
मुजफ्फरनगर की किसान पंचायत में राकेश टिकैत ने वोट की चोट से भाजपा को हराने की हुंकार भरी। उनकी यह अपील यूपी और उत्तराखंड में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कितना असर दिखाएगी, सभी इसके आकलन में लगे हैं। राकेश टिकैत का कहना है कि सूबे में पश्चिम यूपी से ही बीजेपी का झंडा बुलंद हुआ था
हालांकि, राकेश टिकैत के इन दावों के उलट चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर राजेंद्र कुमार पाण्डेय बताते हैं, “मुझे नहीं लगता कि आने वाले विधानसभा चुनावों में किसान पंचायत और किसान आंदोलन का बहुत असर होगा।” इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं, “सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे भारत में चुनाव सिर्फ मुद्दों पर नहीं लड़े जाते हैं। यहां चुनाव जातिगत समीकरण और भावना आधारित भी होते हैं।
2013 के दंगों के बाद बदले यहां के समीकरण
2013 में मुजफ्फरनगर जिले के कवाल गांव में हुई हत्याओं के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश जल उठ था। इन्हीं दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर में जहां भाजपा का ग्राफ तेजी से ऊपर गया तो वहीं सपा, बसपा और जयतं चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का पूरी तरह से सफाया हो गया। क्या इस बार के चुनाव में 2013 की घटना की भूमिका अहम रहेगी, इस सवाल के जवाब में कवाल गांव के प्रधानपति के चचेरे भाई छोटे मिंया बताते हैं, “देखिए, विकास हो या किसान पंचायत चुनाव के दौरान हमारी तरफ भावनाओं और बिरादरी के आधार पर वोट दिए जाते हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता है, ऐसे मुस्लिम जो खेती किसानी करते हैं वह किसान आंदोलन के आधार पर वोट करेंगे।”
पिछले 9 महीनों से सरकार आंदोलन कर रही किसानों की बात नहीं सुन रही है। ऐसे में इस बार भाजपा को वोट नहीं करेंगे।” फिर किसे वोट करेंगे किसान के सवाल का जवाब में योगेन्द्र सिंह कहते हैं, “इस बार हमारी बिरादरी (जाट) राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवारों को वोट देगी।”
योगेन्द्र सिंह कहते हैं, “लखनऊ और दिल्ली में हमारा नेता मजबूत होना चाहिए बस। फिर चाहे आरएलडी, सपा से गठबंधन करे या भाजपा से इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर आरएलडी और सपा का गठबंधन होता है और हमारी सीट पर सपा मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा कर देती है तो हम (जाट) उन्हें वोट नहीं देंगे। इस बार के विधानसभा चुनावों में मुस्लिमों की मजबूरी है कि जिधर भाजपा के खिलाफ जाट वोट करेगा, उन्हें वोट दें। अब हम मजबूर नहीं हैं।”
इस किसान पंचायत के जरिए राकेश टिकैत अपनी राजनीति धमक बढ़ाना चाहते हैं। दूसरी बात, आंदोलन या पंचायत का बहुत लाभ राष्ट्रीय लोकदल को होगा ऐसा नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आरएलडी का प्रभाव अब जाटों में उस तरह से नहीं रह गया है, जो चौधरी चरण सिंह के समय था।
किसान आंदोलन का नहीं है व्यापक असर
मुजफ्फरनगर शहर में रहने वाले 26 वर्षीय हेमू विक्रमादित्य किसान आंदोलन पर कहते हैं, “जवान और किसान भारत के लोगों के लिए संवेदनशील विषय रहे हैं।
कई किसानों ने कहा कि यदि सरकार गन्ने का दाम में 40-50 रुपये की बढ़ोतरी कर दे, चीनी मिलों से बकाये पैसे का भुगतान करवा दे और बिजली की दरों में कुछ छूट दे दे तो उनकी नाराजगी काफी हद तक दूर हो जाएगी।