सरकारी कर्मचारियों से लेकर जन प्रतिनिधि तक रडार पर,घुसपैठियों के मददगारों का नेटवर्क तोड़ने में लगी एटीएस

म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों के सरकारी दस्तावेज बनवाने में मदद करने वाले एटीएस के निशाने पर हैं। एटीएस की रिपोर्ट पर कई जिलों में ऐसे लोगों को चिह्नित किया जा रहा है। इन मददगारों में सरकारी कर्मचारियों से लेकर स्थानीय जन प्रतिनिधि तक शामिल हैं।

बांग्लादेश के नागरिकों के अलावा बड़ी संख्या में म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थी भी यूपी के कई जिलों में आकर रह रहे हैं। इनमें से कुछ मानव तस्करी के धंधे में भी शामिल हो गए हैं। वे दोनों देशों से ऐसे नागरिकों को अवैध रूप में भारत में लाकर जाली प्रपत्रों के सहारे उनके भारतीय दस्तावेज बनवाते हैं। फिर इन भारतीय दस्तावेजों के आधार पर प्राइवेट फैक्ट्रियों में उनकी नौकरी लगवाते हैं। ऐसे अवैध घुसपैठिए मेरठ, बरेली, कानपुर, आगरा, नोएडा व कानपुर जैसे शहरों में काम पा जाते हैं। ज्यादातर तो मीट फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं।

हाल के दिनों में पकड़े गए सभी रोहिंग्या व बांग्लादेशी नागरिकों के पास भारतीय के रूप में पहचान बताने वाले दस्तावेज मिले हैं। कुछ ने तो पासपोर्ट तक बनवा लिए हैं। आधार कार्ड तो लगभग सभी के पास मौजूद थे। म्यांमार व बांग्लादेश से मानव तस्करी करने वाले गिरोह के सरगना मुहम्मद नूर उर्फ नूरुल इस्लाम की गिरफ्तारी के बाद एटीएस को कई अहम सूचनाएं मिली हैं। एटीएस अब इन मददगारों का नेटवर्क तोड़ने में लगी है। राशन कार्ड में नाम जोड़वाकर, फर्जी राशन कार्ड बनवाकर या स्कूलों के जाली प्रमाणपत्र बनवा कर यह गिरोह भारतीय नागरिक के रूप में पहचान पत्र बनवा देता है। इसमें उसके स्थानीय मददगार भी शामिल होते हैं। इनमें पार्षद, ग्राम प्रधान, मदरसों के स्टाफ के अलावा पंचायत व तहसील के सरकारी कर्मचारी भी शामिल होते हैं। अब संदिग्ध पहचान पत्रों का सत्यापन कराते हुए उसे बनवाने में सहयोग करने वालों की तलाश की जा रही है।