मंदिरों में बिखरने लगी झूलनोत्सव की छटा

अयोध्या। रामनगरी के मंदिरों बुधवार से झूलनोत्सव की छटा बिखरने लगी है। इस बार कोरोना के चलते झूलनोत्सव मंदिरों के गर्भगृह तक ही सीमित रह गया है। भक्तों के आगमन पर रोक लगा दी गई है।

बावजूद इसके मंदिरों में कोविड प्रोटोकॉल के बीच झूलनोत्सव की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। पहले दिन दिव्य-भव्य हिंडोले पर विराजे अपने आराध्य का दर्शन कर भक्त निहाल हो उठे।

रामनगरी की प्रतिष्ठित पीठ कनकभवन, श्रीरामबल्लभाकुंज, मणिरामदास की छावनी, दशरथ महल, जानकीघाट बड़ास्थान, सियारामकिला सहित सैकड़ों मंदिरों में बुधवार श्रावण शुक्ल तृतीया से झूलनोत्सव का शुभारंभ हो चुका है।

मंदिरों के गर्भगृह में झूले पर विराजित भगवान के विग्रहों का दर्शन कर भक्त निहाल हो रहे हैं तो कई मंदिरों में गीत-संगीत की महफिल भी सजने लगी है।

सिद्धहस्त कलाकार सावन पर केंद्रित गीतों से आराध्य को रिझाने में तल्लीन नजर आते हैं तो भगवान को मंद-मंद गति से झुला झुलाते संत-धर्माचार्य भी आनंदित हो रहे हैं।

दशरथ महल बड़ास्थान के महंत देवेंद्र प्रसादाचार्य ने बताया कि मंदिर में झूलनोत्सव का आगाज हो चुका है। इस बार कोरोना के चलते सीमित कार्यक्रम होंगे। श्रीराम बल्लभाकुंज में भी झूलनोत्सव की छटा बिखरने लगी है।

अधिकारी राजकुमार दास ने बताया कि गीत-संगीत के आयोजन कोविड गाइडलाइन के तहत आयोजित किए जाएंगे। रामलला के दरबार में झूलनोत्सव की परंपरा अन्य मंदिरों में हटकर है।

रामनगरी के मंदिरों में जहां श्रावण शुक्ल तृतीया से झूलनोत्सव का श्रीगणेश हो जाता है। वहीं रामलला पंचमी से झूले पर विराजते हैं। इस बार रामलला के लिए झूलनोत्सव खास होने जा रहा है।

मंदिर के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि ट्रस्ट की ओर से रामलला के लिए चांदी का झूला निर्मित कराने की जानकारी दी गई है। ऐसा हुआ तो 500 साल बाद रामलला चांदी के झूले पर विराजित होंगे। पंचमी से रामलला के दरबार में झूलनोत्सव की छटा बिखरने लगेगी।