भाजपा नेतृत्व ने उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रभारियों की नई टीम उतारकर इस नए पहाड़ी राज्य में सामूहिक नेतृत्व को मजबूती दी है। इस भूमिका में सभी नए नेता होने से वह पार्टी की अंदरूनी खामियों को बिना किसी पसंद-नापसंद के दूर कर सकेंगे। साथ ही सभी को एक साथ लेकर भी चलेंगे।
राज्य में भाजपा का कांग्रेस से सीधा मुकाबला होता रहा है, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी राज्य में दस्तक दे रही है। उत्तराखंड में बीते एक-डेढ़ साल में बड़े बदलाव हुए हैं। इस दौरान पुष्कर सिंह धामी भाजपा के तीसरे मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। धामी एकदम नए हैं और विधायक से सीधे मुख्यमंत्री बने हैं। उनको जिस भाजपा के साथ चुनावों का सामना करना है, उसमें पार्टी के भीतर ही उनसे वरिष्ठ कई नेता हैं और सामने विपक्ष में भी कद्दावर नेता हैं।
ऐसे में भाजपा की अपनी एकजुटता सबसे अहम होगी। नई चुनावी टीम के सामने यह एक सबसे बड़ा काम होगा। चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी और उनके दो सह प्रभारियों सांसद लॉकेट चटर्जी व राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह के लिए यह पहली बड़ी चुनावी जिम्मेदारी है। आरपी सिंह पहले भी उत्तराखंड में चुनावी कामों से जुड़े रहे हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ाने की यह पहली जिम्मेदारी है।
राज्य के तराई के इलाके में कई सीटों पर सिख समुदाय की काफी अहम भूमिका है। ऐसे में उनके बीच आरपी सिंह ज्यादा बेहतर ढंग से काम कर सकेंगे और सामाजिक समझ के साथ मजबूत चुनाव प्रबंधन कर सकेंगे। लॉकेट चटर्जी जुझारू भूमिका वाली नेता हैं।
प्रहलाद जोशी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं और उप नाम में जोशी जुड़ा होने का एक अतिरिक्त लाभ भी उनके साथ जुड़ सकता है। संसदीय कार्य मंत्री के रूप में सबको साथ लेने में उनकी योग्यता अब उत्तराखंड की चुनावी राजनीति में सामने आएगी।
सूत्रों के अनुसार, जोशी कांग्रेस व आम आदमी पार्टी की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति तो बनाएंगे ही, साथ ही पार्टी के भीतर के क्षेत्रवाद व जातिवाद के साथ गुटबाजी पर भी प्रभावी नियंत्रण कर सकेंगे। उत्तराखंड के लिए नए होने से यहां पर उनकी अपनी पसंद व नापसंद भी नहीं होगी।
बीते चुनाव में नड्डा खुद थे प्रभारी
गौरतलब है कि बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां के चुनाव प्रभारी के रूप में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा व धर्मेंद्र प्रधान तैनात थे। इन दोनों के प्रबंधन में पार्टी को खासी सफलता मिली थी। अब नड्डा पार्टी अध्यक्ष हैं। निश्चित रूप से चुनावी प्रभारी तय करने में उन्होंने अपने पिछले अनुभवों को ध्यान में रखा होगा। ऐसे में नई केंद्रीय चुनावी टीम को नड्डा की जरूरी सलाह भी मिलती रहेगी।