गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से वर्तमान सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ही लगातार चौथी बार कांग्रेस के प्रत्याशी रहेंगे। 1957, जब से गुना संसदीय सीट अस्तित्व में आई, तब से सिर्फ एक चुनाव ही ऐसा रहा, जिसमें जीतने वाले प्रत्याशी न तो इस परिवार के थे न खेमे के।
इस दौरान हुए कुल 14 चुनाव व उपचुनाव में से 12 में सिंधिया परिवार के तीन सदस्यों में से ही कोई न कोई जीतता रहा। पार्टी भले ही कोई भी रही हो। उनके पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद वे सबसे पहले 2002 के उपचुनाव में चुनावी राजनीति में उतरे। तब उन्होंने 4 लाख से ज्यादा मतों से जीत हासिल की। हालांकि 2004 के आम चुनावों में वे फिर जीते लेकिन सिर्फ 80 हजार वोट से। इसके बाद 2008 और 2014 में उन्होंने फिर यह सीट जीती। दूसरी ओर उनके खिलाफ अब तक 4 चुनाव में भाजपा हर बार कोई न कोई नया चेहरा आजमाती रही है।इस बार यही अटकलें हैं कि भाजपा उनके खिलाफ कोई नया प्रत्याशी उतारेगी।
जिले के तीन विस क्षेत्र आते हैं संसदीय क्षेत्र में : गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में कुल 8 विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें से दो गुना जिले की हैं। जबकि अशोकनगर की तीन। बाकी 3 विधानसभा शिवपुरी जिले की हैं। अशोकनगर जिले की तीनों विधानसभाओं में कुल 552126 मतदाता हैं। इनमें 294074 पुरुष और 258040 महिला मतदाता एवं अन्य 12 मतदाता है।
यहां सिर्फ दो बार सिंधिया परिवार के अलावा कोई जीता: 1957 में हुए पहले चुनाव में विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर जीती थीं। तब से दो मौके ही ऐसे आए जब इस सीट पर गैर सिंधिया परिवार का कोई व्यक्ति चुनाव जीता। इनमें एक रामसहाय शिवप्रसाद पांडे थे, जो 1962 में कांग्रेस के टिकट पर जीते। वे मुंबई से ताल्लुक रखते थे। दरअसल वे गुना सीट के एकमात्र सांसद रहे जो न तो सिंधिया परिवार के थे न ही उनके खेमे के। इसके बाद 1984 में महेंद्र सिंह कालूखेड़ा जीते, जो सिंधिया परिवार के सबसे विश्वस्त नेताओं में थे।
अटकलों पर लगा विराम: इस बार राजनीतिक गलियारों में क्षेत्रीय सांसद के साथ उनकी पत्नी प्रियदर्शनी राजे सिंधिया का नाम भी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में उभर कर आया था। वहीं उनके लगातार संसदीय क्षेत्र में दौरे और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ हर पोलिंग की समीक्षा को देखते हुए लोग उनको भी संभावित प्रत्याशी के तौर पर देख रहे थे लेकिन शुक्रवार की शाम इस तरह की तमाम अटकलों पर टिकट घोषणा के बाद विराम लग गया।