उत्तराखंड के 1200 जलस्रोतों पर सूखने का खतरा

राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के तीन साल से चल रहे अध्ययन में करीब 1200 से अधिक जलस्रोतों के परीक्षण के बाद यह तथ्य सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, पर्वतीय इलाकों में पेयजल आपूर्ति का मुख्य जरिया प्राकृतिक जलस्रोत ही होते हैं। इन पर ही प्रदेश की अधिकतर पेयजल पंपिंग योजनाएं बनाई गई हैं। पर स्रोतों में पानी कम होने से भविष्य में पर्वतीय इलाकों में जल संकट बढ़ने की पूरी आशंका है। इसके अलावा पानी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है। गुणवत्ता खराब हुई तो लोगों में कई तरह की बीमारियां फैलने का भी डर है। इसलिए पानी की गुणवत्ता और जांच के प्रति भी लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है।

प्राकृतिक जलस्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अनियोजित रूप से सड़क निर्माण जलस्रोतों के लिए सबसे बड़ी समस्या है। भविष्य में कई पेयजल योजनाओं में पानी की भारी कमी हो सकती है। इसलिए हम पानी के डिस्चार्ज की कमी को दूर करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों पर काम कर रहे हैं।

अनियोजित सड़क निर्माण और विस्फोटकों का बुरा असर

रिपोर्ट के अनुसार, जलस्रोतों से पानी की निकासी में कमी के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के साथ ही पहाड़ों में अनियोजित रूप से लगातार बन रही सड़कें हैं। पहाड़ों में हो रहे विस्फोटकों के प्रयोग से प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी की निकासी पर सबसे बुरा असर पड़ा है।

पानी की गुणवत्ता की जांच के लिए किट वितरण

केंद्र सरकार की मदद से पानी की गुणवत्ता की जांच को किट तैयार की गई है। इसकी मदद से तुरंत ही पानी की गुणवत्ता के बारे में पता लगाया जा सकता है। ‘यूकॉस्ट’ इस किट के प्रयोग करने के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षण भी दे रहा है। जल संस्थान की मदद से यह किट हर जिले में वितरित की जानी है। इसका मकसद साफ पानी की सप्लाई के साथ लोगों को पेयजल की स्वच्छता के प्रति जागरूक करना भी है।