सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण पर रोक लगाने से किया इनकार, गुरुवार को होगी अगली सुनवाई

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग द्वारा बिहार में शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने इस मामले की तत्काल सुनवाई की याचिकाकर्ताओं की मांग को स्वीकार करते हुए गुरुवार को अगली सुनवाई तय की है, लेकिन तब तक के लिए मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया पर कोई रोक नहीं लगाई है।

यह विशेष अभियान 24 जून से शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य योग्य मतदाताओं के नाम जोड़ना और अयोग्य मतदाताओं को हटाना है। बिहार में पिछली बार ऐसा विशेष पुनरीक्षण साल 2003 में किया गया था।


क्या है मामला?

इस विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं में राजद सांसद मनोज झा, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, और पूर्व विधायक मुजाहिद आलम शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, शादन फरासत और गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि यह प्रक्रिया लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने की आशंका पैदा करती है, जिससे खासकर महिलाएं और वंचित तबका प्रभावित होंगे।


चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग का कहना है कि यह पुनरीक्षण अभियान शहरीकरण, पलायन, युवाओं की नई मतदाता पात्रता, मौतों की सूचना का अभाव और अवैध विदेशी नागरिकों के नाम सूची में होने जैसी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जरूरी हो गया है।

इस प्रक्रिया के तहत बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर दस्तावेजों की जांच करेंगे। आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह काम मतदाता पात्रता और अयोग्यता के कानूनों के दायरे में रहकर किया जाएगा। साथ ही यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं कि बुजुर्ग, बीमार, दिव्यांग, गरीब और वंचित वर्ग के असली मतदाताओं को परेशान न किया जाए।


सियासी घमासान

इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी दलों के बीच टकराव भी देखने को मिल रहा है।

कांग्रेस ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा, “राज्य मशीनरी के जरिए मतदाताओं को जानबूझकर बाहर करने का खतरा है। लाखों सरकारी कर्मचारी अब तय करेंगे कि कौन सही दस्तावेज रखता है और कौन नहीं।”

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इसे एक “साजिश” करार दिया। उन्होंने कहा, “2003 में जब ऐसा पुनरीक्षण हुआ था तो उसे पूरा होने में दो साल लगे थे। अब चुनाव की अधिसूचना में बस दो महीने बचे हैं और राज्य का 73% हिस्सा बाढ़ से प्रभावित है। ऐसे में 8 करोड़ लोगों की सूची सिर्फ 25 दिन में कैसे बनेगी?”

वहीं, भाजपा नेता और बिहार सरकार में मंत्री नितिन नवीन ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा, “अगर असली मतदाताओं की पहचान और फर्जी मतदाताओं की सफाई हो रही है तो कांग्रेस को इससे क्या दिक्कत है? क्या कांग्रेस फर्जी वोटों से सत्ता में आना चाहती है?”


आगे क्या?

अब पूरे देश की नजर सुप्रीम कोर्ट की गुरुवार को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी है, जहां यह तय हो सकता है कि बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण जारी रहेगा या नहीं।