
लोक कलाकार और गायक धरम सिंह नेगी ‘धरम दा’ विलुप्त होती कुमाऊंनी लोक संस्कृति को गीतों के जरिये संरक्षित करने में जुटे हैं
नई पीढ़ी अपनी लोक संस्कृति, लोक कला को भूलती जा रही है।
वह गीतों के जरिये लोगों में लोक संस्कृति को संरक्षित करने की अलख जगा रहे हैं। संवाद न्यूज एजेंसी से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी लोककला, लोक संस्कृति को भूलते जा रही है। जगह धान कूटने वाली मशीनें आ गई हैं। उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान घाघरा, आंगड़ी समेत सुत, धागुल, त्रिपली जंजीर आदि आभूषण भी प्रचलन से बाहर हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि लोक परंपरा और लोक संस्कृति को धरोहर के रूप में संजोने की आवश्यकता है। साथ ही पुरानी पीढ़ी की यह जिम्मेदारी है कि अपनी इस पहचान से नई पीढ़ी को अवगत कराए और पारंगत करें।
लोक वाद्य यंत्र भी विलुप्ति के कगार पर
अल्मोड़ा। धरम सिंह नेगी ने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति के हावी होने से लोक कला, संस्कृति पर ग्रहण लगने लगा है। इसके संरक्षण के प्रयास नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ी इनका नाम भी नहीं जान सकेगी।