जम्मू। कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव और मजबूत खुफिया तंत्र से घबराए आतंकी अब गांवों में घुसने से कतरा रहे हैं। यहां तक की इस कड़ाके की ठंड में वह किसी ग्रामीण या ओवरग्राउंड वर्कर के आवास में शरण लेने के बजाय नदी, नालों के पास या फिर किसी बाग और जंगल में ठिकाने खोज रहे हैं। इसके अलावा कहीं प्राकृतिक सुरंग मिल जाए तो बेहतर, अन्यथा भूमिगत ठिकाना भी खुद ही तैयार कर रहे हैं।
कुछ दिन पहले हिज्ब कमांडर रियाज नायकू और उसके साथियों द्वारा भूमिगत ठिकाने के लिए की जा रही खोदाई का वीडियो वायरल हुआ था। उस समय सुरक्षा एजेंसियों ने इसे प्रचार का एक हथकंडा समझा था, लेकिन कुछ दिनों में पुलवामा और शोपियां में हुई मुठभेड़ों ने साबित कर दिया कि यह वीडियो सिर्फ प्रचार का हथकंडा नहीं बल्कि उनकी मजबूरी है।
पिछले करीब एक महीने में सुरक्षाबलों ने लश्कर, हिज्ब और अंसार-उल-गजवा-ए-हिंद के डेढ़ दर्जन आतंकियों को अनंतनाग, पुलवामा और शोपियां में मार गिराया। यह सभी आतंकी किसी आम नागरिक, रिश्तेदार या किसी ओवरग्राउंड वर्कर के ठिकाने में नहीं, किसी खेत, बाग या नाले के पास बने ठिकाने में छिपे थे। प्रत्येक ठिकाने में तीन से ज्यादा आतंकी थे।
आतंकी अपने लिए खुद बना रहे हैं ठिकाना
दक्षिण कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रही सेना की विक्टर फोर्स में ब्रिगेडियर रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि आतंकियों को अब नागरिक इलाकों में सुरक्षित ठिकाने नहीं मिल रहे हैं। लोग उन्हें आसानी से जगह नहीं देते, इसलिए वह अपने लिए खुद ठिकाने बना रहे हैं। पुलिस, सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के आपसी समन्वय और खुफिया तंत्र की मुस्तैदी के कारण ही आतंकियों का यह हाल है। क्योंकि आतंकी आज किसी मोहल्ले में जाते हैं तो, जल्द ही हमारा मजबूत खफिया तंत्र उनकी उपस्थिति का पता लगा लेता है और आतंकियों का बच निकलना मुश्किल हो जाता है। इस साल अब तक करीब 250 आतंकी मारे गए हैं। यह मजबूत खुफिया तंत्र से ही संभव हो पाया है।
सीआरपीएफ के महानिरीक्षक जुल्फिकार हसन ने कहा कि हमारे लिए आतंकियों के भूमिगत ठिकाने नए नहीं हैं। पहले भी कई बार हमनें जंगलों और नदी नालों में इनके ठिकाने तबाह किए हैं। लेकिन अब आतंकी सुरक्षाबलों के बढ़ते दबाव के बीच बस्तियों में जाने के बजाय खुद ही ठिकाने बनाने पर मजबूर हैं।
आतंकी मकान किसी भी मकान में जाने से बच रहे हैं
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ अहमद फैयाज ने कहा कि सिरनू या एक दो और मुठभेड़ों को अगर छोड़ दिया जाए तो बीते दो तीन महीने के दौरान आतंकियों के समर्थन में होने वाला पथराव ज्यादा नहीं रहा है। यही पथराव नागरिक इलाकों में आतंकियों के लिए बच निकलने का एक बड़ा जरिया होता था। इसके अलावा आतंकी जब किसी मकान में जाते हैं तो मुठभेड़ में सिर्फ वही एक मकान नहीं बल्कि उसके साथ सटे एक दो मकान और भी तबाह होते हैं। इसके कारण भी कई लोग उन्हें अब अपने घर में शरण नहीं देते या फिर आतंकी भी किसी मकान में जाने से बच रहे हैं।