गया। फल्गु की रेत पर कदमों के निशान बन-मिट रहे। इस निशान की बड़ी महत्ता है। मान्यता यह कि बस यहां पांव भर पड़ जाए तो पुरखों की पीढिय़ां मोक्ष पा लेती हैं। रेत पर पांव पडऩे भर से मिली आत्मिक शांति की यह बयार इन दिनों देश से विदेश तक जा रही है।
हजारों की भीड़। नदी की बीच धारा में पतली से धारा बह रही है। पानी कम है, पर जहां की एक बूंद ही काफी हो वहां यह काफी है। अंजुलि में यही जल लेकर पितरों-पुरखों को याद करता हुजूम यहां यूं ही नहीं है। पितृपक्ष का पावन मेला शुरू हो चुका है।
सनातन आस्था के इस महान कर्मकांडीय स्वरूप को तो सिर्फ यहां आकर ही महसूस किया जा सकता है, जहां पूरे श्रद्धा भाव से लोग अपने पूर्वजों को याद कर रहे। यह सनातन ताकत ही है कि रूस, अमेरिका और दूसरे देशों से भी लोग यहां पहुंच रहे।
मंगलवार को मारिया अलेक्सांद्रवना, ख्वालिवोअन सबीना और एलेक्स आई यहां तर्पण को पहुंचे। सबीना रूस की हैं। यूएसए में साइकोलॉजिस्ट हैं। उन्होंने सनातन परंपरा पर काफी शोध किया है। गीता पढ़ा है। इस सनातन सत्य से काफी प्रभावित हैं कि ब्रह्मांड में निर्माण का सिलसिला चलता रहेगा। आत्मा अमर है।
मारिया भी रूस की हैं, मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर हैं। उनके साथ एलेक्स भी आए हैं। ये लोग लोकनाथ गौड़ और उनकी पत्नी एक्ट्रीना के साथ आए हुए हैं। इनलोगों ने फल्गु तट पर पितरों को पूरी श्रद्धा और कर्मकांडीय परंपरा के साथ तर्पण किया। गयाजी के देवघाट पर हजारों की भीड़ चली आ रही है। बूढ़े-बुजुर्ग, महिलाएं भी। हां, बच्चे भी हैं। सनातन परंपरा से साक्षात्कार करती नई पीढ़ी। चलने-फिरने में असमर्थ बुजुर्ग भी पिंडादान को पहुंचे हैं।
सदियों की परंपरा किस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी बरकरार है, पितृसंगम का यह मेला इसकी गवाही दे रहा। मध्यप्रदेश से आए लक्ष्मण कहते हैं, यहां आकर हम धन्य हो गए। उनके साथ पूरी जमात है। उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली से लेकर दक्षिण भारत तक से लोग आए हुए हैं। यही है वह सनातन विश्वास, जिसने देश-दुनिया के लोगों को इस तट पर एक साथ खड़ा कर दिया है।