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सीतामढी: जानिए, क्यों किनारे पर बसे गांवों के लिए तबाही की सबब बनती जा रही बागमती

नेपाल के जलग्रहण क्षेत्र में दो-तीन दिनों से बारिश थमने के बाद बागमती नदी के जलस्तर में कमी आयी है। लेकिन जलस्तर में कमी आने के साथ ही तेज गति से कटाव शुरु हो गया है। बागमती नदी के कटाव से विगत जून महीने से अभी तक जमला, परसा, रुसुलपुर, बड़हरवा, ढेंग गांव के किसानों का करीब चार सौ एकड़ से अधिक जमीन नदी की धारा में विलीन हो गई है। दो दिनों से यह और भी तेज हो गया है। इन गांवों के किसानों द्वारा खेतों में लगाए गए धान, परवल, अरहर, ईख, केला की फसलें नदी की धारा में विलीन हो गई है। साथ ही बांस, शीशम, पलास, पीठवा समेत बड़ी संख्या मे पेड़-पौधे कटकर बर्बाद हो गए है। यह दृश्य देखकर  आसपास के लोग दहशत में हैं। उनके घर पर भी खतरा मंडराने लगा है। फसल बर्बाद होने से जमला गांव समेत अन्य गांवों के किसानों को काफी नुकसान हुआ है। उनके समक्ष भुखमरी की समस्या बन रही है।

दो दर्जन घरों पर खतरा

जमला गांव निवासी बैजू महतो, पूजन महतो, दोरिक महतो, मेघू महतो, उमेश महतो, रामदयाल सिंह, चुल्हाई दास, अकलू दास, नरेश दास, भागीरथ महतो समेत करीब 23 लोगों का घर कटाव होते-होते बागमती नदी के किनारे पड़ गया है। इन लोगों के घरों समेत राजकीय प्राथमिक विद्यालय जमला मंडल कटाव स्थल के समीप पहुंच गया है। ग्रामीणों ने बताया कि कटाव की सूचना देने के बावजूद भी बागमती सिंचाई प्रमंडल द्वारा जमला गांव के पास कटाव निरोधी कार्य के नाम पर खानापूर्ति की गयी है।

क्या कहते हैं अधिकारी

खेती बाड़ी के बाद मकान पर कटाव का खतरा देखकर ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से बचाव की गुहार लगाई है। सीओ रामजी प्रसाद केशरी ने कहा है कि जमला के ग्रामीणों के बीच पोलीथिन सीट व फूड पैकेट का वितरण किया गया है। वहीं डीएम के निर्देश के आलोक मे जमला के ग्रामीणों के घरों का कटाव होने की स्थिति मे ठहराव स्थल चिह्नित कर लिया गया है।