नई दिल्ली । दिल्ली सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना का नाम बदल दिया है। दिल्ली में अब यह मुख्यमंत्री आवास योजना के नाम से जानी जाएगी। दिल्ली सरकार के शहरी विकास मंत्री सत्येंद्र जैन ने सोमवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। हालांकि, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फिलहाल उन्हें इस संबंध में कोई आदेश नहीं मिला है।
बता दें कि दिल्ली सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना को दिल्ली में लागू करने से इनकार कर दिया था, मगर इसके बाद उसकी झुग्गी-झोपड़ियों के पुनर्वास के लिए तैयार की गई स्लम पॉलिसी भी लटक गई थी। दिल्ली सरकार की इस पॉलिसी के तहत झुग्गी वालों को झुग्गी के बदले फ्लैट दिए जाने थे। यह पॉलिसी 2015 से स्वीकृति के लिए लटकी हुई थी।
इस कारण बाद में दिल्ली सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना को दिल्ली में लागू करने पर सहमति जता दी थी, जिसके बाद दिल्ली स्लम पॉलिसी को 2017 में स्वीकृति मिल गई थी। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दिल्ली में करीब सात लाख झुग्गियों का सर्वे कराया जा रहा है, लेकिन इसी बीच दिल्ली सरकार ने इस योजना का नाम बदल दिया है।
ऐसे में आने वाले समय में यह योजना फिर से विवाद में पड़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत प्रत्येक लाभार्थी को मिलने वाली एक लाख रुपये की सरकारी सहायता रुक सकती है। हालांकि, दिल्ली सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि अपनी योजना में वह लाभार्थी को ज्यादा लाभ देने पर विचार कर रही है, मगर नाम बदलने का असर उसकी पॉलिसी के क्रियान्वयन पर पड़ सकता है। क्योंकि दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास योजना को लागू करने के बाद ही दिल्ली स्लम पॉलिसी को मंजूरी मिली थी।
बसों में सीसीटीवी लगाने को केंद्र का इंतजार नहीं करेगी दिल्ली सरकार
बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए दिल्ली सरकार अब केंद्र से वित्तीय मदद का इंतजार नहीं करेगी। यदि केंद्र मदद नहीं करेगा तो दिल्ली सरकार अपने स्तर पर बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाएगी। सूत्रों का कहना है कि एक निजी परामर्श फर्म ने हाल ही में परियोजना पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर जमा की है। इसके लिए निर्भया कोष से केंद्र सरकार पैसा नहीं देती है तो दिल्ली सरकार स्वयं आगे बढ़ेगी।
यह परियोजना उस समय विवाद में आ गई थी जब केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए निर्भया कोष से राशि जारी करने से मना कर दिया था। मंत्रलय ने इस प्रस्ताव की उपयोगिता पर सवाल उठाया था। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस परियोजना पर विचार किया गया है। यह महिलाओं की सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण है। इसलिए इसपर काम किया जाना आवश्यक है।
20 जून 2017 को दिल्ली कैबिनेट ने सीसीटीवी कैमरे लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। दिल्ली सरकार के 2018-19 के वार्षिक बजट दस्तावेज में भी उल्लेख किया गया था कि निर्भया कोष से आवंटित धन का उपयोग इस परियोजना के लिए किया जाएगा। परिवहन विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि परामर्श फर्म अर्नस्ट एंड यंग ने हाल ही में अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
रिपोर्ट फिलहाल परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत के पास मंजूरी के लिए लंबित है। मंजूरी मिलने के बाद टेंडर जारी किए जाएंगे। प्रारंभिक योजना पूरी तरह से सीसीटीवी के बारे में थी, जबकि अब इसके साथ जीपीएस भी लगाया जाएगा। इसके अलावा इसी परियोजना के तहत वाई-फाई सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रस्ताव है। इसके लिए एक ही टेंडर आमंत्रित किया जाएगा।
एक कंपनी के पास तीनों क्षेत्रों में विशेषज्ञता नहीं होगी, इसलिए टेंडर लेने वाली कंपनी अन्य फमोर्ं की सहायता ले सकेगी, लेकिन इसकी जिम्मेदारी मुख्य कंपनी की ही होगी। परियोजना के तहत बसों में तीन सीसीटीवी कैमरों के साथ एक पैनिक बटन होगा। इसे दबाते ही कंट्रोल रूम में बस में हो रही घटना देखी जा सकेगी।