
लखनऊ के जानेमाने इतिहासकार व समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता सलीम किदवई का सोमवार की सुबह 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। रामजस कालेज दिल्ली में मध्यकालीन इतिहास के प्रवक्ता रहे सलीम किदवई की पहचान समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता के रूप में थी। राजधानी में महानगर में उनका आवास था। पारिवारिक सूत्रों का कहना है कि हृदय रोग संबंधी समस्या तो उनकी थी। दो दिन पहले उनकी तबीयत कुछ खऱाब हुई थी।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका व सलीम किदवई की मित्र महरू जाफर कहती हैं कि मेरी समझ से लखनवी तहजीब की नुमाइंदगी करने वाला शख्स हम सबको अकेला कर गया। उन्हें पसंद थे युवा जो सवाल पूछते थे, लखनऊ को, अपने इतिहास को जानना चाहते थे। मशहूर लेखिका कुर्तुल-एन-हैदर के लेखन का अनुवाद उन्होंने ही किया। मल्लिका-ए-गजल बेगम अख्तर के पड़ोसी थे और उन पर भी किताब लिखी।
समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी उन्हें लोगों ने तब जाना जब उन्होंने सेम सेक्स लव इन इंडिया लिखी। महरू जाफर कहती हैं कि वे कहेत थे कि समलैंगिकता कोई पाश्चात्य सभ्यता की देन नहीं बल्कि हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। धारा 377 के विरोध में दाखिल की गई याचिकाओं पर जब सुनवाई चल रही थी, तब उनकी और रुथ वनिता के साथ मिलकर लिखी गई ये किताब की प्रति सुप्रीम कोर्ट में भी रखी गई थी।
महरू बताती हैं कि उनका जन्म बाराबंकी के बरागांव में 1951 में हुआ था। दिल्ली और कनाडा में उन्होंने काम किया लेकिन वे हमेशा लखनऊ के होकर रहे। दो दशक तक दिल्ली में पढ़ाने के बाद उन्होंने समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया। उन्हें अपने घर का गार्डन और टेरेस पसंत था। जहां पर उन्हें नए-नए आइडिया आते थे। सलीम किदवई की भतीजी ज्योत्सना हबीबुल्लाह कहती हैं कि व्यक्तिगत नुकसान तो है ही, पर लखनऊ के साथ-साथ हमारे समाज ने भी एक एसे शख्स को खोया है, जिसकी जुबान का हर एक शब्द तहजीब से भरा था।