फ्रांस से हुए राफेल विमान सौदे में सरकार पर बड़े घोटाले के आरोप लगे। इसी बीच अब सरकार ने कहा है कि एक राफेल विमान के लिए लगभग 670 करोड़ रुपये चुकाए गए हैं। रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने सोमवार को राज्यसभा में यह जानकारी दी। हालांकि उन्होंने उपकरणों, हथियारों एवं सेवाओं का ब्यौरा देने से इनकार कर दिया। सरकार की ओर से बताया गया कि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) ने 58,000 करोड़ रुपये के राफेल सौदे को 24 अगस्त 2016 में मंजूरी दे दी थी। इस सौदे पर 23 दिसंबर, 2016 को हस्ताक्षर किए गए। आपको बता दें कि कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया था कि सरकार एक राफेल की कीमत 167.70 करोड़ चुका रही है।
यह घोषणा प्रधानमंत्री मोदी की अप्रैल 2015 में हुई फ्रांस यात्रा के 16 महीने बाद की गई थी। पीएम की यात्रा के दौरान राफेल विमानों की खरीद पर सहमति बनी थी। यह जानकारी भामरे ने कांग्रेस सांसद विवेक तनखा के सवाल का जवाब देते हुए दी। विवेक तनखा ने पूछा था कि क्या फ्रांस के साथ सौदे की घोषणा करते समय सीसीएस की मंजूरी मांगी गई थी। 10 अप्रैल, 2015 को पीएम मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा होलांदे के संयुक्त वक्तव्य में कहा गया था कि भारत ने फ्रांस सरकार को भारतीय वायुसेना की अहम ऑपरेशनल जरूरतों के लिए बहुउद्देशीय लड़ाकू विमानों की जरूरत से अवगत कराया है।
भारत सरकार जल्द से जल्द तैयार स्थिति में 36 राफेल विमान खरीदना चाहती है। दोनों नेताओं ने विमानों की आपूर्ति के लिए अंतर-सरकारी सौदे को पूरा करने पर सहमति जताई थी। इसमें कहा गया था कि विमान के साथ वही प्रणाली और हथियार मिलेंगे, जिनका परीक्षण करने के बाद भारतीय वायुसेना ने मंजूरी दी है। लंबे समय तक विमानों की देखरेख की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी। कांग्रेस इस सौदे में हथियारों और उपकरणों का ब्यौरा देने की मांग कर रही है। उसका आरोप है कि यूपीए के शासनकाल में यह सौदा काफी कम में हुआ था।