
महाविद्यालय के संचालक ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा कि श्रावणी पर्व समस्त ब्राह्मणों का एक मात्र त्योहार है। इस दिन यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है। वर्ष भर के लिए यज्ञोपवीत सूत्रों का शास्त्रोक्त विधान से पूजन होता है। वर्षभर में सूतक पातक के कारण जब यज्ञोपवीत बदलते हैं, तो इस स्थिति में नया यज्ञोपवीत किया जाता है। इसलिए यज्ञोपवीत धारी हर ब्राह्मण आज श्रावणी के दिन कम से कम 21 यज्ञोपवीत सूत्रों का शुद्धिकरण कर पूजास्थल पर रख लेते हैं। श्रावणी पर्व व रक्षाबंधन पर्व हमेशा श्रावण मास के अंतिम दिन ही मनाए जाते हैं।
वैदिक ब्राह्मण महासभा (पंजी) की ओर से ज्योतिषपीठाधीश्वर शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी माधवाश्रम महाराज के शिष्य केशव स्वरूप ब्रह्मचारी की अध्यक्षता में श्रावणी उपाकर्म व संस्कृत दिवस धूमधाम से मनाया गया। कार्यकर्ताओं ने त्रिवेणी घाट पर गंगा स्नान आदि के बाद गणेश पूजन, हवन आदि किया गया। महाविद्यालय में भी उपनयन यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न हुआ। आचार्य आशीष जुयाल, आचार्य शांति प्रसाद मैठानी ने बटुकों से सामूहिक गणपति पूजन पाठ कराया। विद्यालय अध्यक्ष वंशीधर पोखरियाल ने कहा कि बटुक को ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश एवं वेदाध्ययन के लिए गुरु के पास ले जाने को ही उपनयन कहा जाता है।