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छत्तीसगढ़ः आर्थिक तंगी से उबरने के लिए विकास के गांधीवादी मॉडल को अपना रही सरकार

रायपुर- छत्तीसगढ़ राज्य में हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ है। 15 वर्षों के भाजपा के कार्यकाल के बाद अब कांग्रेस की सरकार यहां बनी है। दोनों सरकारों की विकास को लेकर नीतियां काफी अलग रही हैं। विपक्ष में रहते कांग्रेस ने जिन बातों को विरोध किया, अब सरकार में आने के बाद कांग्रेस ने उन नीतियों और योजनाओं को ही बंद कर दिया। नई सरकार ने पुरानी सरकार की विभिन्न विकास योजनाओं पर पूर्ण वीराम लगा दिया, इसके साथ ही अपनी नीति से राज्य के विकास के प्रयास शुरू किए हैं।

राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति इस वक्त ठीक नहीं है। पुराने डैमेज कंट्रोल के लिए राजकोष से बड़ी राशि का उपयोग किया गया है। किसानों की कर्जमाफी सहित कई बड़े आर्थिक फैसले सरकार ने लिए हैं। इससे 10 हजार करोड़ का आर्थिक भार सरकार पर आया है। इसके बाद इस खर्च की पूर्ति के लिए राज्य सरकार पिछले दो महीनों में केंद्रीय रिजर्व बैंक से अब तक 6 बार कर्ज ले चुकी है।

करीब तीन महीने में सरकार ने 7 हजार करोड़ से अधिक के बांड बेचे हैं। अब सरकार इन सब से उबरने के लिए आर्थिक विकास के गांधीवादी मॉडल को अपना रही है। नरवा,गरुआ,घुरवा और बारी का कंसप्ट वास्तव में पूरी तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित गांधी जी के विचारों पर टिका है।

कृषि और पशुपालन हमारी ग्रामीण संस्कृति का अटूट हिस्सा है। जीवन की निरंतरता प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण पर निर्भर करती है। ये संसाधन प्रतिदिन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। राज्य की नई कांग्रेस सरकार का मत यह है कि प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग से ही कृषि और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

नरवा, गरुआ, घुरवा और बारी गांवों को सुदृढ़, स्वावलंबी व संपन्न् बनाने का देशी फार्मूला है। इसी अवधारणा को साकार करने के लिए छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान संसाधनों के समुचित संरक्षण व सदुपयोग के लिए काम करना शुरू किया है। वास्तव में ये चार चिन्हारी ही हमारी कृषि संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था की निशानी भी हैं।

इस योजना से जलस्रोतों का सरंक्षण-सवर्धन, पशुधन प्रबंधन व उन्न्यन, चरागाहों का विकास और जैविक खाद व बायोगैस इकाइयों की स्थापना होगी। इसी के माध्यम से ग्रामीण स्तर पर दो लाख से ज्यादा रोजगार श्रृजन का लक्ष्य सरकार ने तय किया है। इस योजना के अंतर्गत होने वाले कार्यों को मनरेगा से जोड़ा जाएगा।

महात्मा गांधी ने अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संकल्पना में कहा था कि भारत गांवों को देश है और गांवों के विकास से ही शहरों और पूरे देश का विकास होगा। गांधीजी के आर्थिक दर्शन पर आधारित गांधीवादी योजना श्रीमन्न्ारायण ने अप्रैल 1944 में प्रस्तुत की थी। इस योजना को शुरूआती दौर की पंचवर्षीय योजनाओं में भी शामिल किया गया था। गांधी जी का मानना था कि गांवों में खेती का विकास, पशुपालन, ग्रामीण संसाधनों से रोजगार और इसी के आधार पर आर्थिक विकास किया जा सकता है। गांधी जी का यह आर्थिक दर्शन काफी व्यापक है।

इस समय विकास के लिए यही रास्ता

छत्तीसगढ़ राज्य एक विकसित होता राज्य है। इसमें एक तरफ आर्थिक विकास की बड़ी संभावनाएं हैं जो दूसरी तरफ सामाजिक विकास की कई चुनौतियां भी हैं। बड़ी तादात में प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में संसाधनों के व्यापक उपयोग के जरिए तेज विकास की नीति पिछली सरकार ने अपनाई थी, लेकिन इसकी वजह से टाटा के भूमिअधिग्रहण की वजह से स्थानीय लोगों के विस्थापन, किसानों की आर्थिक स्थिति का खराब होना।

गांवों में विकास का कजोर होना जैसे कारक पैदा हुए। इस समय राज्य सरकार राज्य के विकास के लिए आर्थिक रूप से कोई बड़ी योजना नहीं ला सकती, और ऐसे में गांधीवादी आर्थिक विकास मॉडल ही राज्य सरकार के लिए सबसे बेहतर विकल्प है।

अर्थशास्त्री डॉ. हुनमंत यादव कहते हैं कि बजट की व्यवस्था के लिए सरकार के पास बांड बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जीएसटी लागू होने के बाद से राज्य सरकारों के पास टैक्स का विकल्प ज्यादा नहीं बचा है। पेट्रोल जैसी कुछ वस्तुएं हैं जिन पर राज्य टैक्स लगा सकता है, लेकिन इसका सीधा असर जनता पर पड़ेगा। ऐसे में सरकार इससे बचती है। तीन महीने पुरानी कांग्रेस सरकार अपने इस छोटे कार्यकाल में अब तक सात हजार करोड़ से अधिक का बांड बेच चुकी है।

छह बार में लिए गए इस कर्ज के लिए सरकार औसत आठ फीसद ब्याज भरेगी और दो से लेकर छह वर्ष में चुकाएगी। इस अवधी में राज्य सरकार को आर्थिक विकास की ऐसी नीति का सहारा लेना होगा, जिससे अर्थव्यवथा को तेज नहीं, बल्कि संतुलित विकास का रास्ता मिले।

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