‘एक व्यक्ति, एक परिवार’: सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक मूल्यों के क्षरण पर जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने देश में पारिवारिक मूल्यों के लगातार गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए कहा है कि भारत “एक व्यक्ति, एक परिवार” की ओर बढ़ रहा है।

मामला क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी 27 मार्च को एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर की 68 वर्षीय महिला ने अपने बड़े बेटे को पारिवारिक घर से बेदखल करने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और एस.एन. भट्टी की पीठ ने कहा,
“भारत में हम ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ में विश्वास रखते हैं, यानी पूरी धरती एक परिवार है। लेकिन आज हम अपने निकटतम परिवार में भी एकता बनाए रखने में असमर्थ हो रहे हैं। ‘परिवार’ की मूल अवधारणा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है और हम ‘एक व्यक्ति, एक परिवार’ की स्थिति में पहुंच रहे हैं।”

बच्चों को संपत्ति से बेदखल करने का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि माता-पिता अपने स्व-अर्जित (self-acquired) संपत्ति से बच्चों को केवल उसी स्थिति में बेदखल कर सकते हैं जब यह उनके (माता-पिता के) संरक्षण के लिए आवश्यक हो।

अदालत ने इस मामले में अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज कर दिया, जिसने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत व्यक्ति को घर से बाहर करने का निर्देश दिया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि बेटे ने अपने माता-पिता की देखभाल की, उन्हें भरण-पोषण दिया और उन्हें बेदखल करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।