जानिये तारा रानी की कहानी पति पर गोलिया चलते देखा लेकिन फिर भी नहीं झुकने दिया तिरंगा

भारत को आज़ाद हुए 75 साल इस वर्ष पुरे हो जयेन्गे।  जिसमे कई वीरो का योगदान रहा जिसके बाद देश को आज़ादी मिली। और उन्ही में से एक थी। अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने में तारा रानी श्रीवास्तव ने अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि भारतीय इतिहास में उनका नाम अधिक लोगों को नहीं पता होगा। तारा रानी श्रीवास्तव का जन्म बिहार के सारण जिले में हुआ था। कम उम्र में ही तारा रानी का विवाह फुलेंदू बाबू नाम के शख्स से हो गया था।उनके पति फुलेंदू बाबू स्वतंत्रता सेनानी थे और गांधी जी के अनुयायी थे। वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकालते थे। यहां से ही तारा रानी ने भी आजादी की लड़ाई में अपनी सहभागिता दर्ज करानी शुरू की। उस दौर में शादीशुदा महिलाओं पर बहुत पाबंदियां होती थीं लेकिन तारा रानी ने घर की चारदीवारी से निकल कर न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, बल्कि अन्य महिलाओं को भी इस संग्राम से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।अगस्त 1942 को एक जुलुस निकला गया जिसमे ,तारा रानी और उनके पति दोनों थे उस दौरान उनके पति पर अंग्रेजो ने लाठीचार्ज कर दिया जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गयी। तारा के हाथ में तिरंगा था। उन्होंने अपनी पति को देखते हुए भी तिरंगा नहीं छोड़ा और प्रदर्शन जारी रखा।