मध्यप्रदेश: मालवा-निमाड़ है किंगमेकर, जिसे मिलेगी कामयाबी उसी का होगा राजतिलक

मध्यप्रदेश के कुछ इलाके ऐसे हैं जो हर बार तय करते हैं कि सत्ता किसके हाथ में होगी। ऐसा ही एक इलाका है मालवा-निमाड़ जहां से सत्ता का रास्ता भोपाल के वल्लभ भवन तक पहुंचता है। ये क्षेत्र हर बार सत्ता की चाबी साबित होता है। पिछले तीन बार से मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का रास्ता मालवा-निमाड़ से होकर जाने लगा है। यहां के नतीजों से तय होता है कि सत्ता पर किसका राज होगा। जब से छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना है, मालवा-निमाड़ मध्यप्रदेश का एक तरह से किंगमेकर बन गया है। जिस पार्टी को यहां कामयाबी मिलती है, उसी का राजतिलक होता है।

मालवा-निमाड़ में 66 सीटें 

कुल 230 सीटों वाली प्रदेश विधानसभा में मालवा-निमाड़ अंचल की 66 सीटें शामिल हैं। मालवा-निमाड़ में 15 जिले, और 2 संभाग आते हैं। ये जिले हैं इंदौर, धार, खरगौन, खंडवा, बुरहानपुर, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, देवास, नीमच और आगर।

पश्चिमी मध्यप्रदेश के इंदौर और उज्जैन संभागों में फैले इस अंचल में आदिवासी और किसान तबके के मतदाताओं की बड़ी तादाद है। मालवा-निमाड़ का चुनावी महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान इस क्षेत्र में बड़ी रैलियों को सम्बोधित किया है।

मालवा-निमाड़ में 66 विधानसभा सीटें हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 57 सीटों पर कब्जा जमाया था, कांग्रेस सिर्फ 9 सीटें जीत सकी। सीटों का यही अंतर भाजपा की सरकार बनने में सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ। अपने बुरे दिनों में भी भाजपा कहीं जमी रही तो इसी इलाके में। लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मालवा-निमाड़ सबसे महत्वपूर्ण साबित होता रहा है। दोनों ही दलों ने अपनी-अपनी ताकत इस हिस्से में झोंकी।

भाजपा ने उतारे पुराने चेहरे

भाजपा ने अधिकांश पुराने चेहरे चुनाव मैदान में उतारे हैं। इनमें कई मौजूदा मंत्री और विधायक शामिल हैं। भाजपा के ही लोग आरोप लगाते हैं कि 57 विधायकों के बावजूद मालवा-निमाड़ की राजनीतिक रूप से उपेक्षा की गई। इंदौर, धार, शाजापुर, झाबुआ, रतलाम, मंदसौर, नीमच, और अलीराजपुर को शिवराज मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। इन सभी जिलों में इस बार जबरदस्त वोटिंग हुई है। कहीं 70 से 75 फीसदी तो कही 75 से 80 फीसदी मतदान हुआ।

ये मंत्री मैदान में 

पारस जैन (68)
अर्चना चिटनीस (54)
अंतरसिंह आर्य (59)
विजय शाह (54)
बालकृष्ण पाटीदार (64)

15 साल से लगातार सरकार के कारण भाजपा एंटी इनकंबेंसी भी झेल रही है। लेकिन आरएसएस की यहां गहरी पैठ है और इसी ने भाजपा को आश्वस्त कर रखा है। वह मानकर चल रही है कि आंकड़ों में बड़ा फेरबदल नहीं होगा।

उधर, कांग्रेस की ओर से मालवा-निमाड़ अंचल में किस्मत आजमा रहे दिग्गजों में चार पूर्व मंत्री-सुभाष कुमार सोजतिया (66), नरेंद्र नाहटा (72), हुकुमसिंह कराड़ा (62) और बाला बच्चन (54) शामिल हैं। इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे दो अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता-विजयलक्ष्मी साधौ (58) और सज्जन सिंह वर्मा (66) गुजरे बरसों के दौरान अपने अलग-अलग कार्यकालों में सांसद और प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।

कांग्रेस के दिग्गज 

सुभाष कुमार सोजतिया (66)
नरेंद्र नाहटा (72)
हुकुमसिंह कराड़ा (62)
बाला बच्चन (54)
विजयलक्ष्मी साधौ (58)
सज्जनसिंह वर्मा (66)

बहरहाल, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है। 28 नवंबर को प्रदेश की जनता ने रिकॉर्डतोड़ मतदान किया। 2013 में 72 फीसदी मतदान के मुकाबले इस बार करीब 75 फीसदी मतदान हुआ है। ज्यादा मतदान का फायदा किसे होगा, ये 11 दिसंबर को साफ होगा। अक्सर प्रचंड मतदान सत्ता परिवर्तन का संकेत भी होता है। तो देखना है कि इस बार क्या जनादेश आया है।