यमुना नदी के जल को दिल्लीवाले ही जहरीला बना रहे हैं। नदी की सफाई पर निगरानी रखने वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक वजीराबाद से ओखला के बीच महज 22 किलोमीटर की दूरी में यमुना नदी 76 फीसदी मैली है। यह दूरी यमुना की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी ) को सौंपी रिपोर्ट में उच्चस्तरीय समिति ने कहा है कि नदी में साल के नौ महीने सीवर का पानी बहता रहता है। यमुना नदी खुद को जिंदा रखने के लिए संघर्ष कर रही है। उसका पुनरूद्धार तब तक संभव नहीं है जब तक जल का न्यूनतम प्रवाह न हो।
दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव रहीं शैलजा चंद्रा और एनजीटी के पूर्व विशेषज्ञ सदस्य बीएस साजवान ने रिपोर्ट में कहा है कि पल्ला एवं वजीराबाद में जल की गुणवत्ता जांचने के लिए ऑनलाइन प्रणाली लगाई जाएगी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को यह निर्देश दिए गए हैं।
अब तक क्या
एनजीटी ने ‘मैली से निर्मल युमना’ बनाने के लिए दिल्ली जल बोर्ड को 32 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का आदेश दिया है। सीवर के पानी को यमुना नदी में बहाने की बजाए खेती, बागवानी और निर्माण कार्यों में इस्तेमाल करने की योजना है। लेकिन यह वर्ष 2031 तक ही संभव है।
यमुना वाहिनी की तैनाती
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह कानपुर, प्रयागराज में गंगा नदी को गंदगी से बचाने के लिए पूर्व सैनिकों को गंगा वाहिनी के रूप में तैनात किया गया है उसी तर्ज पर दिल्ली में यमुना वाहिनी की तैनाती की जाए। 31 दिसंबर को इस पर फैसला होना है।