लगभग दो वर्षों से हिंसा की चपेट में रहे मणिपुर राज्य को आज एक बड़ा राजनीतिक झटका लगा, जब मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के इस्तीफे के कुछ दिनों बाद वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। यह 1951 के बाद 11वीं बार है जब मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के कार्यालय से जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि, “राज्यपाल अजय भल्ला की रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद और अन्य उपलब्ध जानकारी पर विचार करने के बाद, मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य नहीं कर सकती है।”
बीजेपी में नेतृत्व संकट और संवैधानिक बाध्यता
केंद्र सरकार का यह कदम तब आया जब राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुख्यमंत्री पद के लिए किसी नाम पर सहमति बनाने में विफल रही। इसके चलते विधानसभा का सत्र भी नहीं बुलाया जा सका।
मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात के बाद रविवार को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। वहीं, भाजपा के पूर्वोत्तर मामलों के प्रभारी संबित पात्रा ने इंफाल में पार्टी विधायकों के साथ कई बैठकें कीं, लेकिन कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका।
भाजपा नेतृत्व मुख्यमंत्री पद के लिए किसी नाम की घोषणा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा से लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था, लेकिन इस बीच राज्य विधानसभा का सत्र बुलाने की संवैधानिक समय सीमा समाप्त होने की कगार पर पहुंच गई।
संविधान के अनुच्छेद 174(1) के अनुसार, किसी भी राज्य की विधानसभा को अधिकतम छह महीने के भीतर बुलाया जाना आवश्यक होता है। मणिपुर में विधानसभा की आखिरी बैठक 12 अगस्त 2024 को हुई थी, और सोमवार को प्रस्तावित बजट सत्र मुख्यमंत्री व मंत्रिपरिषद के इस्तीफे के कारण अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था।
राष्ट्रपति शासन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद मणिपुर एक बार फिर केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष प्रशासन के अंतर्गत आ गया है। यह मणिपुर में 11वीं बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है।
इससे पहले, मणिपुर में 2 जून 2001 से 6 मार्च 2002 तक राष्ट्रपति शासन लागू था, जो 277 दिनों तक चला था।
हिंसा और राजनीतिक संकट की पृष्ठभूमि
मणिपुर में मई 2023 से ही मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय हिंसा जारी है, जिसमें अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इस बढ़ती हिंसा ने राजनीतिक संकट को भी जन्म दिया, और कांग्रेस पार्टी लगातार राज्य सरकार पर हिंसा रोकने में असफल रहने का आरोप लगा रही थी।
विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की थी और हाल ही में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही थी। नवंबर 2024 में कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने भी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिससे भाजपा पर दबाव और बढ़ गया।
हालांकि, भाजपा के पास 60 सदस्यीय विधानसभा में 32 विधायकों के साथ बहुमत था, लेकिन पार्टी के 12 विधायक भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे थे।
स्थिति तब और बिगड़ गई जब कुछ ऑडियो टेप लीक हुए, जिनमें कथित तौर पर बिरेन सिंह को हिंसा भड़काने की बात करते सुना गया। कांग्रेस ने इन टेपों को अदालत में पेश किया, और स्वतंत्र फोरेंसिक जांच में पुष्टि हुई कि 93% ऑडियो बिरेन सिंह की आवाज़ से मेल खाते हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जिसने इस पर केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) से रिपोर्ट मांगी थी।
कांग्रेस ने सरकार पर साधा निशाना
मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने इसे अपनी “बड़ी जीत” बताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगना भाजपा की पूर्ण विफलता को दर्शाता है।”
वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “जो मांग कांग्रेस बीते 20 महीनों से कर रही थी, आखिरकार आज पूरी हुई। यह राष्ट्रपति शासन भाजपा और उनके सहयोगियों की राजनीति का नतीजा है, जो 2022 के चुनावों में बहुमत पाने के बावजूद 15 महीनों में राज्य को इस कगार पर ले आए।”
भविष्य की राह
भाजपा की मणिपुर इकाई ने स्पष्ट किया कि विधानसभा भंग नहीं की गई है, बल्कि इसे “निलंबित एनीमेशन” में रखा गया है। यानी हालात सामान्य होने के बाद विधानसभा को फिर से बहाल किया जा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मणिपुर में भाजपा को एक नया नेतृत्व तैयार करने और राज्य में शांति स्थापित करने की चुनौती का सामना करना होगा। फिलहाल, राष्ट्रपति शासन के तहत राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार द्वारा संचालित किया जाएगा।