ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का रास्ता साफ, कांग्रेस के बदले तेवर; राज्यसभा में भी आसान होगी राह

नई दिल्ली। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का विधेयक गुरुवार को लोकसभा में सर्वसम्मति से पारित हो गया। खास बात यह रही है कि राज्यसभा में पिछली बार इस विधेयक में संशोधन पारित कराने वाली कांग्रेस ने भी लोकसभा में उस संशोधन को खारिज कर दिया। विधेयक पर मतदान के दौरान मौजूद रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके पारित होने पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को बधाई दी। जाहिर है कि अब राज्यसभा में भी इसके निर्विघ्न पारित होने की संभावना है।

चुनावी माहौल में राजनीतिक रंग ले रहे ओबीसी आयोग विधेयक को पांच घंटे की चर्चा के बाद लोकसभा ने पारित कर दिया। कुछ आरोप-प्रत्यारोप के साथ सभी दलों ने माना कि आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की जरूरत है ताकि पिछड़े वर्गो का विकास हो सके। इस बार भी कुछ संशोधन लाए गए थे जिसे सदन ने खारिज कर दिया। बड़ी बात यह थी कि कांग्रेस के तेवर बदले हुए थे।

पिछली बार राज्यसभा में विपक्ष ने अपने बहुमत के आधार पर एक संशोधन पारित करा लिया था जिसमें आयोग में एक अल्पसंख्यक और महिला सदस्य की मौजूदगी को जरूरी बनाया गया था। चूंकि यह धर्म के आधार पर आरक्षण जैसी बात थी लिहाजा भाजपा ने इसे असंवैधानिक करार दिया था। इसी कारण यह विधेयक दोबारा लोकसभा में लाया गया था।

दरअसल, उसके बाद से ही ओबीसी आयोग को लेकर राजनीति तेज हो गई थी। भाजपा की ओर से बार-बार यह दोहराया जा रहा था कि कांग्रेस ओबीसी को अधिकार नहीं देना चाहती। जाहिर तौर पर इससे कांग्रेस के हाथ जल रहे थे और यही कारण है कि पार्टी ने अब रुख बदल लिया है। पार्टी अब ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी जिससे भाजपा को फिर से हमला करने का मौका मिले।

वैसे चर्चा के दौरान पक्ष-विपक्ष के बीच जमकर राजनीति भी हुई। कांग्रेस ने सरकार पर एससी-एसटी और ओबीसी से जुडे़ मुद्दों को लेकर राजनीति करने का मामला उठाया। कांग्रेस सांसद ताम्र ध्वज साहू ने सरकार से ओबीसी के लिए अलग से एक मंत्रालय बनाने की मांग की।

सरकार की ओर से कांग्रेस को करारा जवाब केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने दिया। उन्होंने कहा कि एससी-एसटी को लेकर कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं की ओर से हो-हल्ला किया जा रहा है, लेकिन उनके नेता राहुल गांधी कुछ नहीं बोल रहे हैं। ऐसे में साफ है कि जिस पार्टी के नेता ही एससी-एसटी को लेकर गंभीर नहीं हैं, उनकी पार्टी कितनी गंभीर होगी। वहीं, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि पिछले 10 साल तक आपकी सरकार रही है। आप भी मंत्री रहे हैं, तब क्यों कुछ नहीं किया।

विधेयक में कुछ बदलाव
– आयोग की सिफारिशों पर राज्यपाल की जगह राज्य सरकार से सुझाव लिया जाएगा
– आयोग भी ओबीसी वर्ग के उत्थान में भागीदारी करेगा यानि नीतियों को बनाने में भी मदद देगा। पहले सिर्फ मशविरा देने की बात थी।

बिल से आयोग को मिलने वाले अहम अधिकार
ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद जहां उसे दंड देने का भी अधिकार मिल जाएगा, वहीं जातियों को केंद्रीय सूची में शामिल करने के प्रस्तावों पर भी फैसला ले सकेगा। अभी तक आयोग को ऐसे मामलों में सिर्फ विचार करने का अधिकार था।

ओबीसी मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी
ओबीसी की जनगणना कराई जानी चाहिए। ताकि इनकी आर्थिक स्थिति का पता चल सके। सरकार के पास सभी का आधार डाटा मौजूद है। दो महीने में पूरा कर सकती है।
– धमेंद्र यादव, समाजवादी पार्टी

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तहत 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में सरकार यदि पिछड़ी जातियों को सही मायने में लाभ देना चाहती है तो उसे आरक्षण के इस दायरे को बढ़ाना चाहिए।
– एचडी देवगौड़ा, पूर्व प्रधानमंत्री व जदएस नेता

सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद राज्यों के ओबीसी आयोग के हित प्रभावित नहीं होंगे। राज्यों के लिए उसके नियम बंधनकारी नहीं होंगे।
– भर्तृहरि महताब, भाजपा