सुर्खियों में रहनेवाली रावण की भीम आर्मी की ये है पूरी कहानी

लखनऊ । सहारनपुर के चर्चित दलित नेता की भीम आर्मी गठन महज चौथे वर्ष में ही बेहद चर्चा में आ गई चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण की भीम आर्मी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों का बड़ा संगठन माना जा रहा है। जातीय संघर्ष के आरोपी रावण को आज तड़के ही रासुका के मामले में जेल से रिहा किया गया। अब उनके तेवर और तल्ख हो गए हैं।

भीम आर्मी का गठन करीब तीन वर्ष पहले किया गया। यह पिछड़ी जातियों में खासा प्रचलित है। सहारनपुर तथा पास के क्षेत्र में भीम आर्मी का वर्चस्व दलितों में दिन पर दिन बढ़ रहा है। यहां पर भीम आर्मी काफी आक्रामक रूप से पिछड़ी जातियों से जुड़े युवा और अन्य को जागरूक करने में लगा है। भीम आर्मी के 300 के करीब स्कूल चल रहे हैं। भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को पश्चिमी यूपी में हुए जातिगत संघर्ष का जिम्मेदार बताते हुए यूपी पुलिस ने बीते वर्ष गिरफ्तार किया था। सहारनपुर हिंसा के बाद एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने सार्वजनिक रूप से कहा कि इस हिंसा के पीछे दलित युवा संगठन ‘भीम आर्मी’ है। उन्हें नवंबर में रिहा किया जाना था। पुलिस ने मीडिया मे जारी अपने बयान में कहा कि चंद्रशेखर को सिर्फ बदले हालात और उनकी मां के आग्रह की वजह से आज रिहा किया जा रहा है।

भीम आर्मी की औपचारिक रूप से स्थापना 2015 में हुई थी। इस संगठन का उद्देश्य सहारनपुर में दलितों के हितों की रक्षा के साथ दलित समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना था। सहारनपुर के भादों गांव में संगठन ने पहला स्कूल भी खोला। इससे पहले भी संगठन के लोग दलितों पर हो रहे अत्याचार के लिए तैयार रहते थे। चंद्रशेखर की अगुवाई में 25 युवा भीम आर्मी संभालते हैं। भीम सेना और अंबेडकर सेना भी ऐसे ही संगठन हैं लेकिन भीम सेना हरियाणा में ही काम कर रही है और अंबेडकर सेना का गढ़ पूर्वी यूपी में है। भीम आर्मी दलित शब्द के खिलाफ है और अंबेडकरवादी सोच वालों का स्वागत करती है।

इस ‘भीम आर्मी’ का संस्थापक छुटमलपुर निवासी एक दलित चिंतक सतीश कुमार को बताया जाता है। सतीश कुमार पिछले कई वर्षों से ऐसे संगठन बनाने की जुगत में थे, जो दलितों का उत्पीडऩ करनेवालों को जवाब दे सके। उन्हें कोई योग्य दलित युवा नहीं मिला, जो कमान संभाल सके। ऐसे में सतीश कुमार को जब चंद्रशेखर मिले, तो उन्होंने चंद्रशेखर को ‘भीम आर्मी’ का अध्यक्ष बना दिया। चंद्रशेखर का जन्म सहारनपुर में चटमलपुर के पास धडकूलि गांव में हुआ था। उन्होंने कानून की पढ़ाई की। पहली बार 2015 में विवादों में घिरे थे।

चंद्रशेखर को पसंद है ‘रावण’ नाम

देहरादून से विधि में स्नातक चंद्रशेखर खुद को ‘रावण’ कहलाना पसंद करते हैं। इसके पीछे उनका तर्क हैं कि रावण अपनी बहन शूर्पनखा के अपमान के कारण सीता को उठा लाता है, लेकिन उनका भी सम्मान करता है, उन्हें सम्मान के साथ रखता है। भले ही समाज में रावण का चित्रण नकारात्मक किया जाता रहा हो, लेकिन जो व्यक्ति अपनी बहन के सम्मान के लिए लड़ सकता है और अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता है, वह गलत कैसे हो सकता है।

सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय 

बहुजन समाज पार्टी के बाद भीम आर्मी भी अनुसूचित जातियों की एक बड़ी संगठित इकाई बन चुकी है। जहां मायावती सोशल मीडिया से दूर रहती हैं वहीं भीम आर्मी सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय है जो कि आज की पीढ़ी के युवाओं को प्रभावित करने का बड़ा जरिया है। चंद्रशेखर ने सोशल मीडिया के जरिए काफी सुर्खियां बटोरी हैं। चंद्रशेखर ने फेसबुक और व्हाट्सअप के जरिए लोगों को भीम आर्मी से जोड़ने का काम किया।

दिल्ली में दिखाया था दम

भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने अपनी ताकत उस वक्त दिखायी, जब नयी दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़ी संख्या में दलितों ने पुलिस कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन किया। सहारनपुर में दलित हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन के बाद चंद्रशेखर ने कहा था कि यदि 37 निर्दोष दलित जमानत पर रिहा किये जाएं, तो वह आत्मसमर्पण कर देगा।

मायावती के सामने बड़ा खतरा

भीम आर्मी के संस्थापक और सहारनपुर हिंसा के आरोपित चंद्रशेखर उर्फ रावण से रासुका हटाने और उसे समय से पहले ही रिहा कर योगी आदित्यनाथ सरकार ने अनुसूचित जातियों को साधने के लिए बड़ा दांव खेल दिया है और मायावती के सामने एक बड़ा खतरा भी पैदा कर दिया है। अब तक उत्तर प्रदेश में मायावती ही अनुसूचित जातियों की सबसे बड़ी नेता हैं। मायावती को 2014 के लोकसभा में भले ही एक भी सीट न मिली हो लेकिन भाजपा की आंधी के बावजूद सिर्फ प्रदेश में उनका वोट प्रतिशत लगभग प्रतिशत रहा था। भीम आर्मी का गठन होने के बाद से ही बसपा प्रमुख मायावती उससे खतरा महसूस करती रहीं हैं। मायावती पहले तो भीम आर्मी को आरएसएस की ही चाल बताया था, जहां बसपा में कोई बड़ा चेहरा नहीं है वही अनिसूचित जातियों के युवा में चंद्रशेखर बेहद लोकप्रिय हैं और यह बात मायावती को भी अच्छे तरह से पता है। मायावती ने शब्बीरपुर हिंसा का विरोध किया, लेकिन भीम आर्मी का समर्थन नहीं किया और बिना नाम लिए इसे ‘छोटा मोटा संगठन’ बताया था।