
विधायक बनने के लिए सियासत के सूरमा कई दलों में गोता लगा चुके हैं। कोई दो तो किसी ने तीन पार्टियों से समय-समय पर चुनानी ताल ठोक कर अपनी जीत पक्की की। एक नेता तो किसी समय अपने साथ राजनीतिक दलों के रंग के हिसाब से तीन-तीन टोपी लेकर चलते थे। जिस दल के लोगों से मिलना होता था उसी रंग की टोपी पहन लेते थे।
अलग-अलग दलों से अपने आप को साबित कर चुके पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह के बेटे वर्तमान विधायक फतेह बहादुर सिंह की बात करें तो वह कांग्रेस से लेकर एनसीपी और फिर भाजपा से चुनावी ताल ठोंक चुके हैं। श्री सिंह की बसपा सरकार में भी खूब चली। वह उस सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। फतेह बहादुर 2012 में एनसीपी से लड़े और विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद श्री सिंह ने 2017 में भाजपा का दामन थाम लिया और कैम्पियरगंज से टिकट हासिल कर 2017 में विधायक का ताज अपने नाम कर लिया।
वहीं बात करें चिल्लूपार सीट की तो यहां से दो महारथी दो प्रमुख दलों से चुनाव लड़ चुके हैं। यहां से इकलौते गैर-भाजपा विधायक विनय शंकर तिवारी 2017 में बसपा से विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे थे। चुनाव के ठीक कुछ महीने पहले समीकरण बदला तो बसपा छोड़ सपा में आ गए।
इसी क्षेत्र से 2012 में बसपा से विधायक रहे राजेश त्रिपाठी 2017 में बसपा का मोह त्याग भाजपा के पाले में आ गए। 2017 में इन्हें जीत नहीं मिली लेकिन भाजपा ने इनपर अपना ऐतबार कायम रखा और दोबारा से उन्हें प्रत्याशी बनाया।