ये है शुभ तिथि आैर मुहूर्त
सावन महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 13 अगस्त 2018 को पड़ रही है। पौराणिक मान्यताआें के अनुसार ये पर्व शिवजी और देवी पार्वती के पुनर्मिलन के प्रतीक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इस व्रत का महातम्य सबसे ज्यादा विवाहयोग्य कन्याआें आैर सुहागन स्त्रियों के लिए होता है। इस बार 13 तारीख सोमवार सुबह 08:36 से इसका शुभ मुहूर्त प्रारंभ होगा और 14 तारीख प्रातः 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।
इन विशेष पूजन सामग्री के साथ एेसे करें पूजा
हरियाली तीज पर शंकर जी आैर पार्वती जी की जोड़े से पूजा की जाती है। पुजा मेंं मुख्य रूप से बेल पत्र , केले के पत्ते, धतूरा, अंकौड़ा, तुलसी, शमी के पत्ते, काले रंग की गीली मिट्टी, यज्ञोपवीत, मौलि और नए वस्त्र का होना जरूरी होता है। साथ ही पार्वती जी के श्रृंगार के लिए चूड़ी, महावर, सिंदूर, बिछुआ, मेहंदी, सुहाग पूड़ा, कंघी, भी शामिल करें। हरियाली तीज के दिन सुबह उठ कर स्नान आदि के बाद मन में पूजा करने का संकल्प लें, आैर पूजा प्रारंभ करें। इसके लिए सबसे पहले काली मिट्टी से शिव, पार्वती आैर गणेश की मूर्ति बनाएं। फिर थाली में सुहाग की सामग्रियों को सजा कर पार्वती जी को अर्पित करें। अब शिव जी को वस्त्र चढ़ाएं। इसके बाद श्रीफल, जल, अबीर, चंदन, चढ़ायें, फिर दही, चीनी, शहद आैर दूध से पंचामृत तैयार करें। पूजन के दौरान ओम उमायै नम:, ओम पार्वत्यै नम: मंत्रों का जाप करते रहें। अब तीज की कथा सुने या पढ़ें। कथा के पश्चात पहले गणेश जी की आैर फिर शिव, पार्वती की आरती करें। इस व्रत में रात्रि जागरण के बाद अगले दिन सुबह पुन तीनों भगवान की पूजा करें आैर पार्वती जी को सिंदूर अर्पित करें। भगवान का भोग लगा कर सर्वप्रथम उसे ही प्रसाद के रुप में ग्रहण कर व्रत खोलें।
हरियाली तीज का महातम्य
शास्त्रों के अनुसार दक्ष प्रजापति की यज्ञाग्नि में देह त्याग करने के बाद इसी दिन शिव और पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था आैर पार्वती के 108वें जन्म में शिवजी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया था। इसलिए इसे सर्जन के दिवस के रूप में स्वीकार किया जाता है। विवाहित महिलाएं तीज पर व्रत रखकर सौभाग्य के लिए शिव और पार्वती की पूजा करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याआें को सुयोग्य वर पाने के लिए व्रत को रखने के लिए कहा जाता है। इस दिन माता पिता विवाहित बेटियों के ससुराल में सिंधारा भेजते हैं। जिसमें सुहाग की सामग्री आैर घेवर जैसे सावन के विशेष मिष्ठान सम्मिलित होते हैं।