स्मार्टफोन में अब अनिवार्य होगा ‘संचार साथी’ ऐप, निजता को लेकर बढ़ी बहस

भारत सरकार ने साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के नाम पर सभी नए स्मार्टफोनों में संचार साथी (Sanchar Saathi) ऐप प्री-इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया है। दूरसंचार विभाग (DoT) ने 1 दिसंबर को जारी आदेश में कहा कि मौजूदा फोन पर भी यह ऐप सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए इंस्टॉल कराया जाएगा। आदेश को 90 दिनों के भीतर लागू करना होगा।

सरकार का दावा है कि यह कदम नकली मोबाइल की बिक्री रोकने, साइबर फ्रॉड से बचाने और दूरसंचार संसाधनों के दुरुपयोग पर लगाम लगाने के लिए जरूरी है। लेकिन विपक्ष और साइबर विशेषज्ञ इसे निजता पर गहरा हमला बता रहे हैं।


उपयोगकर्ता ऐप को न हटा सकेंगे, न इसकी सुविधाएं बंद कर सकेंगे

DoT के आदेश के अनुसार:

  • नए स्मार्टफोन में यह ऐप मार्च 2026 से अनिवार्य
  • ऐप को डिलीट या डिसेबल नहीं किया जा सकेगा
  • ऐप फोन में दिखाई दे और एक्सेसिबल हो यह सुनिश्चित करना होगा
  • कंपनियों को 120 दिनों में अनुपालन रिपोर्ट देनी होगी

सरकार के तर्क क्या हैं?

सरकार के अनुसार संचार साथी ऐप में ये प्रमुख सुविधाएं हैं:

  • IMEI नंबर से यह जांचना कि फोन असली है या नहीं
  • चोरी या खोए फोन की शिकायत दर्ज करना
  • फर्जी कॉल/मैसेज की रिपोर्ट करना
  • आपके नाम से सक्रिय सभी मोबाइल नंबरों की जानकारी
  • बैंकों व वित्तीय संस्थानों के विश्वसनीय संपर्क विवरण देखना

DoT का कहना है कि नकली IMEI और चोरी के फोन के पुनः बिक्री को रोकने में यह ऐप मददगार होगा।


लेकिन विशेषज्ञों का सवाल: यह सुरक्षा या निगरानी?

साइबर विशेषज्ञों और नागरिक अधिकार समूहों ने चिंता जताई है कि ऐप कई संवेदनशील अनुमतियाँ (permissions) मांगता है:

  • कॉल रिकॉर्ड और लॉग एक्सेस
  • SMS पढ़ना और भेजना
  • नेटवर्क व डिवाइस स्टेटस एक्सेस

MediaNama के संस्थापक निखिल पाहवा ने कहा:

“यदि ऐप को हटाया नहीं जा सकता, तो यह सरकारी ट्रैकर बन जाता है।”

उन्होंने इसे डेटा गोपनीयता कानून के विरुद्ध और नागरिक स्वतंत्रता पर खतरा बताया।


विपक्ष का हमला

कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने कहा:

“बिग ब्रदर हमारे फोन पर कब्जा कर रहा है। यह Pegasus++ है।”

विशेषज्ञों का सवाल है कि बिना सार्वजनिक परामर्श सरकार ने यह फैसला कैसे ले लिया।


सरकार को क्या करना होगा?

विश्वास बहाल करने के लिए विशेषज्ञों की मांग:

  • ऐप की डेटा सुरक्षा नीति को सार्वजनिक रूप से जारी किया जाए
  • दुरुपयोग रोकने के लिए स्वतंत्र निगरानी प्रणाली बनाई जाए
  • उपयोगकर्ताओं को ऑप्ट-आउट विकल्प दिया जाए