कोरोना से फीकी पड़ी ‘राग रंग की रंगत

काशी विश्वनाथ धाम यात्रा के अंतर्गत आयोजित शास्त्रीय संगीत घरानों के सम्मेलन ‘राग रंग की रंगत कोरोना के बढ़ते प्रभाव ने फीकी कर दी। केंद्र एवं राज्य सरकार की सांस्कृतिक इकाइयों तथा उनके अधीन संचालित संगठनों के समवेत प्रयास को आयोजन के अंतिम दिन शुक्रवार को जबरदस्त धक्का लगा। न दीर्घा में दर्शक न आभासी मंच पर लाइक और कमेंट।तीसरी संध्या में पद्मविभूषण पं. छन्नूलाल मिश्र और विदुषी अश्विनी भिड़े देशपांडे का गायन स्थगित होने से भी रागरंग की रंगत फीकी पड़ी। पं. छन्नूलाल मिश्र अस्वस्थ होने के कारण नहीं आ सके। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हजारों श्रोताओं के सामने प्रदर्शन करने वाले दिग्गजों का स्वागत दीर्घा की खाली कुर्सियों ने किया। डिजिटल मंच पर भी दर्शकों ने रुचि कम ली। रही सही कसर संचालन ने पूरी कर दी। रूपरेखा बताने के दौरान कलाकारों का नाम लेते हुए उद्घोषिका ने कहा कि इनके आगमन से काशी धन्य हो गई।उस्ताद राशिद खान ने गायन से पहले कहा कि काशी में प्रस्तुति देकर हर कलाकार धन्य हो जाता है। काशी को धन्य कर सके, ऐसा गुणी कलाकार सरस्वती द्वारा रचा जाना शेष है। बांसुरी एवं शहनाई वादक पं.राजेंद्र प्रसन्ना भी संचालन पर बिफरे। उन्होंने कहा एक तो मेरे परिचय में मेरे पिता एवं गुरु पं. रघुनाथ प्रसन्ना का नाम नहीं लिया, ऊपर से हमारे आने से बनारस को धन्य कह दिया। रामपुर घराने के प्रतिनिधि कलाकार पद्मश्री उस्ताद राशिद खान ने राग पूरिया धनाश्री में विलंबित एक ताल में ‘अब तो सत मान के विभोरकारी गायन के बाद छोटा ख्याल में ‘पायलिया झनकार मोरी बंदिश के मर्म का भावपूर्ण सुरचित्र बनाया। समापन राग यमन में गायन से किया। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत में बनारस घराने के बांसुरी एवं शहनाई वादक पं. राजेंद्र प्रसन्ना तथा वायलिन वादक विदुषी कला रामनाथ ने यादगार जुगलबंदी प्रस्तुत की। राग मधुवंती में संगीत रचना तीन ताल में बजाई।दूसरी प्रस्तुति में बनारसी धुन वादन के दौरान सहयोगी शहनाईवादक विकास बाबू की कोशिशों ने भी रंगत बढ़ा दी। राग रंग को ऊर्जा प्रख्यात कलाकार पं. नीलाद्रि कुमार के सितारवादन से मिली। उन्होंने सांध्यकालीन राग तिलक कामोद की अवतारणा की। उन्होंने राग नटतिलक के बाद राग भैरवी में पारंपरिक गत विराम दिया। उप्र. संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष प्रो. राजेश्वर आचार्य ने कलाकारों को सम्मानित किया।