उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का न्यायपालिका पर निशाना: “हमारे पास कोई जवाबदेही न रखने वाले जज हैं”

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को न्यायपालिका पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि देश के न्यायाधीशों की कोई जवाबदेही नहीं है और उन पर देश के कानून लागू नहीं होते। वे उपराष्ट्रपति भवन में आयोजित 6वें राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह में बोल रहे थे।

धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या को लेकर दिए गए फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “न्यायपालिका अब विधायिका और कार्यपालिका की भूमिका भी निभा रही है, लेकिन उस पर कोई जवाबदेही नहीं है।”

यह टिप्पणी जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले के संदर्भ में आई, जिसमें राष्ट्रपति को समयबद्ध निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है।

धनखड़ ने कहा,

“यह कैसा देश बनता जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को निर्देश देना… क्या हमने ऐसी ही लोकतंत्र की कल्पना की थी? अब न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका की भूमिका निभाएंगे, सुपर संसद की तरह काम करेंगे और उनके ऊपर कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि संसद अदालत का फैसला नहीं लिख सकती, लेकिन न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों को जवाबदेह ठहराने की उसकी जिम्मेदारी है।

“आज कार्यपालिका को न्यायिक आदेशों से चलाया जा रहा है, जबकि सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और संसद के प्रति जवाबदेह होती है। लेकिन जब कार्यपालिका के फैसले न्यायपालिका लेगी, तब जवाबदेही किससे पूछी जाएगी?”


अनुच्छेद 142 को बताया “परमाणु मिसाइल”

धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 पर भी सवाल उठाए, जिसे सुप्रीम कोर्ट विशेष शक्तियों के रूप में इस्तेमाल करता है।

“यह अनुच्छेद अब लोकतांत्रिक शक्तियों के विरुद्ध एक 24×7 परमाणु मिसाइल बन चुका है।”


जस्टिस यशवंत वर्मा प्रकरण पर टिप्पणी

उपराष्ट्रपति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने की घटना का भी ज़िक्र किया और सुप्रीम कोर्ट की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा कि घटना के सात दिन बाद तक इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई, और अब एक महीना बीत चुका है लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई।

“अगर एक सामान्य नागरिक के खिलाफ कोई संगीन अपराध होता है तो एफआईआर तुरंत दर्ज होती है, लेकिन जजों के खिलाफ अनुमति की आवश्यकता क्यों? संविधान ने अभियोजन से छूट सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यपाल को दी है, फिर जजों को किस आधार पर यह विशेषाधिकार मिल गया?”

धनखड़ ने न्यायपालिका द्वारा गठित जांच समिति की वैधता पर भी सवाल उठाते हुए कहा:

“जांच कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है, न कि न्यायपालिका का। यह तीन न्यायाधीशों की समिति संविधान के अंतर्गत नहीं आती और इसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है। इसकी सिफारिशें भी अनिश्चित हैं।”


“यह परीक्षण मामला बनना चाहिए” – धनखड़

अपने भाषण के अंत में उन्होंने अपील करते हुए कहा:

“यह एक परीक्षण मामला है जिसे हर संबंधित संस्था को गंभीरता से देखना चाहिए। क्या एक संस्था अपने लिए संविधान से इतर कानून बना सकती है?”

धनखड़ के बयान ने एक बार फिर कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के संतुलन की बहस को गर्म कर दिया है।