आज है करोड़ों का टर्नओवर, रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने लिए शुरू किया लेदर का बिजनेस

एक जवान होती लड़की समाज की नजरों की किरकिरी तब बन जाती है जब वह शादी, गहने, कपड़े से ज्यादा पढ़ाई और करिअर को तरजीह देती है। मेरे लिए शादी सेकेंडरी और करिअर प्रायमरी रहा। दिन भर मेरी गाड़ी दौड़ती रहती। सुबह 6 बजे उठती, कॉलेज जाती फिर ऑफिस और वहां से ट्यूशन पढ़ाने के लिए घर की ओर दौड़ती। कई बार स्थिति ये होती कि अगले काम की चिंता में खाना भी ठीक से नसीब नहीं होता। शायद इसी लगन की वजह से दो करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी कर पाई हूं। हम बात कर रहे हैं कानपुर की रहने वाली 38 साल की प्रेरणा वर्मा की। भास्कर वुमन से बातचीत में प्रेरणा कहती हैं, ‘घर में मां भाई और मैं हम तीन लोग हैं। बड़ी बहन होने की वजह से घर की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर पहले आई। घर चलाने के लिए कमाना जरूरी था और मैंने 12वीं के बाद बस्ता घर छोड़ कमाना शुरू किया। नौकरी के सिलसिले में साइबर कैफे पर जाना शुरू किया। वहां मार्केटिंग का काम करती। 2004 में किसी लड़की का साइबर कैफे में जाकर ऑफिस का काम करना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी

यहां से मिली सीख
इसी साइबर कैफे में एक सज्जन मिले जिन्होंने अपने साथ मार्केटिंग का काम करने का सुझाव दिया। पार्टनरशिप पर हमने काम शुरू किया। एक डेढ़ महीने में ये पार्टनरशिप टूट गई, क्योंकि वहां ईमानदारी की डील नहीं हो रही थी। ये अनुभव मेरे लिए लर्निंग प्वॉइंट रहा। पढ़ाई और घर को सस्टेन करने के लिए नौकरी जरूरी थी। पर अब मेरे पास नौकरी नहीं थी, पोस्टग्रेजुएशन पूरी हो चुकी थी।

बिजनेस पर आजमाया हाथ
मैं इतनी क्रीमी लेयर क्लास से नहीं आती कि बिना नौकरी के रह पाती। सोचा कि अब तक किसी दूसरे के लिए मार्केटिंग की है, क्यों न अब कुछ अपना शुरू किया जाए। क्या मालूम बिजनेस चल ही जाए? उस समय मेरे पास मात्र तीन हजार की जमा पूंजी थी। परिवार में कोई भी बिजनेस में नहीं रहा, जहां से मुझे मदद मिल पाती। उन्हीं तीन हजार रुपए से मैंने घर के एक कमरे से लेदर की डोरियों का काम शुरू किया। जहां-जहां संभावना थी उन इंडस्ट्री में गई, खरीददार ढूंढ़ें, सप्लायर मिले। शुरुआत ट्रेडिंग से की। इसी तरह एक दिन ऑर्डर मिल गया और मैंने सप्लाई कर दी। इस तरह बिजनेस की नींव पड़ी।

 शुरू की अपनी कंपनी


‘क्रिएटिव इंडिया’ कंपनी शुरू किए आज 15 साल हो गए हैं। हम लेदर कॉर्ड्स के मैनुफैक्चरर और एक्सपोर्टर हैं। जब काम शुरू किया था तब लेदर भी नहीं पहचान पाती थी। प्रैक्टिस ने परफेक्ट बना दिया। यहां तक पहुंचना बहुत आसान तो नहीं था। आज भी बिजनेस में लड़कियां बहुत कम हैं। जब मैंने शुरू किया था तब लोगों के लिए मानों ‘चार पैरों वाला अजूबा’ थी, क्योंकि फील्ड में ज्यादा लड़कियां नहीं थीं। बहुत बार हंसी का पात्र भी बनी थी। लोगों को लगता लड़कियां बिजनेस नहीं संभाल सकतीं, वे घर अच्छे से संभालती हैं, लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि बिजनेस में सफल होकर दिखाना है। अपनी बाउंड्रीज भी तय कीं।
हार या जीत के बारे में नहीं सोचा बस अपने काम के बारे में सोचा। पर हर जगह माहौल एक जैसा नहीं मिलता कुछ जगहों पर मेरा प्यार से वेलकम भी किया गया। बस वही प्यार मेरी कंपनी की सफलता के लिए ऑक्सीजन साबित हुआ। मुझे डरना नहीं था बस अपने काम की खूबियां बतानी थीं, वो मैंने बताईं और आज 2 करोड़ के टर्नओवर वाली कंपनी चला रही हूं। 

मिल चुके हैं कई सम्मान
जब कोई लड़की घर की देहलीज से इतर काम करती है तो परिवार के लोग ही आपको संदेह की नजरों से देखते हैं, लेकिन जब मुझे 2010 में पहला एक्सपोर्ट परफॉर्मेंस के लिए अवॉर्ड मिला तब लगा कि मैं सही डायरेक्शन में हूं और उन संदेह की नजरों को जवाब भी मिल गया।