
झांसी। बुंदेलखंड में पहली बार महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में सूक्ष्म चीरा (आधा सेंटीमीटर) लगाकर बिना ट्यूब डाले किडनी की पथरी की सर्जरी की गई। इसको पीसीएनएल विधि कहते हैं। इस विधि में न तो दर्द होता है और न ही निशान पड़ता है। जबकि, लैप्रोस्कोपी विधि से सर्जरी में चार निशान लगते हैं।
आमतौर पर गुर्दा रोग शल्य चिकित्सक पथरी की सर्जरी में मरीज को पेट के बल लिटाकर कमर के रास्ते से गुर्दे तक पहुंचते हैं और पथरी निकालते हैं। पारंपरिक विधि में बेहोशी देने के बाद पेट के बल लिटाने से कई मामलों में मरीज को फेफड़ों में दबाव महसूस होता है। सांस लेने में परेशानी होती है, रक्तचाप अनियंत्रित हो जाता है व मरीज असहज हो जाता है। इस कारण कई बार चिकित्सक को सर्जरी टालनी भी पड़ती है। बेहोशी के बाद मरीज की पोजिशन बदलने के दौरान शरीर की हड्डियों में फ्रेक्चर का खतरा रहता है। आसपास के अंगों में जैसे फेफड़े में चोट पहुंच सकती है। पीठ के रास्ते सर्जरी करने के बाद मरीज को लंबे समय तक दर्द रहता है। मगर पीसीएनएल विधि में ऐसा नहीं होता है। डॉक्टर पसलियों के नीचे छोटा सा छेद करते हैं। उसके जरिए दूरबीन विधि से गुर्दे में छेद करके पथरी तोड़कर निकालते हैं। मेडिकल कॉलेज में सोमवार को पहली बार यूरोलॉजिस्ट डॉ. एके सांवल ने इस तकनीक से ऑपरेशन किया गया। उन्होंने बताया कि ये आधुनिक तकनीक है और बेहद कारगर है।
इसलिए नहीं शुरू हो पाई थी
पीसीएनएल विधि से सर्जरी निजी अस्पतालों में खूब होती है लेकिन मेडिकल कॉलेज में कई सालों से ये शुरू नहीं हो पाई थी। बताया गया कि इस विधि से सर्जरी में सीआर्म मशीन की जरूरत होती है, जो कि डेढ़ साल पहले ही मेडिकल कॉलेज में आई। मगर यूरोलॉजिस्ट नहीं थे। फिर इनकी भी नियुक्ति हो गई। इस कारण अब इस विधि से सर्जरी शुरू हो पाई है।
ये भी जानें
पीसीएनएल तकनीक से की जानी वाली सर्जरी में मरीज को कमर के बल लिटाया जाता है। बेहोशी के बाद मरीज की पोजिशन को बदलने की जरूरत नहीं होती है। साथ ही यूरेटर में यदि कोई पथरी फंसी हो तो उसी समय फंसी पथरी को आसानी से निकाला जा सकता है। पारंपरिक तकनीक से की जाने वाली सर्जरी की तुलना में इस तकनीक से की गई सर्जरी से मरीज को ऑपरेशन के बाद होने वाला दर्द भी बहुत कम रहता है।
मेडिकल कॉलेज में पहली बार पीसीएनएल विधि से किडनी की पथरी निकाली गई है। यह बेहद आधुनिक विधि है। इसका बुंदेलखंड के मरीजों को लाभ होगा। – डॉ. अंशुल जैन, उप प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज।