जम्मू। पाकिस्तान ने फिर कायरतापूर्ण कार्रवाई को अंजाम दिया है। जम्मू संभाग के सांबा जिले के रामगढ़ सब सेक्टर में पाकिस्तान रेंजर्स की गोलाबारी में शहीद सीमा सुरक्षा बल(बीएसएफ) के जवान का पार्थिव शरीर भारत को सौंपने के बजाय उसके साथ बर्बरता की गई।
शहीद के गले को चाकू से रेतने के साथ उनकी एक आंख को भी निकालने की कोशिश की गई। यह पहली बार है जब जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बीएसएफ के किसी जवान के पार्थिव शरीर से दुश्मन ने इस प्रकार की हरकत की है। पाकिस्तान की इस कार्रवाई के बाद जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हाई अलर्ट कर दिया गया है। बीएसएफ के जवानों को किसी भी प्रकार के हालात का सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा गया है।
शहीद की पहचान बीएसएफ की 176 बटालियन के हेड कांस्टेबल नरेंद्र कुमार(50) निवासी थाना कला, जिला सोनीपत, (हरियाणा) के रूप में हुई है। इस हमले के पीछे पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम (बैट) का हाथ होने से भी इन्कार नहीं किया जा रहा है। पाकिस्तान की बैट टीम में पाकिस्तानी रेंजर्स के साथ आतंकी भी रहते हैं। वे अक्सर भारतीय जवानों में दहशत पैदा करने के लिए ऐसी बर्बर कार्रवाई करते हैं। वहीं बीएसएफ के अधिकारी इस घटना पर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
सीमा पर कंदराल पोस्ट पर हुआ पोस्मार्टम
उपजिला अस्पताल रामगढ़ से डॉक्टरों के बोर्ड को सीमा पर कंदराल पोस्ट पर ले जाकर शहीद का पोस्टमार्टम करवाया गया। सूत्रों के अनुसार शहीद को स्नाइपर गन से निशाना बनाया गया था। उनके शरीर पर तीन गोलियों के निशान मिले। साथ ही तेजधार हथियार से गला रेतने, शरीर के अन्य हिस्सों पर घाव देने व एक आंख को भी क्षति पहुंचाने की पुष्टि हुई है। इसके बाद रामगढ़ पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
यूनिट स्तर पर दी गई सलामी
शहीद नरेंद्र कुमार का पोस्टमार्टम करवाने के बाद उन्हें यूनिट स्तर पर सलामी दी गई। यह पहली बार हुआ है जब शहीद के पार्थिव शरीर को सलामी देने के लिए फ्रंटियर मुख्यालय पलौड़ा नहीं लाया गया।
आइबी ने गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट
सूत्रों के अनुसार बीएसएफ ने इस बर्बरतापूर्ण कार्रवाई के लिए पाकिस्तानी रेंजर्स से कड़ी आपत्ति जताई है। गृह मंत्रालय इस घटना को लेकर बेहद गंभीर है। गृह मंत्रालय ने इस मामले में बुधवार को बीएसएफ के साथ इंटेलीजेंस ब्यूरो (आइबी) की रिपोर्ट भी तलब की। आइबी ने यह रिपोर्ट भेज दी है।
कैसे शहीद हुए थे नरेंद्र कुमा
सब सेक्टर रामगढ़ के अग्रिम एसपी-वन क्षेत्र में मंगलवार को बीएसएफ के चार जवान फेंसिंग के आगे अपने क्षेत्र में साफ-सफाई कर रहे थे। सुबह करीब पौने 11 बजे पाकिस्तान ने इस दल को निशाना बनाकर गोलीबारी शुरू कर दी।
सूत्रों के अनुसार अन्य जवान सुरक्षित वापस आ गए, लेकिन गोली लगने के बाद हेड कांस्टेबल नरेंद्र कुमार झाडि़यों के बीच लापता हो गए। जवान को तलाशने के लिए पाकिस्तानी रेंजर्स से भी सहयोग मांगा गया। पाकिस्तान ने क्षेत्र में दलदल का हवाला देकर सहयोग से इनकार कर दिया। ऐसे में अंधेरा होने का इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। चूंकि आगे बढ़ने पर अन्य जवानों को भी गोलियों से निशाना बनाया जा सकता था। शाम ढलने पर जोखिम उठाकर जवान आगे बढ़े। छह घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शहीद का पार्थिव शरीर तलाश लिया गया। उनके शरीर की हालत देखकर साफ हो गया कि गोली लगने के बाद पाकिस्तानी रेंजर्स या बैट दल उन्हें अपने साथ ले गया और बर्बरता के बाद फिर वहां छोड़ गया।
भारत ने डीजीएमओ स्तर पर जताया कड़ा एतराज
भारत ने डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन (डीजीएमओ) स्तर पर पाकिस्तान के साथ बीएसएफ जवान के पार्थिव शरीर के साथ बर्बरता पर कड़ा एतराज जताया। डीजीएमओ ने दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम समझौते का सख्ती से पालन करने के लिए भी कहा।
पहले हेमराज का सिर और अब नरेंद्र कुमार का गला काटा
कारगिल युद्ध के समय से शुरू हुई पाकिस्तान की अमानवीय हरकतें अब तक जारी हैं। पाकिस्तान सेना, रेंजर और आतंकी मिलकर काम करते हैं और तीन साल में तीन बार भारतीय जवानों के साथ बर्बरता कर चुके हैं। पांच साल पहले बर्बरता से पाकिस्तानी सेना ने सिपाही हेमराज का सिर काट दिया था। अब बीएसएफ के जवान नरेंद्र कुमार का गला रेतकर उसके शव से बर्बरता की।
8 जनवरी 2013 को पाकिस्तान की बैट टीम ने पुंछ जिले के मेंढर इलाके में एलओसी पर मनकोट नाले के पास सेना के गश्ती दल पर घात लगाकर हमला किया। इसमें लांस नायक हेमराज और लांस नायक सुधाकर सिंह शहीद हो गए। बैट टीम हेमराज का सिर काट कर अपने साथ ले गई। इसके बाद 5 अगस्त 2013 में सरला एरिया के पास पाकिस्तान की बैट टीम 500 मीटर तक भारतीय सीमा में घुस आई। 22 सदस्यों वाली बैट टीम में पाकिस्तानी सेना, आतंकी, स्पेशल ग्रुप के कमांडो शामिल थे, जिन्होंने सेना के पांच जवानों को शहीद कर दिया।
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के क्षेत्र में भटक कर पहुंचे कैप्टन सौरभ कालिया और पांच सिपाहियों को 20 से 22 दिन तक अमानवीय प्रताड़ना के बाद 6 और 7 जून 1999 के दौरान पाकिस्तानी सेना ने हत्या कर दी। बाद में शवों को सौंपा था। तब से लेकर अब तक ऐसा चलता आ रहा है।