जब रक्षक ही बने भक्षक – उत्तर प्रदेश

अर्पित श्रीवास्तव की कलम से..    क्या हम और आप वाकई सुरक्षित है या हमें इस बात का सिर्फ अहसाह कराया जाता  है कि हम लोग सुरक्षित है.

न तो देश के बॉर्डर मे तैनात जवान सुरक्षित है और न ही देश का आम आदमी सुरक्षित है.

देश मे सुरक्षा का आभाव है इस बात को कहते हुए मै खुद से रोश महसूस कर रहा हू.

प्रदेश की राजधानी मे एक आम आदमी की अपने रोजगार से लौटते वक़्त हत्या सिर्फ इस बात पर कर दी जाती है की उसने वर्दी वाले साहब केकहने पर अपनी गाड़ी का ब्रेक नहीं लगाया।

साहब ने उसे उसकी इस गुस्ताखी की सजा मे मृत्यु दंड दिया।

साहब ने एक बार भी नहीं सोचा की उसकी मृत्यु के बाद उसकी पत्नी और दो मासूम बेटियों की जिम्मेदारी को कौन वहन करेगा।

कितनी कुंठा होगी उस नारी पर जिसने करवा चौथ के ठीक १ महीने पहले अपने मांग का सिन्दूर खो दिया वो भी एक सिरफिरे के कारण, क्यासोचेगी वो दो मासूम बच्चिया जिन्होंने अपने सर से पिता का शाया खो दिया वो भी एक आदमखोर की वजह से.

शर्म आनी चाहिए ऐसे बहरूपियों को जिसने देश के झंडे के नीचे खड़े हो कर २४ घंटे की शपथ खाई थी की वो देश की सेवा और उसकी रक्षा एवंअखंडता के लिए सदैव तत्पर रहेगा।

आज क्या उसने अपनी इस हरकत को अंजाम देते वक़्त एक बार भी नहीं सोचा की उसने हत्या ही नहीं की बल्कि देश के गौरव पर सवाल खड़ाकर दिया , उसने ये भी नहीं सोचा की वो भी किसी का पति और किसी का पिता है और जब उससे उसके ही लोग पूछेंगे की तुमने ऐसा क्यू कियातो वो क्या उत्तर देगा अपने इस कृत्य पर.

क्या अब देश का कोई भी व्यक्ति अपने आपको सुरक्षित महसूस करेगा जब रक्षक ही भक्षक बन जाये।

हमें इस विषय पर किसी भी प्रकार की राजनीत नहीं करनी है बल्कि देश के हर इंसान का यह नैतिक दायत्व बनता है की उस परिवार को  इंसाफ दिलाने मे मदद करे और उसके परिवार को भविष्य मे होने वाले जरूरतो को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से  मदद के लिए निवेदन करना चाहिए.

                                                                (अर्पित श्रीवास्तव)