
मुंबई — महाराष्ट्र में प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के सरकार के फैसले के खिलाफ राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। शिवसेना (उद्धव बाळासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अध्यक्ष राज ठाकरे ने इस निर्णय को “हिंदी थोपने की कोशिश” और “भाषाई आपातकाल” करार दिया है। दोनों नेताओं ने क्रमशः 6 और 7 जुलाई को बड़े विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की घोषणा की है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे ठाकरे बंधुओं के संभावित पुनर्मिलन की भूमिका के तौर पर देख रहे हैं, विशेष रूप से राज्यभर में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनज़र।
क्या है मामला?
राज्य की भाजपा-नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने हाल ही में आदेश जारी किया कि मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम के कक्षा 1 से 5 तक के स्कूलों में हिंदी सामान्य रूप से तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाएगी, जब तक कि किसी कक्षा में कम से कम 20 छात्र किसी अन्य भाषा का विकल्प नहीं चुनते।
इस आदेश के खिलाफ दोनों ठाकरे नेताओं ने अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आवाज उठाई।
उद्धव ठाकरे: ‘भाषाई आपातकाल की घोषणा’
पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सरकार के फैसले को “भाषाई आपातकाल” करार देते हुए कहा, “हमें हिंदी भाषा से कोई आपत्ति नहीं है, परंतु इसे महाराष्ट्र पर थोपना स्वीकार नहीं। यह महायुति सरकार की तानाशाही सोच को दिखाता है। यह मराठी और हिंदी भाषी लोगों के बीच सौहार्द को ज़हर देकर तोड़ने की साजिश है।”
उद्धव ने 7 जुलाई को आज़ाद मैदान में होने वाले प्रदर्शन में भागीदारी की पुष्टि की और स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी इस निर्णय के खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखेगी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ‘एक राष्ट्र, एक नेता, एक पार्टी’ की विचारधारा के तहत महाराष्ट्र में भी एकछत्र शासन लाना चाहती है।
राज ठाकरे: ‘यह मराठी अस्मिता पर हमला’
राज ठाकरे ने 6 जुलाई को गिरगांव चौपाटी से आज़ाद मैदान तक रैली की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह किसी पार्टी की नहीं, बल्कि मराठी जनता की रैली होगी। “सरकार को यह दिखाना होगा कि महाराष्ट्र क्या चाहता है। यह मराठी अस्मिता पर सीधा हमला है।”
राज ने यह भी संकेत दिया कि वे अन्य राजनीतिक दलों से भी संपर्क करेंगे, जिसमें शिवसेना (उद्धव) भी शामिल हो सकती है। “महाराष्ट्र किसी राजनीतिक लड़ाई से बड़ा है,” उन्होंने कहा।
पवार का समर्थन, समंत का पलटवार
मराठी अभ्यास केंद्र के प्रमुख दीपक पवार के नेतृत्व में कुछ कार्यकर्ताओं ने उद्धव ठाकरे से मुलाकात कर इस मुद्दे पर समर्थन मांगा, जिसे उद्धव ने स्वीकृति दे दी। वहीं दूसरी ओर, राज्य के मराठी भाषा मंत्री और शिवसेना (शिंदे गुट) नेता उदय सामंत ने पलटवार करते हुए कहा कि यह नीति खुद उद्धव सरकार के कार्यकाल में जनवरी 2022 में मंज़ूर की गई थी।
उन्होंने कहा, “महा विकास आघाड़ी सरकार ने अक्टूबर 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को लागू करने के लिए टास्क फोर्स बनाई थी। डॉ. रघुनाथ माशेलकर की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कक्षा 1 से 12 तक तीन भाषाओं—मराठी, अंग्रेज़ी और हिंदी—की अनिवार्यता की सिफारिश की थी। यह निर्णय तत्कालीन उद्धव सरकार की कैबिनेट ने पारित किया था।”
आगे क्या?
भले ही दोनों ठाकरे बंधु अपने-अपने मोर्चे से सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हों, लेकिन यह मुद्दा केवल भाषाई नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बड़ा रंग लेता जा रहा है। आगामी विधानसभा सत्र में इस पर गरमागरम बहस होने की संभावना है। वहीं राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह संघर्ष महाराष्ट्र की भाषा और अस्मिता को लेकर जनभावनाओं को एक बार फिर चुनावी केंद्र में लाने की तैयारी है।