यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-18 में एक लाख शिशुओं के जन्म के समय 113 युवतियों की मृत्यु हुई। हालांकि 2014 -16 की तुलना में यह स्थिति अच्छी थी क्योंकि इस दौरान 130 युवतियां शिशु जन्म के समय जान गंवा बैठीं। प्रेग्नेंसी से जुड़ी दिक्कतें ऐसी मौत की बड़ी वजह मानी गई। एक अनुमान के अनुसार 15 से 19 साल की उम्र में मां बनने से भी मौतें हुई। रिपोर्ट के मुताबिक किशोरियाें का शरीर मां बनने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होता है। इस कारण से कच्ची उम्र की प्रेग्नेंसी में अधिक खतरा होता है।
हेल्थ का हाल-बेहाल
चिकित्सक यह स्वीकारते हैं कि छोटे गांव या शहरों में सेक्स के प्रति जागरूकता में कमी और कम उम्र में शादी इन प्रेग्नेंसी की वजह है। वहीं मेट्रो शहरों में ऑनलाइन एक्सपोजर, इस उम्र में सेक्स को लेकर उत्सुकता, सेक्स में नए प्रयोग और को-एजुकेशन सिस्टम में पढ़ाई ऐसी प्रेग्नेंसी की वजहें बनते हैं। ऊंचे तबकों की लड़कियों में टीनएज प्रेग्नेंसी के केसेज बढ़े हैं। इनकी उम्र 16-17 साल होती है। गुरूग्राम के क्लाउडनाइन हॉस्पिटल की गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. रितु सेठी के अनुसार, “ज्यादातर टीनएजर्स को काॅन्ट्रासेप्शन के बारे में पता नहीं होता। यह भी पता नहीं होता है कि अनप्रोटेक्टेड सेक्स से सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज हो सकती हैं। इससे शादी के बाद प्रेग्नेंसी में दिक्कतें आती हैं।
फैमिली का साथ
महिला डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक बेहिचक स्वीकारती हैं कि छोटे शहरों की लड़कियां बड़े शहरों में आती हैं, तो उन पर नए माहौल का प्रेशर होता है। लाइफ में बॉयफ्रेंड का न होना उनको कमतर बनाता है। यह भी पाया गया है कि जॉब कर रही लड़कियां अपनी मर्जी से जिंदगी जीने में यकीन करती हैं और घर से बाहर निकल कर नए माहौल की आजादी उन्हें बेफिक्री तो देती ही है, साथ ही उन्हें अपने शरीर के प्रति लापरवाह बना देती है। सेक्सुअल एक्सपेरिमेंट का किक इस तरह की प्रेग्नेंसी का कारण बनता है। वर्किंग पेरेंट्स के बच्चों में भी टीनएज प्रेग्नेंसी के केस मिलते हैं। इसके अलावा यह जेनरेशन शादी के पहले सेक्स को टैबू भी नहीं मानती है। डॉ. रितु सेठी कहती हैं, “कुछ पेरेंट्स टीनएज बेटियों की प्रेग्नेंसी टेस्ट करने को कहते हैं। उन्हें पता होता है कि समाज में बढ़ा खुलापन और आए नए बदलावों का असर बड़े होते बच्चों पर पड़ रहा है या पड़ चुका है।