समाजवादियों का गढ़ रहा बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र इस दफा लोकसभा चुनाव में दिलचस्प जंग का गवाह बन गया है। यहां अपने-अपने समीकरण साधने में जुटे प्रत्याशियों की नजर खामोश खड़े मुस्लिम मतदाताओं पर टिक गई है। सुरक्षित श्रेणी की सीट पर सपा-बसपा गठबंधन ने चार बार सांसद रह चुके राम सागर रावत को मैदान में उतारा है। जबकि कांग्रेस ने अपने पूर्व सांसद पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया पर दांव लगाया है। वहीं भाजपा की ओर से जैदपुर सीट से मौजूदा विधायक उपेन्द्र रावत हैं।
समाजवाद के प्रणेताओं में शुमार रामसेवक यादव की कर्मभूमि बाराबंकी में 1957 से लेकर ज्यादातर वक्त तक समाजवादियों का ही दबदबा रहा। इस सीट पर आम चुनाव व उपचुनावों के 17 मौकों में से सिर्फ पांच बार कांग्रेस, दो बार बीजेपी और एक बार बसपा के प्रत्याशी जीते हैं। बाकी मौकों पर समाजवादी विचारधारा के जनप्रतिनिधियों ने ही यहां कब्जा किया है। इस लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण अहम है लेकिन जीत-हार का दारोमदार करीब 25% आबादी वाले मुस्लिम मतदाताओं पर रहता है। अब तक मुसलमानों का समर्थन ही किसी भी प्रत्याशी का भाग्य तय करता रहा है।
2009 में बाराबंकी से सांसद रहे पीएल पुनिया द्वारा क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों का फायदा उनके बेटे को मिल सकता है पर गठबंधन प्रत्याशी राम सागर को भी कम नहीं आंका जा सकता। गठजोड़ के बाद उन्हें बसपा का भी पक्का वोट मिलने की सम्भावना है। वहीं भाजपा उम्मीदवार उपेन्द्र रावत का सवाल है तो वह जिस पार्टी से हैं, उसका अपना ठोस वोट बैंक है। वहीं मुसलमान बिल्कुल खामोश है। वह पुनिया के साथ भी दिख रहा है और राम सागर के साथ भी।
राम सेवक लगातार तीन बार जीते : बाराबंकी सीट पर वर्ष 1951-52 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहन लाल सक्सेना तो 1957 में कांग्रेस के ही स्वामी रामानंद शास्त्री चुने गए। हालांकि इसी साल हुए उपचुनाव में रामसेवक यादव यहां से चुनाव जीते। उसके बाद 1962 और 1967 में भी वह क्रमश: सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से सांसद रहे। 1971 में यह सीट फिर कांग्रेस के पास आ गई। 1977 और 1980 के आम चुनाव में यह भारतीय लोकदल और जनता पार्टी सेक्युलर के पास चली गई। 1984 में कमला रावत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। 1989, 1991 और 1996 में राम सागर रावत ने यहां जीत की हैट्रिक लगाई।
अगड़ी जातियों की पहली पसंद मोदी
क्षेत्र में भाजपा, कांग्रेस और गठबंधन के प्रत्याशियों में कांटे की टक्कर है। अगड़ी जातियों के सम्पन्न लोगों के लिए मोदी अब भी पहली पसंद हैं। मगर, छोटे कारोबारियों और निचले तबकों तक आते-आते बाकी विकल्प भी असरदार होते
मुस्लिम वोट बंटने पर भाजपा को फायदा
इस दफा यहां त्रिकोणीय मुकाबला है मगर मुस्लिम वोट जिधर जाएगा, वही जीतेगा। अगर यह बंट गया तो भाजपा को फायदा होगा। बाराबंकी सीट पर कुर्मी, पासी और यादव बिरादरी के मतदाताओं की भी खासी तादाद है। इन्हें लेकर सभी उम्मीदवारों के अपने-अपने दावे हैं। बाराबंकी की सियासत को करीब से जानने वाले रिजवान मुस्तफा का मानना है कि यादव, कुर्मी, रावत, मुसलमान और गठबंधन का वोट राम सागर को मिल सकता है। सपा-बसपा का काडर डबल हो गया लगता है, जिसका फायदा राम सागर को मिलने की संभावना दिखती है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों का वोट पुनिया को भी मिल रहा है और राम सागर को भी। पुनिया को अपने काम, अपने व्यवहार का फायदा मिल रहा है, लेकिन गठबंधन के समीकरण उनके लिए चुनौती बन रहे हैं। भाजपा की कोशिश है कि मुस्लिम वोट में ज्यादा से ज्यादा बंटवारा हो जाए ताकि वह जीत जाए।
पूर्वांचल का प्रवेश द्वार
बाराबंकी जिले को ‘पूर्वांचल के प्रवेश द्वार’ के रूप में भी जाना जाता है, जिसे कई संतों और साधुओं की तपस्या स्थली होने का गौरव प्राप्त है
‘भगवान बारह’ के पुनर्जन्म की पावन भूमि है यह शहर। इस जगह को ‘बानह्न्या’ के रूप में जाना जाने लगा, जो समय के साथ बदलकर बाराबंकी हो गया
बाराबंकी जिला एक रूमाल उत्पादन केंद्र के रूप में उभरा है जहां से अधूरा उत्पाद लिया जाता है और तैयार होने के बाद वापस आपूर्ति की जाती है
कब कौन जीता
1951 मोहन लाल सक्सेना कांग्रेस
1957 स्वामी रामानंद शास्त्री कांग्रेस
राम सेवक यादव निर्दलीय
1962 राम सेवक यादव सोशलिस्ट पार्टी
1967 राम सेवक यादव संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1971 रुद्र प्रताप सिंह कांग्रेस
1977 राम किंकर भारतीय लोक दल
1980 राम किंकर जनता पार्टी (एस)
1984 कमला प्रसाद रावत कांग्रेस
1989 राम सागर रावत जनता दल
1991 राम सागर रावत सपा
1996 राम सागर रावत सपा
1998 बैज नाथ रावत भाजपा
1999 राम सागर रावत सपा
2004 कमला प्रसाद रावत बसपा
2009 पीएल पुनिया कांग्रेस
2014 प्रियंका सिंह रावत भाजपा