बड़े भाई के रूप में आए नेता जी-शिवपाल के पोस्टर में न बैनर में, फिर भी मंच पर मुलायम

लखनऊ। लंबे समय से समाजवादी पार्टी का स्लोगन ‘मन से हैं मुलायम, पर इरादे लोहा है कल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के शिवपाल सिंह यादव की जनाक्रोश रैली में दिख ही गया। लखनऊ में शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की रैली के पोस्टर और बैनर से मुलायम सिंह यादव नदारद थे लेकिन, मंच पर पहुंचकर उन्होंने सभी को चौंका दिया। साबित हो गया कि उनका मन बेहद मुलायम है।

कयास लगाया जा रहा था कि कल शिवपाल सिंह यादव की रैली में मुलायम सिंह यादव नहीं आएंगे। वजह यह कि पिछले दिनों मुलायम के जन्मदिन पर शिवपाल के बहुप्रचारित सैफई के कार्यक्रम में न जाकर उन्होंने अपने पुत्र सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पार्टी का मंच चुना था। जनाक्रोश रैली में उनके पहुंचने से चौंकने वाले लोग तब और हैरान हो गए जब मुलायम सिंह यादव यहां पर समाजवादी पार्टी के ही गुण गाने लगे। इससे शिवपाल सिंह यादव के समर्थक बौखलाए और अपनी नाराजगी का इजहार भी किया। मुलायम की इस पैंतरेबाजी के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।

कुनबे की कलह के बाद समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपनी प्रतिबद्धता बेटे अखिलेश और समाजवादी पार्टी के साथ तय कर दी है। इस दौरान हालांकि वह बीच-बीच में शिवपाल सिंह के कार्यक्रमों में भी जाते रहे हैं। गत सात दिसंबर को फीरोजाबाद में हुई समाजवादी पार्टी की रैली में अखिलेश के साथ मंच पर पहुंचकर उन्होंने यह साफ कर दिया था कि वह किस पाले में हैैं। चूंकि इसके संकेत पहले भी मिल चुके थे, इसलिए इस रैली में शिवपाल समर्थकों ने उनसे अपनी दूरियों का अहसास कराना भी शुरू कर दिया था। पोस्टर-बैनर से मुलायम का चेहरा गायब होना इसी का हिस्सा था। मुलायम को बुलाने के सवाल पर शिवपाल सिंह ने यह कह भी दिया था कि उनकी ओर से नेताजी फ्री हैं।

फिर भी मुलायम सिंह यादव रैली में पहुंचे तो उनकी मंशा पर सवाल उठना स्वाभाविक था। वह भी समाजवादी पार्टी के बाने में, यानी लाल टोपी और लाल-हरे दुपट्टे में। उनकी जुबान पर भी सपा ही रही लेकिन, जब शोरशराबा बढ़ा और नारेबाजी ने हूटिंग का रूप अख्तियार कर लिया तो उन्होंने शिवपाल को आशीर्वाद भी दिया।

मुलायम के इस कदम से सपाई भी सकते में हैैं कि शिवपाल को इसका किस तरह का राजनीतिक लाभ मिल सकता है। शिवपाल खुद को असली लोहियावादी कहते रहे हैैं और मुलायम की मौजूदगी उनके इस दावे को और पुख्ता करेगी। फिलहाल प्रसपा के नेता उनके इस कदम पर कोई टिप्पणी करने से बचना चाहते हैैं। यहां तक कि उन्हें रैली में बुलाया गया था या नहीं, इस पर भी उनकी चुप्पी है।

गौरतलब है कि मुलायम अपने भाई शिवपाल के साथ कई मौकों पर खड़े जरूर नजर आते हैैं लेकिन पक्ष उन्होंने अखिलेश का ही लिया है। इसके पीछे समाजवादी पार्टी को अथक मेहनत से खड़ा करना भी हो सकता है। इससे पहले लोहिया ट्रस्ट में एक बार सेक्युलर मोर्चा के गठन की घोषणा लगभग तय हो गई थी लेकिन, मुलायम एन वक्त पर मुकर गए थे। इसी वजह से इस बार भी उनकी मौजूदगी तरह-तरह की चर्चाओं को जन्म दे गई है।

अपर्णा यादव भी मंच पर

लखनऊ के रमाबाई आंबेडकर मैदान में आयोजित प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की रैली में कार्यकर्ताओं का अभिवादन करते मुलायम सिंह यादव साथ में शिवपाल सिंह यादव व अपर्णा यादव ।

अरे नेताजी यह क्या..

लखनऊ के रमा बाई आंबेडकर मैदान में आयोजित प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की रैली में जब मुलायम सिंह यादव ने सपा को मजबूत करने की बातें कहनी शुरू की, तो शिवपाल सिंह यादव ने अपने दोनों कान ढंक लिए।

बड़े भाई का आशीर्वाद

लखनऊ के रमाबाई आंबेडकर मैदान में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की जनाक्रोश रैली में पहुंचे मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को मजबूत करने की बात कही जरूर लेकिन छोटे भाई शिवपाल के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद भी दिया।

आप ये क्या कह रहे हो

लखनऊ के रमा बाई आंबेडकर मैदान में आयोजित प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की रैली में जब मुलायम सिंह यादव ने मंच से समाजवादी पार्टी को मजबूत करने की बातें कहनी शुरू की, तो शिवपाल सिंह यादव ने उन्हें अपनी पार्टी का नाम बताया। हालांकि फिर भी वे समाजवादी पार्टी ही कहते रहे।

अपनी नई राजनीतिक पारी में मुलायम का हाथ शिवपाल कितना लाभ पहुंचाएगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन, शिवपाल समर्थकों की उनसे दूरियां बढ़ चुकी हैं। रैली के लिए लगाए गए शिवपाल के होर्डिंग्स से मुलायम गायब थे। क्या रैली में मुलायम को बुलाया गया था, इस पर भी पार्टी के लोग गोलमोल जवाब ही देते रहे। हालांकि उन्होंने आकर इस सवाल को ही खत्म कर दिया है और इसे भी उनका चरखा दांव ही माना जा रहा है, जबकि मुलायम की ख्याति अपनों का साथ कभी न छोडऩे की रही है। मुलायम सिंह यादव तो अखिलेश के साथ हैं लेकिन शिवपाल के खिलाफ नहीं हैं। शिवपाल और अखिलेश तो एक-दूसरे के विरोधी हैं। यह दोनों अक्षय से प्यार करते हैं लेकिन प्रोफेसर के बेटे अक्षय तो अखिलेश के साथ है। प्रतीक तो अखिलेश की इज्जत करते हैं लेकिन पापा मुलायम के साथ हैं।