हरियाणा: शिमला समझौते पर मंत्री विज का विवादित बयान, कहा- 1971 की जीती गई जंग राजनेताओं ने टेबल पर हारी

हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने 1971 भारत-पाक युद्ध के बाद हुए शिमला समझौते पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि राजनेता युद्ध के मैदान में सैनिकों द्वारा जीती जंग शिमला समझौते की मेज पर हार गए। हमारे पास 93000 युद्ध बंदी थे, हम चाहते तो उनको छोड़ने के बदले में पाक अधिकृत कश्मीर ले सकते थे, लेकिन हमने कोई मोलभाव नहीं किया।

विज ने कहा कि यह बड़ी भूल थी, जिसका खामियाजा आज तक भुगत रहे हैं। उन्होंने उस समय की सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया। बकौल विज, यह उस वक्त की सरकारों की बहुत बड़ी चूक थी। तत्कालीन सरकार को पाक अधिकृत कश्मीर मांगना चाहिए था। आज भी उस युद्ध के कई भारतीय सैनिक पाकिस्तान में कैद हैं। उन्हें भी रिहा करवाना चाहिए था।

मुख्यमंत्री ने शहीद सैनिकों को किया नमन

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विजय दिवस की स्वर्णिम वर्षगांठ पर देश की रक्षा, शांति व स्वाभिमान के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाले महानायकों को नमन किया। उन्होंने कहा कि 1971 इंडो-पाक युद्ध में भारतीय सेना के वीर और पराक्रमी सैनिकों ने अपने अदम्य साहस व शौर्य के दम पर पाकिस्तान के सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था। युद्ध के दौरान भारत माता के वीर सपूतों द्वारा दिया गया बलिदान हमारी युवा पीढ़ी को सदैव देशभक्ति के लिए प्रेरित करता रहेगा।

क्या है शिमला समझौता, जिसपर अनिल विज ने उठाए सवाल, यह कब हुआ

1971 में भारत-पाक युद्ध के बाद उनके 93 हजार से ज्यादा सैनिकों को युद्ध बंदी बनाया गया था। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार, पाक युद्ध बंदियों को छुड़ाने की कवायद शुरू हुई। फिर दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध के लिए 2 जुलाई 1972 को शिमला में एक समझौता हुआ। इसी समझौते को शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है। शिमला समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। 

शिमला समझौते की अहम बातें

दोनों देशों ने इस समझौते के जरिये आपसी संबंधों को बेहतर करने, शांति बनाए रखने और एक दूसरे का सहयोग करने का संकल्प लिया था। इसके लिए दोनों देशों के बीच कुछ बातों पर सहमति बनी थी। वो बातें यहां दी गई हैं…

दोनों देशों ने 17 सितंबर 1971 को युद्ध विराम के रूप में मान्यता दी। तय हुआ कि इस समझौते के 20 दिनों के अंदर दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी सीमा में चली जाएंगी।

यह भी तय हुआ कि दोनों देशों/सरकारों के अध्यक्ष भविष्य में भी मिलते रहेंगे। संबंध सामान्य बनाए रखने के दोनों देशों के अधिकारी बातचीत करते रहेंगे।

दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे। तीसरे पक्ष द्वारा कोई मध्यस्थता नहीं की जाएगी।

यातायात की सुविधाएं स्थापित की जाएंगी। ताकि दोनों देशों के लोग आसानी से आ-जा सकें।

जहां तक संभव होगा, व्यापार और आर्थिक सहयोग फिर से स्थापित किए जाएंगे।

अगर दोनों देशों के बीच किसी समस्या का अंतिम निपटारा नहीं हो पाता है और मामला लंबित रहता है, तो दोनों पक्ष में से कोई भी स्थिति में बदलाव करने की एकतरफा कोशिश नहीं करेगा।

दोनों पक्ष ऐसे कृत्यों के लिए सहायता, प्रोत्साहन या सहयोग नहीं करेंगे जो शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने में हानिकारक हैं।

दोनों देश एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेंगे। समानता एवं आपसी लाभ के आधार पर एक-दूसरे के आंतरिक मामले में दखल नहीं देंगे। 

दोनों सरकारें अपने अधिकार के अंदर ऐसे उग्र प्रॉपेगेंडा को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाएंगी जिनके निशाने पर दोनों में से कोई देश हों। दोनों देश इस तरह की सूचनाएं आपस में साझा करने को प्रोत्साहन देंगे। 

संचार के लिए डाक, टेलिग्राफ सेवा, समुद्र, सीमा डाक समेत सतही संचार माध्यमों, उड़ान समेत हवाई लिंक बहाल करेंगे।

शांति की स्थापना, युद्धबंदियों और शहरी बंदियों की अदला-बदला के सवाल, जम्मू-कश्मीर के अंतिम निपटारे और राजनयिक संबंधों को सामान्य करने की संभावनाओं पर काम करने के लिए दोनों पक्षों के प्रतिनिधि मिलते रहेंगे और आपस में चर्चा करेंगे।