योग्यता कभी उम्र की मोहताज नहीं होती, ग्यारह वर्ष की अल्प आयु मे लिख डाली साठ किताब।

जी मै बात कर रहा हु सबसे काम उम्र के साहित्यकार बालक मृगेंदेर की, जिन्होंने यथा नाम तथा गुड़ जैसी कहावत को चरितार्थ कर दिया है.
किताबों से सीखने की उम्र में महज ११ वर्षीय मृगेंद्र ६० किताबें लिख चुके हैं। सभी किताबें प्रकाशित भी है,  कलम के इस बाल सिपाही ने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी समृद्ध लेखनी की सहायता से साहित्य सर्जना की है। चार अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ ही सैकड़ों सम्मान भी अपने कब्जे मे ले चुके है,  वर्तमान में चार विदेशी विभूतियों की आत्मकथा लिखने में कार्यरत हैं। फैजाबाद, उप्र निवासी मृगेंद्र राज का ये सृजनात्मक सफर जिज्ञासा से भरा हुआ है.
कक्षा छह के विद्दार्थी मृगेंद्र की मां डॉ. शक्ति पांडेय असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। पिता राजेश पांडेय केन डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं। शक्ति ने बताया कि बचपन से ही मृगेंद्र का साहित्य में रुझान रहा। महज तीन वर्ष  की अल्पायु  में स्वरचित कविताएं सुनाना शुरू किया। लिखने का शौक समय के साथ बढ़ता गया। सन २०१४  में पहला काव्य संग्रह ‘उद्भव’ आया। मन की व्यथा को शब्दों में उतार ‘उगती खुशियां’ उपन्यास लिखा। उसके बाद प्रकृति की मर्म गाथा के साथ ही बायोग्राफी लिखने का भी सिलसिला शुरू हो गया, जो अब भी जारी है.
मृगेंद्र के कथानुसार , अच्छा लिखने के लिए पहले अच्छा पढऩा जरूरी है। प्रेमचंद और शेक्सपियर की किताबो को पढ़ना इन्हे अच्छा लगता है, मृगेंद्र को यंगेस्ट पोएट ऑफ दि वर्ल्ड, यंगेस्ट मल्टी डायमेंशनल राइटर ऑफ दि वर्ल्ड, यंगेस्ट प्रोलोफिक राइटर ऑफ दि वर्ल्ड, यंगेस्ट टू ऑथर मोस्ट बायोग्राफी ऑफ दि वर्ल्ड का खिताब भी ये हासिल कर चुके है, जैसा कि हम सभी जानते है योग्य वयक्ति के पास सफलता की डोर एवं मंजिलो की सीढिया स्वयं दस्तक देती है वैसा ही बाल्य साहित्यकार मृगेंदेर के साथ भी ऐसा ही है, अभी हल मे ही उनके पास लंदन विवि से भी पीएचडी के लिए निमंत्रण आया है।
अर्पित श्रीवास्तव (Overlook)