नई दिल्ली। एक मरीज की मौत हो गई, क्योंकि आपरेशन में लापरवाही बरती गई थी। इस मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग ने सर गंगा राम अस्पताल पर 10 लाख रुपये जुर्माना लगाया है। आयोग ने कहा कि अस्पताल के डॉक्टरों ने लापरवाही बरती थी और वे सेवा में कोताही बरतने के दोषी हैं। पीड़ित परिवार को मुआवजे की रकम 8 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ अदा की जाए।
डॉक्टर के खिलाफ दर्ज किया था केस
उपभोक्ता आयोग में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी निवासी मीना राम ने सर गंगाराम अस्पताल व वेस्कुलर विभाग के डॉक्टरों के खिलाफ केस दायर किया था। मीना राम का आरोप था कि उनके पति जीवन राम की साल 1998 और 2000 में बाइपास सर्जरी हुई थी। सितंबर 2005 में उनके पति को फिर से तकलीफ हुई तो सिलीगुड़ी से दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल लाया गया।
डॉक्टरों ने जल्दबाजी में ऑपरेशन के लिए मनाया
यहां 9 सितंबर 2005 को डॉक्टरों ने बताया कि तुरंत एंजियोप्लास्टी करनी होगी, नहीं तो मरीज को कभी भी स्ट्रोक हो सकता है। याचिका में आरोप लगाया गया कि डॉक्टरों ने सोचने का भी समय नहीं दिया और जल्दबाजी में ऑपरेशन के लिए मना लिया। कई तरह के टेस्ट करने के बाद ऑपरेशन किया गया।
ऑपरेशन के बाद बिगड़ी हालत
इसके बाद मरीज की एक आंख की रोशनी और बोलने की क्षमता चली गई। मरीज कई दिन आइसीयू में रखने के बाद डिस्चार्ज किया तो 23 अक्टूबर 2005 को मरीज की मौत हो गई।
अस्पताल ने कहा, बताया था रिस्क
आयोग में अस्पताल प्रबंधन की तरफ से जवाब दिया गया कि मरीज की उम्र ज्यादा थी और शरीर की क्षमता के लिहाज से रिस्क बताया गया था। याचिकाकर्ता ने आयोग में कहा कि उन्हें रिस्क नहीं बताया गया। वहीं अस्पताल प्रबंधन ने कहा कि ऑपरेशन से पहले परिजनों की मंजूरी ली गई थी।
मंजूरी लेने में कई गलियां
आयोग ने जब मरीज का रिकॉर्ड चेक किया तो पाया कि मंजूरी वाले फार्म में कई खामियां हैं। मंजूरी लेने में पूरी जिम्मेदारी नहीं निभाई गई। बल्कि सेवा में कोताही बरतते हुए लापरवाही की गई।