गोरखपुर विश्वविद्यालय पहला स्टार्टअप, कचरे से खाद बनाना और पढ़ाई के साथ साथ रोजगार भी

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में कचरे से जैविक खाद बनाकर पहले स्टार्टअप की शुरुआत कर दी गई है। रोजाना 80 से 90 किलो जैविक खाद तैयार की जा रही है। नर्सरी एवं वाटिका में इस्तेमाल करने वाले लोग खरीद कर इसे ले जा रहे हैं। जल्द ही इसका दायरा बढ़ाने की तैयारी है। खास बात यह है कि अर्न-बाय-लर्न योजना के तहत दो छात्राएं कचरा बनाने से लेकर, प्रबंधन की बारीकियां तो सीख ही रहीं हैं, वे पढ़ाई संग कमाई भी कर रही हैं। विश्वविद्यालय में नॉन प्राफिट कंपनी ‘जीरो वेस्ट कैंपस’ के तहत बायोडिग्रेडेबल वेस्ट से जैविक खाद बनाने के लिए दो मशीनें लगाई गई हैं। एक मशीन विश्वविद्यालय परिसर में बॉटनी म्यूजियम के पास बने भवन में लगाई है तो दूसरी मशीन कुलपति आवास में लगी है। विभागों में कचरा संग्रहण के लिए डिब्बे भी रखे गए हैं। इस योजना के तहत परिसर का कचरा अब बाहर नहीं जाएगा, साथ ही होटल-रेस्टोरेंट से भी कचरा एकत्र कर जैविक खाद तैयार की जाएगी। विद्यार्थी कचरे से बनी जैविक खाद के स्टोरेज, पैकेजिंग और मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभालेंगे।

तीन हजार महीने हुई आय

विश्वविद्यालय बीकॉम की छात्रा मनप्रीत कौर और बीएससी की छात्रा अनामिका इस योजना से जुड़ी हैं। दोनों ही छात्राओं को तीन हजार रुपये महीने की आय हुई है। पढ़ाई के साथ ही वे निर्माण, प्रबंधन व मार्केटिंग भी सीख रहीं हैं। अभी आठ और छात्राओं को इससे जोड़ने की तैयारी है।

20 रुपये किलो है दाम

कचरे से बनी खाद के एक, दो, पांच और दस किलो के पैकेट बनाए गए हैं। खाद का मूल्य 20 रुपये प्रति किलो है।

डॉ नरेश त्रिखा हैं सलाहकार

विश्वविद्यालय ने आईआईएम अहमदाबाद के एलुमिनाई डॉ. नरेश त्रिखा को इस योजना के लिए सलाहकार नामित किया है। वह विश्वविद्यालय में आकर जरूरी सुझाव भी दे चुके हैं।

कोआर्डिनेटर डॉ. स्मृति मल्ल ने बताया कि जीरो वेस्ट कैंपस योजना के तहत इस स्टार्टअप को शुरू किया गया है। अभी शुरुआत हुई है। बड़ा शेड बन रहा है जहां इसे व्यापक रूप दिया जाएगा। नगर निगम से भी एमओयू होगा ताकि प्लास्टिक व अन्य अनुपयोगी कचरा परिसर से बाहर जा सके। मंदिरों के प्रबंधन से भी संवाद कर फूल जुटाएंगे। प्रचार-प्रसार के लिए लगने वाले कृषि मेले में भी इसका प्रजेंटेशन होगा।