गुरुग्राम जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी की मौत, पेट में भरा था ड्रग्स

गुरुग्राम जिला कारागार में उम्रकैद की सजा काट रहे एक कैदी की मंगलवार को संदिग्ध परिस्थति में मौत हो गई। पोस्टमार्टम के दौरान कैदी के पेट से ड्रग्स के 20 पैकेट मिले हैं। जेल प्रशासन ने मौत की वजह बीमारी बताई है। जेल प्रबंधन की सूचना पर मौके पर पहुंची भोंडसी थाना पुलिस ने शव कब्जे में लेकर बुधवार को मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया। मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में हो रहे पोस्टमार्टम के दौरान कैदी के परिजन भी मौजूद थे। परिजनों ने जेल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया है।

जेल प्रबंधन ने पुलिस को दिए बयान में बताया है कि कैदी अखिलेश उर्फ मिथुन (25) को अस्थमा के साथ मानसिक बीमारी थी। कैदी को सात जनवरी को इलाज के लिए पीजीआई रोहतक ले जाया गया था। उसी तारीख को रात में वह जेल में वापस आ गया था। आठ जनवरी को उसकी तबीयत बिगड़ी और मौत हो गई। कैदी के पेट में मिले ड्रग्स के पैकेट छोटे आकार के हैं, उनकी संख्या 18 से 20 बताई जा रही है। आशंका है कि कैदी की मौत इन्हीं पैकेटों की वजह से हुई है। मेडिकल बोर्ड में शामिल फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. दीपक माथुर के मुताबिक इस आशंका की पुष्टि के लिए पोस्टमार्टम के दौरान बिसरा निकाल कर रख लिया गया है। एफएसएल में जांच कराई जाएगी। इसमें साफ हो सकेगा कि कैदी की मौत ड्रग्स की वजह से हुई है या बीमारी से।

2013 में हुई थी सजा

पुलिस के मुताबिक मूल रूप से दरबारीपुर गांव के रहने वाले कैदी मिथुन के खिलाफ खेड़कीदौला थाना पुलिस ने 28 जुलाई 2012 को को लूट और हत्या का मामला दर्ज किया था। मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हुई और तीन सितंबर 2013 को उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जांच अधिकारी सहायक उपनिरीक्षक विनोद के मुताबिक कैदी तभी से जेल में बंद था। जांच अधिकारी के मुताबिक अदालत से सजा होने के बाद से ही मिथुन मानसिक तनाव में रहने लगा था। वह धीरे-धीरे इस बीमारी की चपेट में आ गया, जबकि अस्थमा की बीमारी उसे पहले से थी।

सवाल : पेट में कैसे पहुंची ड्रग्स

इस घटना में जेल प्रशासन पूरी तरह घिरता नजर आ रहा है। पोस्टमार्टम के दौरान कैदी के पेट से मिले ड्रग्स के पैकेटों को लेकर सवाल उठने लगा है कि आखिर कैदी के पेट में इतने सारे पैकेट कैसे पहुंचे। पुलिस को आशंका है कि पिछले दिनों इलाज के लिए बाहर आए कैदी को ड्रग्स उपलब्ध कराई गई थी। उसने इसे निगल लिया। जेल में आने के बाद इन पैकेटों को वह उगल नहीं पाया और शायद इसी वजह से उसकी मौत हो गई।

संगीन : पांच की पहले मौत 

जिला कारागार में बीते नौ महीने में पांच कैदियों की मौत हो चुकी है। इनमें से नूंह के रहने वाले एक कैदी इरफान ने सात अप्रैल को फांसी लगा ली थी। 15 जून को उज्बेकिस्तान की रहने वाली कैदी शाकनोस की ड्रग्स न मिलने की वजह से मौत हो गई। छह जुलाई को बिहार के रहने वाले भूगेन्द्र ने फांसी लगाकर जान दे दी थी। बीते 26-27 सितम्बर की रात को 24 वर्षीय बंदी कुलदीप की टीबी की बीमारी की वजह से मौत हो गई थी।

कैदी के पेट से ड्रग्स के पैकेट मिलना गंभीर मामला

जेल में कैदी की मौत की न्यायिक जांच होती है, अगर कैदी के पेट से ड्रग्स के पैकेट मिले हैं तो यह गंभीर मामला है। जेल प्रशासन से इस संबंध में पूरी रिपोर्ट मांगी जाएगी। -जगजीत सिंह, आईजी जेल  

मोबाइल, ड्रग्स और मौतों को लेकर कठघरे में जेल

गुरुग्राम (अचलेन्द्र कटियार) | प्रदेश की मॉडर्न जेल मोबाइल-ड्रग्स और मौतों को लेकर पहली बार सवालों के घेरे में नहीं है। बीते एक साल में जिला जेल से अलग-अलग तलाशी अभियान में 100 से अधिक मोबाइल मिल चुके हैं। इतना ही नहीं 22 सितंबर, 2018 को फिल्मी स्टाइल में दुष्कर्म का आरोपी जेल से भाग निकला था। तब जेल प्रबंधन की काफी फजीहत हुई थी।

इतना ही नहीं पिछले साल जून के पहले हफ्ते में संदिग्ध हालत में विदेशी महिला कैदी की मौत हो गई थी। पिछले साल ही जमशेदपुर के डॉन अखिलेश सिंह को जेल प्रशासन के अधिकारियों ने वीआईपी सेवाएं मुहैया कराई थीं और जेल में बंद अपनी पत्नी से मिलने दिया था। तब मामले का खुलासा होने पर कई वार्डन को हटाया गया था।

इन सबके अलावा जेल में कई बार कैदियों में आपस में भिड़ंत हो चुकी है, लेकिन इसके बाद भी जेल प्रशासन की तरफ से कोई सुधार सामने नहीं आया है। उच्च क्षमता के जैमरों के न लगने और लगातार मोबाइल बरामद होने के कारण भोंडसी जेल मोबाइल जेल के तौर पर बदनाम हो चुकी है। इसको लेकर जेल स्टाफ पर भी सवाल उठते हैं। जेल में बंद गैंग के गुर्गों के पास मोबाइल मिलते हैं, इसके चलते उनका नेटवर्क नहीं टूट रहा है। पिछले साल फरवरी में दो गुटों के बीच गैंगवार की घटना सामने आई थी। इसमें सात कैदी जख्मी हुए थे।

परिजनों ने लगाए आरोप : पोस्टमार्टम के दौरान आए मृतक के बड़े भाई के मुताबिक मिथुन की मौत शाम को पांच बजे हो चुकी थी, लेकिन जेल प्रबंधन ने तीन घंटे तक मामले को दबाए रखा। उन्हें मामले की जानकारी आठ बजे के बाद दी गई।