अयोध्या। छह दिसंबर से पहले अयोध्या में हलचल शुरू हो गई है। तपस्वी छावनी के महंत परमहंस को 14 दिन की न्यायिक रिमांड पर भेजा गया है। मंगलवार सुबह संत परमहंस को सीजेएम कोर्ट में पुलिस ने पेश किया। बताया जा रहा है कि अब इसके बाद उन्हें जेल भेजने की तैयारी है।
गौरतलब हो कि राम मंदिर निर्माण को लेकर तपस्वी छावनी के महंत परमहंस ने आमरण अनशन पर बैठे थे। उस दौरान महंत परमहंस ने कहा था कि केंद्र की मोदी सरकार पांच दिसंबर तक राम मंदिर के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करे, नहीं तो छह दिसंबर को वह आत्मदाह कर लेंगे। उधर, तबीयत बिगड़ने पर पुलिस ने उन्हें पीजीआई में भर्ती कराया था। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जूस पिलाकर तपस्वी का अनशन तुड़वाया था।
तपस्वी ने सजा रखी थी चिता
केंद्र की मोदी सरकार के राम मंदिर निर्माण को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश की मांग करते हुए महंत परमहंस ने छावनी में उन्होंने अपनी चिता सजा रखी थी और चिता पूजन भी किया था। हालांकि, पुलिस ने धर्मसभा के एक दिन पहले उनकी चिता हटा दी थी। बता दें, राम मंदिर मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जिसकी सुनवाई जनवरी में होगी।
6 दिसंबर को अयोध्या पर छाए रह सकते हैं काले बादल
- विवाद की शुरुआत वर्ष 1987 में हुई। वर्ष 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं। वर्ष 1947 में भारत सरकार ने मुस्लिम समुदाय को विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया, जबकि हिंदू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा।
- विश्व हिंदू परिषद ने वर्ष 1984 में मंदिर की जमीन को वापस लेने और दोबारा मंदिर का निर्माण कराने को एक अभियान शुरू किया।
- वर्ष 1989 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। साप्रदायिक ज्वाला तब भड़की जब विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया। जब भारत सरकार के आदेश के अनुसार इस स्थल पर नए मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब मुसलमानों के विरोध ने सामुदायिक गुस्से का रूप लेना शुरू कर दिया।
- 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही यह मुद्दा साप्रदायिक हिंसा और नफरत का रूप लेकर पूरे देश में फैल गया। देश भर में हुए दंगों में दो हजार से अधिक लोग मारे गए। मस्जिद विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जाच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।
- वर्ष 2003 में हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरात्ताव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले। वर्ष 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 574 पेज की नक्शों और समस्त साक्ष्यों सहित एक रिपोर्ट पेश की गयी।