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SIR बहस में अमित शाह का पलटवार: नेहरू से सोनिया तक कांग्रेस पर गंभीर आरोप

लोकसभा में बुधवार को हुए स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) पर बहस के दौरान राजनीतिक माहौल तब गर्म हो गया जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के “वोट चोरी” के आरोपों को उसी पर पलटते हुए पार्टी के इतिहास के तीन विवादित प्रसंगों का उल्लेख किया। जिस बहस की मांग कांग्रेस ने जोर-शोर से की थी, उसका नियंत्रण अंततः भाजपा ने अपने हाथ में ले लिया। शाह के भाषण के दौरान ही विपक्षी सांसद वाकआउट कर गए, जिस पर सत्तापक्ष की ओर से “भाग गए” के नारे लगाए गए।

शाह का प्रत्यारोप: “दो महीने से कांग्रेस झूठ का अभियान चला रही है”

अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस ने दो महीनों से “झूठ और डर फैलाने का सुनियोजित अभियान” चलाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि बहस की मांग तो कांग्रेस ने की, लेकिन “सच्चाई सामने आने पर” वे सदन छोड़कर चले गए।

विपक्ष ने शाह पर “डायवर्ज़न और डिस्टॉर्शन” का आरोप लगाया, लेकिन शाह ने अपने भाषण में कांग्रेस को चुनावी अखंडता के मुद्दे पर ऐतिहासिक रूप से कटघरे में खड़ा करने की रणनीति अपनाई।

गांधी परिवार का उल्लेख और तीन “वोट चोरी” के प्रसंग

शाह ने कांग्रेस के इतिहास के तीन उदाहरण पेश करते हुए कहा कि पार्टी ने स्वयं कई बार वोट प्रक्रिया को प्रभावित किया है:

1. नेहरू बनाम पटेल

शाह ने दावा किया कि स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री चुनने में कांग्रेस प्रांत अध्यक्षों के वोट लिए गए थे। सरदार वल्लभभाई पटेल को 28 वोट मिले, जबकि जवाहरलाल नेहरू को सिर्फ 2 वोट मिले, “फिर भी नेहरू प्रधानमंत्री बने।”

2. इंदिरा गांधी का रायबरेली चुनाव

शाह ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को “अनुचित तरीकों” से प्राप्त बताते हुए निरस्त किया था और इसके बाद प्रधानमंत्री पर मुकदमा न चलने देने वाला कानून लाया गया, जिसे उन्होंने “वोट चोरी” करार दिया।

3. सोनिया गांधी का मतदाता पंजीकरण

शाह ने तीसरी घटना के रूप में आरोप लगाया कि सोनिया गांधी “नागरिक बने बिना ही दिल्ली की मतदाता सूची में शामिल कर ली गईं,” और मामला अदालत में लंबित है।

इमरजेंसी, वंदे मातरम और विदेशी ट्रिब्यूनल संशोधन का जिक्र

शाह ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को “संस्थागत वोट चोरी” बताया। उन्होंने नेहरू के 1937 के सुभाष बोस को लिखे पत्र का हवाला देकर कहा कि कांग्रेस ने वंदे मातरम पर “सांप्रदायिक दबाव” के आगे झुकने की प्रवृत्ति दिखाई।

उन्होंने यह भी कहा कि यूपीए सरकार ने 2005 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल एक्ट में ऐसा संशोधन किया जिसने “अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची से हटाना कठिन बना दिया।”

शाह: “एसआईआर नियमित प्रक्रिया है, वोट चोरी नहीं”

अमित शाह ने स्पष्ट किया कि एसआईआर, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत चुनाव आयोग की निगरानी में होने वाली नियमित, पारदर्शी प्रक्रिया है। “मृतकों, डुप्लीकेट और प्रवासियों के नाम हटाना वोट चोरी नहीं, वोटर लिस्ट की सफाई है,” उन्होंने कहा।

शाह ने यह भी कहा कि कांग्रेस ने चुनाव आयोग को “एक भी ठोस प्रमाण, लिखित शिकायत या हलफनामा” नहीं दिया। “अगर करोड़ों नाम काटे जा रहे थे, तो सबूत कहां हैं?”

इसके बाद कांग्रेस सांसदों ने सदन से वाकआउट किया। शाह ने कहा कि यह कदम दर्शाता है कि कांग्रेस “तथ्यों से भाग रही है।”

भाजपा ने बाद में कहा कि वाकआउट से स्पष्ट हो गया कि “वोट चोरी” पर विपक्ष की कहानी तथ्यात्मक जांच के सामने टिक नहीं सकी।

राज्यसभा में आज चुनाव सुधारों पर बहस

गुरुवार (11 दिसंबर 2025) को राज्यसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा होगी। बुधवार को उच्च सदन में वंदे मातरम पर बहस हुई, जिसमें अमित शाह ने कांग्रेस पर appeasement की राजनीति का आरोप लगाया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि वंदे मातरम के पहले दो अंतरों के प्रयोग का निर्णय नेहरू का अकेला निर्णय नहीं था।

इससे पहले, लोकसभा ने बिहार चुनावों और 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में चल रही एसआईआर प्रक्रिया पर भी चर्चा की थी। विपक्ष ने चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता और एसआईआर से बढ़े कार्यभार पर सवाल उठाए, जबकि सत्तापक्ष ने तर्क दिया कि विपक्ष की चिंताएं “लगातार चुनावी पराजयों” की उपज हैं।

इस बहस से स्पष्ट है कि एसआईआर पर राजनीतिक टकराव आगे भी जारी रहेगा, जिसमें दोनों पक्ष electoral integrity के मुद्दे को अपने तरीके से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं।

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