नई दिल्ली । उम्मीद के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक समीक्षा बैठक में ब्याज दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया है। आरबीआई ने रेपो रेट को 6.5 फीसद के दर पर बरकरार रखा है। इसके साथ रिवर्स रेपो रेट और बैंक रेट में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है।
क्या रहा फैसला?
आरबीआई ने रिवर्स रेपो रेट को 6.25 फीसद और बैंक रेट को 6.75 फीसद के स्तर पर बनाए रखा है। कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट की वजह से महंगाई में होने वाली कमी की आशंका को देखते हुए आरबीआई ने ब्याज दरों में इजाफा न कर उद्योग को बड़ी राहत दी है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी के कम होकर 7.1 फीसद होने के बाद आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को लेकर चिंताजनक स्थिति बनी हुई थी, जिसे आरबीआई ने दूर करने की कोशिश की है। हालांकि रिजर्व बैंक ने एसएलआर में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2020 के लिए अपने जीडीपी अनुमान को भी 7.5 फीसद पर बरकरार रखा है। वहीं कैश रिजर्व रेश्यो में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है।
आरबीआई ने महंगाई अनुमान घटाया: आरबीआई ने सामान्य मानसून और खाद्य कीमतों में नरमी का हवाला देते हुए दूसरी छमाही के लिए अपने महंगाई अनुमान को भी घटाकर 2.7 से 3.2 फीसद कर दिया जो कि पहले 3.9 से 4.5 फीसद था। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने पॉलिसी बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा, “एनर्जी प्राइज में नरमी के चलते महंगाई दर में नरमी आई है।”
एमपीसी का बयान?
आरबीआई की पॉलिसी स्टेटमेंट में कहा गया, “एमपीसी ने पॉलिसी रेपो रेट को सख्त रुख को बरकरार रखने का फैसला किया है। पॉलिसी रेट को अपरिवर्तित रखने का फैसला सर्व सम्मत नहीं था। रविंद्र एच ढोलकिया ने रुख को न्यूट्रल करने के पक्ष में वोट किया। एमपीसी ने महंगाई दर से मध्यम अवधि के लक्ष्य 4 फीसद को प्राप्त करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।”
आरबीआई एमपीसी बैठक के फैसले:-
- आरबीआई ने रेपो रेट को 6.5 फीसद पर बरकरार रखा
- आरबीआई ने रिवर्स रेपो को 6.25 फीसद पर बरकरार रखा
- आरबीआई ने बैंक रेट को 6.75 फीसद पर बरकरार रखा
- आरबीआई ने सीआरआर को 4 फीसद पर बरकरार रखा
- चालू वित्त वर्ष के लिए 7..4 फीसद जीडीपी ग्रोथ का अनुमान जाहिर किया
- अक्टूबर मार्च अवधि के दौरान महंगाई दर के अनुमान को 2.7 से 3.2 फीसद के आसपास रखा
- रवि की कम बुआई कृषि और ग्रामीण मांग पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है
- वित्तीय बाजार की अनिश्चितताएं, सुस्त होती वैश्विक मांग और बढ़ता व्यापार तनाव निर्यात के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा करता है
- कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से विकास की संभावनाओं को बल मिलेगा