आज हजारों बच्चों का ठिकाना है ये स्कूल, एक मां जिसने बेटे को ठीक करने के लिए शुरू किया ‘संकल्प स्पेशल स्कूल’

वो वक्त मेरे लिए बहुत मुश्किलों से भरा था जब मेरे बेटे को ऑटिज्म हुआ। जिसकी वजह से वो मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम है। इलाज के लिए दिल्ली, लखनऊ, बैंग्लोर जैसे तमाम बड़े शहरों में भागे पर कोई फायदा नहीं दिखा। दूसरी तरफ, ससुराल से कोई मोरल या किसी भी तरह का सपोर्ट नहीं मिल रहा था। मेरी रातें डिप्रेशन की दवाएं खाकर गुजरतीं। कई बार सुसाइडल अटैंप्ट्स किए, पर बच गई। मैं और मेरा बेटा दोनों ही मुसीबतों में थे, इससे ज्यादा परेशानियां देखने की हिम्मत शरीर में बची नहीं थी।भास्कर वुमन से बातचीत में दीप्ति कहती हैं, ‘मैंने खुद एमबीबीएस किया। एक डॉक्टर होकर भी अपने बच्चे को ठीक नहीं कर पा रही थी, तो गुस्से में एक दिन अपनी सारी किताबें फाड़ दीं। लग रहा था कि ये किताबें किसी काम की नहीं हैं। शादी के दो साल बाद बेटा हुआ। अभी तो हाथों की मेंहदी का रंग ठीक से छुटा भी नहीं था कि ससुराल के रंग दिखने लगे।

 ससुराल में सोशल और अकैडमिक जिंदगी हुई जीरो
पति भी डॉक्टर, लेकिन दोनों बाप-बेटे में ही रोज लड़ाइयां होतीं। ससुराल में एक दिन खुशनुमा माहौल नहीं दिखा। ससुराल में आने के बाद मेरा न अकैडमिक्स बचा और न सोशल लाइफ। जब बेटा मेंटली चैलेंज्ड पैदा हुआ तो मेरी स्थिति और बुरी हो गई। डॉक्टर होने के बावजूद हम पति-पत्नी नही समझ पाए कि बेटे को क्या दिक्कत है। 

बेटे के शुरुआती लक्षणों पर नहीं दे पाए ध्यान
बेटा भरत पैदा होने के 6-7 महीने तक बिल्कुल ठीक था। उसके बाद मुझे समझ आने लगा कि वो बाकी बच्चों की तरह एक्टिव नहीं था। खुद उठना-बैठना नहीं कर पाता था। हमें उसको सपोर्ट देकर उठाना पड़ता। चलने-फिरने में भी वो देर से चला। मगर मैं खुद ही इमोशनली डिस्टर्ब रहती।

जब ठीक से खड़ा नहीं हुआ बेटा
जब बेटा साढ़े तीन साल का हुआ तब इसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। मुझे वो पहला दिन याद है जब इसे बुरी हालत में देखा। मैं सुबह इसे उठा रही थी ताकि समय से स्कूल पहुंच जाए। इसे दूध पिलाया और कहा कि बर्तन रखकर आ रही हूं तुम टॉयलेट में चलो। तो भरत खड़ा हुआ और गिर पड़ा। मैंने इसे खड़ा कर दिया लेकिन ये फिर गिर पड़ा। तब मुझे लगा कि ये बार-बार क्यों गिर रहा है? इससे पहले भी मैंने अपने बेटे के चेहरे और हाथ-पैर पर झटके आते देखे थे, लेकिन तब कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्यों हो रहा है, लेकिन जब ये बार-बार गिर रहा था तब अपने फैमिली फ्रेंड को फोन किया और उन्हें बेटे की हालत बताई। 

पति से हो गईं अलग
जब बेटे को लेकर बैंग्लोर के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहैंस) गए तो वहां डॉक्टर ने कहा कि मैंटली चैलेंज्ड बच्चों के साथ में अगर कोई भाई-बहन होता है तो उनका डेवलपमेंट बेहतर होता है। इसके बाद मेरी एक बेटी हुई जो अभी 16 साल की है। बेटी पैदा होने से पहले भी मैं डरी हुई थी कि कहीं दोबारा कोई परेशानी न हो जाए। पर वो बिल्कुल ठीक है। बेटा भी थोड़ा ठीक हो रहा था, लेकिन परिवार में स्थिति और बिगड़ती गई। 2014 में जब मैं और बर्दाश्त नहीं कर पाई तो पति से अलग हो गई। इससे पहले भी मैं परेशान थी और मेंटल इलनेस की दवाएं बहुत हैवी डोज खा रही थी।
इसी दौरान लखनऊ में एक दीदी से मिलने गई, उनका वहां स्कूल चलता था। वहां पहुंचने पर उनके एक स्टाफ ने कहा, मैडम आप बात करिए और अपना बच्चा हमें दे दें, हम देख लेंगे। मैंने कहा, ये किसी के पास ज्यादा रुकता नहीं है। पर उस स्टाफ ने बच्चा ले लिया और डेढ़ घंटे बाद मेरे पास भेजा।