मुस्लिम महिलाओं की तस्वीारों की बोली, सोशल मीडिया पर ये घिनौने सौदागर कौन हैं

एक मोबाइल ऐप है बुल्ली बाई. हालांकि इसे अब उस प्लेटफार्म से हटा दिया गया है लेकिन इसी प्लेटफार्म से पिछले साल जुलाई में सुल्ली डील का ऐप डाउनलोड किया गया था. दोनों ही मामलों में केवल मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाया गया है. उनकी तस्वीरें डाली गई हैं और लोगों से बोली लगाने के लिए कहा गया है. पुलिस ने पिछली बार भी मामला दर्ज कर लिया था मगर आज तक कोई गिरफ्तार नहीं हुआ है. सुल्ली और बुल्ली डील ऐप में कोई छह महीने का अंतर भी नहीं है लेकिन दोनों ऐप में उन्हीं मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों का इस्तमाल किया गया है जो विरोध में आवाज़ उठाती हैं. 67 साल की खालिद परवीण ने नरसिंहानंद सरस्वती के खिलाफ आवाज़ उठाई थी जिनके खिलाफ हरिद्वार में भड़काऊ भाषण देने का मामला दर्ज हुआ है. हैदराबाद की पत्रकार आयशा मिन्हाज़ ने अपनी तस्वीर देख कर कहा है कि भारत में मुस्लिम औरतों की यह दुखद सच्चाई है. इससे भी बुरा हो सकता है. नाबिया ख़ान अपनी कविता को प्रतिरोध की आवाज़ कहती हैं, उनकी तस्वीर भी इस ऐप में है. कश्मीर की पत्रकार कुरतुल रहबर का भी फोटो है और रेडियो मिर्ची की मशहूर रेडियो ऐंकर सायमा का भी. किसी को नजीब की मां फातिमा नफीस का नाम याद रहा जिनका बेटा आज तक सरकार की पुलिस खोज नहीं सकी. इन दोनों ऐप को जिन्होंने बनाया है, डाउनलोड किया है, लाइक किए हैं या टिप्पणियां की हैं उन सभी का अलग से अध्ययन होना चाहिए. ताकि पता चले कि ये लोग किन घरों से आते हैं, इनके भीतर मुस्लिम महिलाओं के प्रति इतनी नफरत कहां से आई है. इन्हें किसी भी महिला के प्रति ऐसे ख्याल से आनंद कैसे मिल सकता है. 2018 में जम्मू के कठुआ में बलात्कार के एक मामले से जुड़ा प्रधानमंत्री मोदी का एक बयान है. उस दौरान एक बात हुई थी. बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में तिरंगा यात्रा निकाली गई थी. ऐसा कभी नहीं हुआ था. प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकार किसी की भी हो, बलात्कार बलात्कार होता है. यहां एक बात जोड़ना चाहूंगा कि किसी भी समुदाय की महिला हो, उसकी बोली लगाने का ख्याल भी उसी तरह सभी महिलाओं के खिलाफ़ होता है जैसे बलात्कार बलात्कार होता है. सुल्ली और बुल्ली बाई ऐप का मामला केवल मुस्लिम महिलाओं का मामला नहीं है. यह मामला बताता है कि समाज में औरतों को किस तरह से देखा जा रहा है. और देखने की यह छूट राजनीति और धर्म के आधार पर ली जा रही है, दी जा रही है. इसलिए जिन लोगों ने ऐसा ऐप बनाया है, चाहे वे हिन्दू हों या मुस्लिम हों, जिन्होंने ये डाउनलोड किया है या इस पर लाइक से लेकर टिप्पणी तक की है उन सभी की काउंसलिंग की जानी चाहिए. मनोचिकित्सक के यहां कुछ हफ्तों के लिए भेजा जाना चाहिए जैसे किसी को नशे की लत छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र भेजा जाता है. यह मामला केवल पुलिस का नहीं है. पुलिस तो दो चार अपराधियों को पकड़ेगी लेकिन इस सोच के कई लोग जो घरों में मौजूद हैं उन्हें धरा जाना ज़रूरी है दिल्ली दंगों के आरोप में जब सफूरा ज़रगर को गिरफ्तार किया गया तब उनके गर्भवती होने को लेकर खतरनाक तरीके से ट्विटर पर लिखा गया और मज़ाक उड़ाया गया. मई 2020 में सफूरा को लेकर अश्लील मीम बनाए गए. उनकी शादी को लेकर अनाप शनाप बातें कही गईं. इस वक्त सफूरा ज़मानत पर हैं. उसी तरह जब भी मुस्लिम महिलाएं सार्वजनिक मुद्दों पर बोलती हैं और लड़ती हैं तो उनके औरत होने और एक विशेष धर्म से होने का मज़ाक उड़ाया जाता है और उस आधार पर गालियां दी जाती हैं. इस खेल में केवल मोबाइल ऐप नहीं है, गोदी मीडिया भी है, नेताओं और धर्म गुरुओं के भाषण हैं. जो अपने भाषण में लाखों लोगों को मारने की बात करते हैं उसी वक्त आपको याद करना चाहिए कि लाखों लोगों की हत्या करने के लिए हज़ारों हत्यारे किनके घरों के बेटे बनेंगे? इतना समझ जाएंगे तो ऐसी बातों से अलर्ट होने लग जाएंगे. नफ़रत से जुड़े मुद्दों का जाल इतना बड़ा हो चुका है कि आप निकलने के नाम पर उलझते ही जाएंगे. क्या आपको पता है कि आपका बेटा या पति इस तरह से सोचने लगा है, रिटायर्ड अंकिलों से भी चेक कर लीजिएगा. आपकी सुविधा के लिए इस सवाल को और सिम्पल कर देता हूं.