे मनाया जाता है।
– 2013 से 2017 के बीच ब्लड आईजीई लेवल का सर्वे हुआ। इसकी रिपोर्ट के अनुसार देश में अस्थमा के बढ़ते मरीजों का कारण धूल रेस्पिरेटरी एलर्जी है। यह सर्वे 63,000 से अधिक मरीजों पर हुआ था। महिलाओं की तुलना में एलर्जी से पीड़ित पुरुषों की संख्या अधिक पाई गई।
– बच्चों में अस्थमा के 90 फीसद तथा बड़ों में 50 फीसद मामलों का कारण एलर्जी रिएक्शन होता है।
– धूल, गंदगी, घास, कीड़े, पैट एनिमल के रोंए आदि के कारण अस्थमा हो सकता है।
– इंडियन स्टडी ऑन एपीडेमोलॉजी ऑफ अस्थमा, रेस्पिरेटरी सिंपटम्स एंड क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के अनुसार भारत में अस्थमा से पीड़ित 1.8 करोड़ लोगों में से 2.05 फीसद लोगों की उम्र 15 वर्ष से कम है।
कैसे करें बचाव
– धूल व प्रदूषण से बचना चाहिए। प्रदूषण व धूल वाले स्थानों पर मुंह पर मास्क, रुमाल या कपड़ा रखें।
– अस्थमा का अटैक होने पर घबराएं नहीं। इससे मांस पेशियों पर तनाव बढ़ता है, जिससे सांस लेने में परेशानी बढ़ जाती है।
– मुंह से लंबी लंबी सांस लेते रहें। धीरे-धीरे सांस बाहर की तरफ छोड़ें, गर्म पानी पीएं, बिक्स लगाएं।
– अपनी दवा सदैव साथ रखें। ताकि अटैक पड़ने पर दवा से तत्काल राहत मिल सके और उसके बाद चिकित्सक को दिखाएं।
– कभी-कभी आराम करने से या इन्हेलर की मदद से आस्थमा के अटैक में राहत मिल सकती है।
योग से भगाएं रोग
यूं तो अस्थमा के उपचार के लिए कई चिकित्सा पद्दतियां हैं। बाजार में अनेक दवाएं हैं, जिनके प्रयोग से अस्थमा पर काबू पाया जा सकता है। लंबे समय तक दवा के उपयोग से कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं। इन दवाओं से मरीजों में मून फेस, शुगर, वीक मसल्स, मोतियाबिंद, ऑस्टोपोरेसिस व शरीर में कमजोरी जैसी दिक्कतें आने लगती है। इनहेलर की दवा सीधे फेफड़ों में जाकर अपना प्रभाव दिखाता है। दवा के बिना उपचार का सुरक्षित विकल्प योगासन हो सकता है। इसके लिए बस, उचित विधि और नियमित अभ्यास करना होगा। अस्थमा से बचाव में पासासन योग बहुत प्रभावी है। इस आसन को करने के लिए आप सीधे खड़े हों और घुटनों को झुकाते हुए तलवों को जमीन पर स्थिर रखें। शरीर के ऊपरी हिस्से को दाईं तरफ मोड़ें और शरीर का ऊपरी हिस्सा दाहिने घुटनों तक ले जाने का प्रयास करें। पीठ की तरफ से हाथों को ले जाकर एक हाथ से दूसरे हाथ को कसकर पकड़ें और लंबी सांस लें। निरंतर इसका अभ्यास चार-पांच बार करें। बाद में यह आवर्तियां बढ़ा भी सकते हैं।
फलों से भी इलाज
अलसी – लगातार जलन और खांसी से टिश्यू को काफी नुकसान पहुंचता है, जिसके चलते नियमित अस्थमा अटैक आते रहते हैं। ओमेगा-3 फैटी एसिड फेफड़ों में होने वाली जलन और टिश्युओं को होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड अलसी में भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए अस्थमा से बचने के लिए अपने आहार में अलसी को शामिल करें।
सेब – अस्थमा से बचने के लिए सेब का सेवन कर सकते हैं। इसमें मौजूद फ्लेवोनॉयड्स फेफड़ों को मजबूत बनाने में मददगार होता है।
लहसुन – लगातार होने वाली सर्दी से बचने के लिए लहसुन का नियमित सेवन किया जा सकता है।
प्याज – अस्थमा रोगियों के लिए प्याज फायदेमंद रहता है। कच्चे प्याज में सल्फर बहुत अधिक मात्रा में होता है। इसे फेंफड़ों में आने वाली सूजन कम होती है।
संतरा – संतरे में विटामिन सी अच्छी मात्रा में होती है, जो कि जलन को कम करने में मददगार होती है। विटामिन सी फेफड़ों पर असर करता है और अस्थमा संबंधी शिकायतों से लड़ने में सहायता करता है।